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 सूचना अधिकारी का ट्रांसफर, विपक्ष हुआ हमलावर 

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आम नागरिकों को सूचना का अधिकार होना किसी भी लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसा अधिनियम है जिसका उद्देश्य देशभर में सरकारी संस्थानों में पारदर्शिता को बढ़ावा देना है। इस अधिनियम को लागू हुए लगभग 19 वर्ष हो चुके हैं । इन वर्षों में जन सूचनाएं पाने के लिए काफी हद तक यह कारगर साबित हुआ, लेकिन सूचना जब अधिकारियों या सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करने वाली हो तो उस सूचना को देने की बजाय दबा लिया जाता है या फिर जानकारी देने के लिए मानदंड कड़े कर दिए जाते हैं या जानकारी देने वाले अधिकारी का तबादला कर दिया जाता है । इसका ताजा उदाहरण बीते दिनों मध्य रेलवे से सामने आया है।

 

एक आरटीआई में रेलवे स्टेशनों पर लगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो वाले प्रत्येक स्थायी सेल्फी बूथ की लागत सामने आने के बाद यह देखने को मिला है। आरटीआई से पीएम मोदी के 3 डी सेल्फी बूथ और सेल्फी पॉइंट की वास्तविक लागत के बारे में जानकारी देने पर रेलवे के अधिकारी का ट्रांसफर करने का मामला सामने आया है। खुलासा हुआ है कि रेलवे स्टेशनों पर लगे पीएम  मोदी की फोटो वाले प्रत्येक स्थाई और अस्थाई सेल्फी बूथ की लागत हजारों में नहीं बल्कि लाखों की है। यह जानकारी आरटीआई याचिका के जवाब में मध्य रेलवे द्वारा प्रदान की गई थी। जिस पर विवाद शुरू हो गया है। यहां तक कि भारतीय रेलवे ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत जानकारी देने के लिए जोनल रेलवे के लिए मानदंड कड़े कर दिए हैं। वहीं दूसरी तरफ पीएम के सेल्फी पाइंट की बाबत जानकारी प्रदान करने वाले अधिकारी को बिना नोटिस दिए न सिर्फ  मध्य रेलवे के मुख्य पीआरओ पद से ट्रांसफर किया है बल्कि जानकारी देने के लिए कुछ नए नियम भी बनाए गए हैं। अब आरटीआई के तहत दिए जाने वाले सभी जवाब जोनल रेलवे के महाप्रबंधकों या मंडल रेलवे प्रबंधकों की मंजूरी के बाद ही दिए जा सकेंगे।

रेलवे बोर्ड द्वारा महाप्रबंधकों को भेजे गए एक पत्र में कहा गया है कि उसके संज्ञान में आया है कि हाल ही में “जोनल रेलवे और अन्य फील्ड इकाइयों द्वारा  आरटीआई आवेदनों के जवाब की गुणवत्ता खराब हो गई है। कई मामलों में आरटीआई आवेदनों के निपटान की समयसीमा को पार कर लिया गया, जिसके परिणामस्वरूप प्रथम अपीलीय अधिकारी या केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष बड़ी संख्या में अपीलें दायर की गईं है, जिससे न केवल काम की मात्रा बढ़ गई, बल्कि संगठन की बदनामी भी हुई।”

इन समस्याओं से निपटने के लिए एक निर्णय लिया गया है कि अधिनियम में निर्धारित निपटान की समयसीमा का किसी भी कीमत पर अनुपालन किया जाना चाहिए। दूसरी ओर, इसमें यह भी कहा गया है कि गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए, आगे बढ़ने वाले सभी आरटीआई उत्तरों को क्रमशः जोनल रेलवे में महाप्रबंधक (जीएम) और डिवीजनों में मंडल रेलवे प्रबंधकों (डीआरएम) के स्तर पर अनुमोदित किया जाना चाहिए। इसी तरह आरटीआई अधिनियम के तहत प्राप्त पहली अपीलों के जवाब संबंधित जीएम और डीआरएम को दिखाए जाने चाहिए।

यह बदलाव तब लागू किया गया है जब यह बात सामने आई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि वाले प्रत्येक स्थायी सेल्फी बूथ की लागत 6.25 लाख  रुपए  है, जबकि प्रत्येक अस्थायी सेल्फी बूथ की लागत 1.25 लाख रुपए है, जो मंत्रालय के तहत केंद्रीय संचार ब्यूरो द्वारा अनुमोदित लागत है। सूचना एवं प्रसारण विभाग. वास्तव में, उपरोक्त जानकारी एक आरटीआई क्वेरी के जवाब में मध्य रेलवे द्वारा प्रदान की गई थी।

यह विवाद तब और गहरा गया जब अधिकारियों ने मध्य रेलवे के उस सेल्फी पॉइंट से संबंधित जानकारी का खुलासा करने वाले जनसंपर्क अधिकारी का तबादला कर दिया । वो भी तब जब उन्हें इस पद पर महज   सात महीने ही हुए थे। जबकि उक्त पद का कार्यकाल दो साल का है। हालांकि भारतीय रेलवे के अधिकारी इन आरोपों का खंडन कर हैं कि अधिकारी का तबादला सेल्फी पॉइंट पर सामने आई जानकारी के कारण हुआ है और संशोधित दिशा- निर्देशों का इस प्रकरण से कोई लेना-देना नहीं है। वहीं  एक पूर्व रेलवे कर्मचारी, अजय बोस, जिन्होंने एक आरटीआई आवेदन के माध्यम से सेल्फी प्वाइंट पर जानकारी मांगी थी, का कहना है कि  “दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तरी रेलवे से  बूथों पर किए गए खर्च पर प्रतिक्रिया मांगने के लिए दायर आरटीआई का कोई जवाब नहीं मिला।

ट्रांसफर किए गए अधिकारी को मिल चुका है सम्मान

यकायक ही ट्रांसफर कर दिए गए अधिकारी का नाम है डॉ शिवराज मानसपुरे जो अपनी बेहतर छवि के लिए जाने जाते हैं। भुसावल डिवीजन में सीनियर डिविजन कमर्शियल मैनेजर के रूप में उनका कार्यकाल बेहतर रहा था। इस दौरान उन्हें रेलवे की कमाई बढ़ाने, बिना टिकट यात्रा और चोरी से निपटने के लिए किए गए विशेष प्रयासों के लिए सम्मानित किया गया था। यह पुरस्कार केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने 15 दिसंबर, 2023 को दिल्ली में दिया था लेकिन अब उनका अचानक हुए ट्रांसफर ने सबको  चौंका दिया है।

गौरतलब है कि अब तक रेलवे के पास याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई जानकारी प्रदान करने के लिए आरटीआई अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत विभाग के जनसम्पर्क अधिकारी ही लोक सूचना अधिकारी और मुख्य लोक सूचना अधिकारी थे। नए नियमों के तहत अब सभी जवाबों को जोनल रेलवे के महाप्रबंधकों या मंडल रेलवे प्रबंधकों द्वारा मंजूरी दिया जाना जरूरी कर दिया गया है। जिस पर देश की सियासत भी परवान चढ़ने लगी है।

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विपक्षी दल मोदी सरकार पर हमलावर हो गए हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खड़गे ने रेलवे स्टेशनों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरों के साथ “सेल्फी बूथ” स्थापित करना करदाताओं के पैसे की बर्बादी करार दिया है। उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार आरोप लगाते हुए कहा कि विपक्षी राज्यों को सूखा और बाढ़ राहत प्रदान करने के बजाय मोदी सरकार आत्म-मुग्ध प्रचार में जुटी है ।

यहां तक कि राज्यों के लिए मनरेगा फंड भी लंबित हैं। लेकिन इन सस्ते चुनावी स्टंटों पर उदारतापूर्वक सार्वजनिक धन खर्च करने का साहस मोदी में है। कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार ने पहले सशस्त्र बलों को प्रधानमंत्री के प्रमुख कट-आउट के साथ 822 ऐसे सेल्फी पॉइंट स्थापित करने का आदेश देकर देश के बहादुर सैनिकों के खून और बलिदान का राजनीतिक उपयोग किया गया था।

खड़गे ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत प्राप्त उत्तर की एक प्रति भी साझा की जिसमें मध्य रेलवे के तहत उन स्टेशनों को सूचीबद्ध किया गया है जहां अस्थाई और स्थाई सेल्फी बूथ स्थापित किए गए हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने रेलवे स्टेशनों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदमकद ‘कटआउट’ के साथ ‘सेल्फी बूथ’ स्थापित करने को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। राहुल ने पूछा है कि लोग सुलभ रेल यात्रा चाहते हैं या ‘शहंशाह के बूथ ‘ के साथ तस्वीर। राहुल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म  ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में लिखा कि ‘गरीबों की सवारी’ भारतीय रेल के हर वर्ग का किराया बढ़ाया गया। किराए में बुजुर्गों को मिलने वाली छूट तक खत्म कर दी गई , प्लेटफार्म टिकट के दाम बढ़ाए गए, निजीकरण के द्वार खोल दिए गए। जनता की मेहनत की कमाई से निचोड़ा जा रहा यह पैसा क्या ‘सेल्फी स्टैंड’ बनाने के लिए था?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यह रेखांकित करने की कोशिश की कि मानसपुरे का तबादला मोदी सरकार को हुई शर्मिंदगी के कारण दंड के रूप में किया गया है। गांधी ने एक्स पर लिखा “शहंशाह की रजा, सच का इनाम सजा (राजा सच्चाई को सजा देता है)। अब देखना ये होगा कि सेल्फी पर शुरू हुई ये नई सियासत आगे कहां तक जाती है और इस पर सत्ता पक्ष की तरफ से क्या जवाब आता है।

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