जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन 9 और 10 सितंबर को भारत की राजधानी नई दिल्ली में होने जा रहा है। इसकी तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो गई हैं। विभिन्न देशों से आने वाले प्रतिनिधिमंडलों को किसी तरह की दिक्कत न हो, इसके लिए राजधानी में हर तरह के इंतजाम किये जा रहे हैं। दुनिया भर में जी-20 को ग्रुप ऑफ 20 के नाम से भी जाना जाता है। इस अंतरराष्ट्रीय मंच का उद्देश्य दुनिया भर में आर्थिक सहयोग और स्थिरता बनाए रखना है। हर साल दुनिया के अलग-अलग देशों में जी -20 बैठक का आयोजन किया जाता है, जहां जी-20 सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष, वित्त मंत्री, राजनयिक एक साथ आकर वैश्विक अर्थव्यवस्था और विभिन्न आर्थिक मुद्दों पर राय बनाकर नीतियां बनाते हैं। जी-20 में कुल 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं।
जी-20 में शामिल देश
भारत
अमेरिका
चीन
रूस
ब्राजील
कनाडा
अर्जेंटीना
ऑस्ट्रेलिया
फ्रांस
जर्मनी
इंडोनेशिया
इटली
जापान
मेक्सिको
कोरिया गणराज्य
सऊदी अरब
दक्षिण अफ्रीका
तुर्किये
यूके
यूरोपीय संघ
इन अहम मुद्दों पर होगी चर्चा
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले ये नेता उन विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा करेंगे जिनका दुनिया इस समय सामना कर रही है। जी-20 देशों की बैठकों में जलवायु परिवर्तन का मुद्दा हमेशा चर्चा का एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। इस बार इस सम्मेलन में और भी कई मुद्दे शामिल होने जा रहे हैं। सम्मेलन के अंत में सहमति बनने के बाद सभी देश मिलकर एक संयुक्त बयान जारी करेंगे।
विश्व बैंक-आईएमएफ में सुधार: इस बार जी-20 शिखर सम्मेलन में विश्व बैंक और आईएमएफ जैसे मल्टीलेटरल विकास बैंकों में सुधार करने पर चर्चा होगी। भारत अपनी अध्यक्षता के दौरान इस एजेंडे को प्रमुखता से बढ़ावा देगा। इसका कारण यह है कि इन संस्थाओं का गठन लगभग 80 वर्ष पहले द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ था। तब से लेकर अब तक दुनिया में कई बदलाव हुए हैं, विश्व व्यवस्था बदली है, इसलिए इन संस्थाओं को आज के भू-राजनीतिक माहौल के हिसाब से मजबूत करने की जरूरत है। इसके साथ ही यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक, अफ्रीकन डेवलपमेंट बैंक, एशियन डेवलपमेंट चेंजेस बैंक, यूरोपियन बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन, इंटर-अमेरिकन डेवलपमेंट बैंक और एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक में भी बदलाव होना है।
जलवायु परिवर्तन : इस बार इस सम्मेलन में दूसरे मुद्दों के साथ जलवायु परिवर्तन का मुद्दा भी शामिल होगा। कई रिपोर्ट्स और मौजूदा हालात ये बता चुके हैं कि इस मामले में फंडिंग और कुछ सख्त कदम उठाने की कितनी ज्यादा आवश्यकता है। जी 20 देशों के इस सम्मेलन के जरिए कोशिश होगी कि इस दौरान ‘सस्टेनबल डेवलपमेंट गोल्स 2030’ को पूरा करने पर भी बल दिया जाए। एक अनुमान के मुताबिक साल 2030 तक हर साल 3,000 अरब डॉलर के निवेश से ही इस लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है।
क्रिप्टोकरेंसी : दुनिया भर में क्रिप्टोकरेंसी को लेकर क्रेज तो हैं लेकिन नियम कायदे और राय अलग अलग है। इसलिए उद्देश्य यह भी रहेगा कि सम्मेलन में क्रिप्टोकरेंसी पर एक तरह के नियम कायदे बनाए जाए।
दुनिया की खाद्य सुरक्षा: दुनिया के कई देश खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। ऐसे समय में इस बार जी-20 सम्मेलन में दुनिया की खाद्य सुरक्षा भी चर्चा का अहम विषय रहेगी। खाद्य असुरक्षा के कारण में रूस-यूक्रेन युद्ध और उसके वजह उपजी आर्थिक मुसीबतें भी हैं। जिसने खाद्यान्नों का महंगा कर दिया है।
छोटे और कमजोर देशों को कर्ज: कोविड काल के दौरान कई छोटे और कमजोर देशों की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल हो गई थी जिसके चलते उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। वह कर्ज के सहारे खुद को जीवित रखे हुए हैं। इसलिए कमजोर और छोटे देशों की आर्थिक स्थिति को सुधारना भी इस मीटिंग में शामिल उद्देश्यों में से एक है। जी-20 देशों के सम्मेलन में इस बार कर्ज की रीस्ट्रक्चरिंग, न्यूनतम ग्लोबल कॉरपोरेट टैक्स इत्यादि पर चर्चा होगी।
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पुतिन और शी जिनपिंग नहीं होंगे शामिल
चीन और रूस के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन ने आने भारत आने से इनकार कर दिया है। ऐसे में मेजबान भारत के सामने बड़ी चुनौती ये खड़ी हो गई कि इस ग्रुप में शामिल देशों का साझा बयान कैसे जारी किया जाए जो कि एक अहम दस्तावेज होता है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने काफी दिनों पहले ही ये साफ कर दिया है कि वह जी-20 में हिस्सा लेने भारत नहीं आ रहे हैं। उनकी जगह रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव बैठक में हिस्सा लेंगे। अब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी जी 20 सम्मेलन में आने से मना कर दिया है। जिनपिंग ने कहा है कि प्रधानमंत्री ली क्यांग जी-20 में चीन का प्रतिनिधित्व करेंगे। दोनों देशों ने अपने राजनीतिक कारणों का हवाला दिया है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन द्वारा सैन्य अभियान से जुड़े कार्य को न आने का कारण बताया गया है। वहीं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा कोई कारण स्पष्ट नहीं किया गया है।
दो दिवसीय सम्मेलन के बाद सभी देश एक संयुक्त बयान जारी करते हैं। इस बयान में अमेरिका और यूरोपीय देश रूस-यूक्रेन युद्ध की चर्चा और इसके लिए रूस को जिम्मेदार ठहराने वाले बयान को जी-20 के संयुक्त बयान में शामिल करना चाहते थे। अब दोनों नेताओं की गैरमौजूदगी में इस बयान पर रोक लगने की चर्चा है।
इसके अलावा राजनीति के विशेषज्ञों के मुताबिक, कई बार कॉन्फ्रेंस में किसी फैसले को लेकर आम सहमति बनाने के लिए सभी शीर्ष नेताओं से बात करनी पड़ती है और सभी नेताओं की वहां मौजूदगी के कारण ही कई बार कोई न कोई समाधान निकल ही आता है। लेकिन, इस सम्मेलन में रूस और चीन के राष्ट्रपतियों की जगह उनके जूनियर हिस्सा ले रहे हैं, ऐसे में बातचीत के जरिए किसी फैसले को अंजाम तक पहुंचाना लगभग नामुमकिन हो गया है। संयुक्त बयान जारी करने की जिम्मेदारी भारत पर है क्योंकि इस बार सम्मेलन उसी की अध्यक्षता में हो रहा है।
कौन-कौन शामिल
भारत, जी-20 समूह के वर्तमान अध्यक्ष के रूप में इस सम्मेलन की मेजबानी करेगा, जिसमें यूरोपीय संघ और आमंत्रित देशों के 30 से अधिक राष्ट्राध्यक्षों और शीर्ष अधिकारियों और 14 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों के भाग लेने की उम्मीद है। जी-20 समूह में ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, कनाडा, ब्राजील, फ्रांस, चीन, भारत, जर्मनी, इटली, जापान, इंडोनेशिया, मैक्सिको, कोरिया गणराज्य, सऊदी अरब, रूस, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका, यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ ( यूरोपीय संघ)। और अमेरिका शामिल हैं।
हर साल अलग देश करता है अध्यक्षता
हर वर्ष इसकी अध्यक्षता जी-20 का कोई एक सदस्य देश करता है। फिर वह इसे दूसरे सदस्य देश को सौंप देता है। जैसे पिछले साल इंडोनेशिया ने भारत को अध्यक्षता सौंपी थी। इस साल भारत ब्राजील को अध्यक्षता पद सौंप देगा।
कई देशों और संगठनों को किया जाता है आमंत्रित
इसमें जी-20 देशों के अलावा अध्यक्ष देश द्वारा दूसरे देशों और कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठनों को भी अतिथि के तौर पर न्योता दिया जाता है। यूनाइटेड नेशंस, इंटरनेशनल मोनेटरी फंड, वर्ल्ड बैंक, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन, वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन जैसे संगठन जी-20 में हमेशा से ही आमंत्रित किए जाते रहे हैं।
इस बार अतिथि के रूप में 9 देशों को आमंत्रण
इस साल जी-20 की अध्यक्षता भारत के पास है। भारत द्वारा नौ देशों को अतिथि के तौर आमंत्रित किया गया है। इन देशों में बांग्लादेश, मिस्र, मॉरिशस, नीदरलैंड्स, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और यूएई शामिल हैं।
क्या है जी-20 के शेरपा?
जी-20 के राष्ट्राध्यक्ष साल में एक बार मिलते हैं और वह भी कुछ घंटों के लिए लेकिन उनका एक विशेष प्रतिनिधि होता है जिसे जी-20 शेरपा कहा जाता है। शेरपा दरअसल उस समुदाय के लोगों को कहते हैं जो पर्वतारोहियों के साथ उनका सामान लेकर जाते हैं और उनके काम को आसान बनाते हैं। जी-20 के शेरपा भी उसी तरह अपने-अपने राष्ट्राध्यक्षों का काम आसान बनाते हैं। सभी सदस्य देशों के शेरपा बैठकों के जरिए अलग-अलग मुद्दों पर आपसी सहमति बनाने की कोशिश करते हैं। शिखर बैठक से ठीक पहले हरियाणा के नूंह में जी-20 शेरपाओं की मैराथन बैठक में अलग-अलग मुद्दों पर समझौतों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
जी-20 के सामने आई हैं कई चुनौतियां
जी-20 को कोरोना महामारी, 2008 का वित्तीय संकट, ईरान का परमाणु कार्यक्रम और सीरियाई गृहयुद्ध जैसी चुनौतियों से गुजरना पड़ा है। यूक्रेन-रूस युद्ध और इसके परिणामस्वरूप वैश्विक खाद्य आपूर्ति में व्यवधान इसकी वर्तमान चुनौतियां हैं। यूक्रेन युद्ध के चलते जी-20 दो खेमों में बंटा नजर आ रहा है। एक तरफ अमेरिका और पश्चिमी देश हैं तो दूसरी तरफ रूस और चीन जैसे देश हैं, जहां अमेरिका खुलेआम कह रहा है कि वह यूक्रेन के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगा, वहीं रूस का तर्क है कि जी-20 एक आर्थिक मंच और इसका फोकस आर्थिक सहयोग पर ही रहना चाहिए। भू-राजनीति और युद्ध जैसे मुद्दों को इससे दूर रखा जाना चाहिए।
महत्वपूर्ण क्यों जी-20
जी-20 देशों का दुनिया की जीडीपी में 85 प्रतिशत योगदान है। साथ ही विश्व व्यापार में भी उनकी 75 फीसदी हिस्सेदारी है। साथ ही दुनिया की दो-तिहाई आबादी जी-20 देशों में रहती है। जी-20 का मूल एजेंडा आर्थिक सहयोग और वित्तीय स्थिरता है, लेकिन समय के साथ इसमें व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वास्थ्य, कृषि और भ्रष्टाचार विरोधी एजेंडा भी शामिल हो गया है।