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भारत- अमेरिका के बीच ड्रोन्स, फाइटर प्लेन और जेट इंजन को लेकर हुई डील

रूस, ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस दुनिया के ऐसे देश हैं जिन्हें लड़ाकू विमानों में खास तरह के इंजन बनाने की विशेषज्ञता हासिल है । लेकिन अमेरिका और भारत के बीच एक ऐसी डील हुई है, जिसके बाद भारत के पास भी ऐसे खास घातक जेट इंजन होंगे। इस डील के बाद आने वाले समय में भारतीय वायुसेना की ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। इस डील के तहत जीई एयरोस्पेस और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड फाइटर जेट इंजन का निर्माण करेंगे। सौदे का मुख्य आकर्षण GE-F414 का संयुक्त उत्पादन है। इस इंजन की खास बात यह है कि यह एक बार में 98 किलोन्यूटन पावर पैदा करता है। यह डील भारत के लिए कितनी फायदेमंद है और इस डील के बाद चीन और पाकिस्तान क्यों तनाव में हैं।
अमेरिकी कंपनी GE एयरोस्पेस ने भारतीय वायु सेना के हल्के लड़ाकू विमान (LCA)-MK-2 तेजस के लिए जेट इंजन के संयुक्त उत्पादन के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के साथ समझौता किया है। जीई एयरोस्पेस के सीईओ एच. लॉरेंस कल्प जूनियर ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक समझौता है। यह भारत और एचएएल के सहयोग से संभव हुआ है। भारतीय वायु सेना के LCA-Mk-II के लिए 99 इंजनों के निर्माण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह समझौता इसलिए अहम माना जा रहा है क्योंकि अब तक भारत को रूस और यूरोपीय गठबंधन से सैन्य विमान मिलते रहे हैं।

जनरल इलेक्ट्रिक के F414 जेट इंजन की विशेषता है

 
 
GE-F414 इंजन, यह मिलिट्री एयरक्राफ्ट इंजन का हिस्सा है। अमेरिका में इसका इस्तेमाल 30 साल से हो रहा है। जनरल इलेक्ट्रिक एयरोस्पेस द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक कंपनी अब तक 1600 से ज्यादा इंजन की डिलीवरी कर चुकी है। GE-F414 इंजन इसलिए भी खास है क्योंकि यह फुल अथॉरिटी डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल (FADEC) सिस्टम से लैस है। इसके साथ ही इसमें नवीनतम एयरक्राफ्ट इग्निशन सिस्टम भी लगाया गया है। इससे इंजन काफी पावरफुल हो जाता है। अन्य इंजनों की तुलना में अधिक समय तक चलता है। भारत ने क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन बनाने में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है लेकिन उसके पास ऐसी तकनीक नहीं है। जिन देशों के पास इसे बनाने की तकनीक है वे इसे दूसरे देशों के साथ साझा नहीं करते हैं। ऐसे में भारत और अमेरिका के बीच ये डील बेहद अहम है।
भारत को आधे से अधिक सैन्य आपूर्ति रूस से मिलती है। अमेरिका इसे कम करने की कोशिश कर रहा है। चीन के साथ अमेरिका और भारत दोनों के रिश्ते अच्छे नहीं हैं। दोनों देशों के बीच यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब चीन एलएसी के साथ-साथ दक्षिण चीन सागर में भी अपनी ताकत दिखा रहा है। इस डील के बाद भारत सैन्य विमानों के मामले में एशिया का सबसे ताकतवर देश बन जाएगा। चीन ऐसे सैन्य विमानों के लिए रूस पर निर्भर है।

इस डील के बाद भारतीय वायुसेना के पास लंबे समय तक चलने वाले जेट इंजन होंगे। भारत अभी भी रूस से जो जेट इंजन खरीदता है, उसमें शीघ्र सुधार की जरूरत है और जेट इंजन को कई हजार घंटों के बाद ओवरहाल की आवश्यकता होगी। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि जीई इंजन हल्के और अधिक शक्तिशाली हैं।

अमेरिका से 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदेगा भारत

भारत अमेरिका से 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदेगा इन 31 ड्रोन में से 15 ड्रोन भारतीय नौसेना को दिए जाएंगे।  भारतीय सेना को आठ और वायुसेना को आठ ड्रोन दिए जाएंगे। प्रीडेटर ड्रोन मूलतः निगरानी के लिए होते हैं। ये निगरानी ड्रोन हैं। भारतीय नौसेना के पास फिलहाल दो प्रीडेटर ड्रोन हैं। लेकिन ये लीज पर लिए गए हैं। ये ड्रोन निगरानी करने में सक्षम हैं। ये ड्रोन सभी निगरानी उद्देश्यों के लिए हैं। ये हथियारबंद ड्रोन नहीं हैं। लेकिन अब भारत अमेरिका से ड्रोन खरीदेगा, इनमें से 15 नौसेना को दिए जाएंगे, ये सशस्त्र ड्रोन होंगे। यानी इसमें मिसाइलें भी लगाई जा सकती हैं। जिससे भारतीय नौसेना की आवश्यकता पूरी हो जाएगी। 31 ड्रोन में से सबसे बड़ा हिस्सा नौसेना को मिलेगा। हिंद महासागर क्षेत्र के नजरिए से ये बेहद अहम है। चूंकि ये हथियारबंद ड्रोन होंगे तो नौसेना इनका इस्तेमाल निगरानी के लिए जरूर करेगी और जरूरत पड़ने पर इन ड्रोन की मिसाइलें दुश्मन के जहाजों को तबाह कर सकती हैं। वे जहाज-विरोधी के रूप में भी कार्य कर सकते हैं। अगर हम हिंद महासागर क्षेत्र को देखें तो यह पूरा क्षेत्र हमारे देश यानी हिंद महासागर के क्षेत्रफल का तीन गुना है। इसलिए वहां निगरानी करना एक चुनौतीपूर्ण काम है।

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