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AI वॉयस स्कैम के शिकार हो रहे लोग !

‘मेरी आवाज ही मेरी पहचान…’ मशहूर गीतकार गुलजार की लिखी इस लाइन को एआई (AI ) अब गलत साबित कर रहे हैं। आवाज किसी की पहचान हो सकती है लेकिन ये आपके साथ बड़ा धोखा भी हो सकता है। किसी जानी-पहचानी आवाज पर भरोसा न करें। इसके पीछे कोई बदमाश भी हो सकता है। हाल ही में ऑनलाइन सिक्योरिटी फर्म McAfee ने वॉयस स्कैम को लेकर एक सर्वे किया था। इसमें सात देशों के 7054 प्रतिभागियों में से 1054 भारतीय थे। इनमें से करीब आधे लोगों ने माना कि वे खुद या उनका कोई करीबी वॉयस स्कैम का शिकार हुआ है। यह वैश्विक औसत 25% के दोगुने से थोड़ा कम है।

क्या इसका मतलब यह निकाला जाना चाहिए कि बाकी दुनिया की तुलना में भारतीयों को बेवकूफ बनाना और ठगना ज्यादा आसान है? ऐसा ही लगता है लेकिन इसके पीछे हमारी लापरवाही, भावुकता और नासमझी भी हो सकती है। यही कारण है कि इन 1000+ भारतीय प्रतिभागियों में से 83% ऐसे थे जिन्होंने वॉयस स्कैम के चलते अपना पैसा खो दिया था। इनमें से लगभग आधे को पचास हजार रुपये से ज्यादा से हाथ धोना पड़ा।

एआई का उपयोग कर ऑनलाइन वॉयस स्कैम बढ़ रहे हैं। सभी स्कैमर्स को आपकी आवाज की तीन सेकंड की ऑडियो क्लिपिंग चाहिए। इससे वे एआई की मदद से आपकी आवाज में कोई भी आपात संदेश तैयार कर अपने दोस्तों या रिश्तेदारों को भेज सकते हैं और उनसे पैसे की मांग कर सकते हैं। उन्हें लगेगा कि आपको लूट लिया गया है या आपकी कार का एक्सीडेंट हो गया है या आपका फोन या पर्स खो गया है। दोस्तों-परिचितों की बात तो छोड़िए, पति-पत्नी या मां-बाप भी धोखा खा जाते हैं जब अपना ही कोई मुसीबत में पड़ जाता है। McAfee के सर्वेक्षण से पता चलता है कि लगभग सत्तर प्रतिशत लोग यह नहीं पहचानते कि यह आवाज़ आपकी नहीं है। और वे स्कैमर की बातों पर विश्वास करते हैं। और अनजाने में उन 83 प्रतिशत लोगों में शामिल हो गए जिन्होंने वॉयस स्कैमिंग के लिए पैसे खोने की बात स्वीकार की है। जो विश्वास नहीं करते वे बच गए हैं।

आप कितने भी स्मार्ट क्यों न हों, आपको यह मानना होगा कि एआई कई मायनों में हमसे ज्यादा स्मार्ट साबित हो रहा है। सिर्फ आपके कान ही नहीं, आपकी आंखें भी धोखा खा सकती हैं। यदि आप एआई से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, तो आप अपने कानों (आवाज) से जो सुनते हैं वह झूठ हो सकता है, अपनी आंखों से देखे गए दृश्य भ्रामक हो सकते हैं।

करीब दो हफ्ते पहले कनाडा के मशहूर रैपर ड्रेक का एक गाना ‘हर्ट ऑन माई स्लीव’ एपल और स्पॉटिफाई जैसे म्यूजिक स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुआ और यह काफी हिट हुआ। लेकिन जैसे ही पता चला कि गाना ड्रेक ने नहीं गाया था, बल्कि एआई प्रोग्राम की मदद से तैयार किया गया था, इसे सभी प्लेटफॉर्म से हटा दिया गया था।

इंटरनेट की दुनिया में एआई-निर्मित व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। लेकिन लोग वास्तविक व्यक्तियों की तुलना में उन पर अधिक भरोसा करते हैं। ये इनकी तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं और इनसे काफी खुलकर बात करते हैं। पिछले साल लंदन की रॉयल हॉलवे यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के प्रोफेसर मनोस सकिरिस ने इस बारे में गहन शोध किया था। उनका कहना है कि कंप्यूटर जनित ये तस्वीरें हमारे जीवन का हिस्सा बन गई हैं। ये तस्वीरें असली लोगों के चेहरों के डेटाबेस पर आधारित सॉफ्टवेयर के जरिए बनाई गई हैं। इनके इस्तेमाल से कोई भी फंस सकता है।

टेक्नोलॉजी ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बहुत शक्तिशाली बना दिया है और हम इसके सामने बहुत बौने हैं। आवाजों की नकल उतारना, नकली तस्वीरें बनाना बहुत शुरुआती तरकीबें हैं। अब तकनीक इतनी आगे बढ़ चुकी है कि जेनेरेटिव एआई से लेकर फेक वीडियो तक तैयार किए जा रहे हैं।

द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटिश पत्रकार इलियट हिगिंस ने एआई की बढ़ती शक्ति के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक यथार्थवादी वीडियो बनाया। एआई द्वारा बनाए गए इस वीडियो में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की गिरफ्तारी, मुकदमे, जेल जीवन और उनके जेल से भागने की घटनाएं कभी नहीं हुई थीं। कई जगहों पर एआई की मदद से असली दिखने वाले समाचार प्रस्तुतकर्ता बनाए जा रहे हैं और उनके माध्यम से अपने हितों और लक्ष्यों को साधने के लिए फर्जी खबरें पेश की जा रही हैं।आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दुरुपयोग के खतरे समाचार, गाने, वॉयस स्कैम, फर्जी प्रोफाइल तक ही सीमित नहीं हैं। इस तेजी से बढ़ती तकनीक का एक और स्याह पक्ष डीपफेक पोर्न के रूप में लोगों को डराने लगा है। जबकि किसी के शरीर पर प्रसिद्ध हस्तियों के चेहरे चिपकाए गए अश्लील वीडियो क्लिप वर्षों से हैं। लेकिन अब एआई ने डीपफेक क्रिएटर्स की एक नई, और बहुत बड़ी नस्ल बनाई है।

ये लोग ऑनलाइन प्रभावित करने वालों, पत्रकारों, मॉडलों को निशाना बनाते हैं। और इसी तरह के वीडियो उनके पब्लिक प्रोफाइल से तस्वीरें खींचकर तैयार कर इंटरनेट पर डालते हैं। कुछ क्रिएटर्स अपने ग्राहकों को उनकी पसंदीदा हस्तियों के साथ अंतरंग वीडियो बनाकर उनकी यौन कल्पनाओं को पूरा करने की पेशकश करते हैं। कुछ लोग अपने ‘एक्स-पार्टनर’ से बदला लेने के लिए अपनी अश्लील वीडियो क्लिपिंग बना लेते हैं या नेट पर डाल देते हैं। जनरेटिव एआई टूल्स ने ऐसी गतिविधियों को करना बहुत आसान बना दिया है।

बेशक यह एक साइंस फिक्शन कहानी लगती है। लेकिन आभासी दुनिया हमारी कल्पना से परे फैल चुकी है। यूके की एक शोध कंपनी जुनिपर रिसर्च का अनुमान है कि 2024 तक एआई संचालित वर्चुअल वॉयस असिस्टेंट की संख्या 8.4 बिलियन तक पहुंच जाएगी। यानी धरती पर इंसानों की कुल आबादी से ज्यादा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से पैदा हुए लोगों की संख्या भी लाखों में है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब आभासी पुरुष और महिलाएं हमारे पूरे जीवन को नियंत्रित और निर्देशित करते नजर आएंगे।

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