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मानवाधिकार हनन को लेकर निशाने पर भारत

विश्व भर के देशों में आए-दिन मानवाधिकारों को लेकर चिंतन होता रहता है। लेकिन कई देशों में बड़े पैमाने पर मानवाधिकार हनन हो रहा है जिसमें भारत भी शामिल है। ये अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है। भारत के लिए जारी रिपोर्ट चौंकाने वाली है। इस रिपोर्ट में भारत में मनमानी गिरफ्तारी, हिरासत में मौत, अल्पसंख्यकों के खिलाफ धार्मिक हिंसा, अभिव्यक्ति की आजादी, मीडिया पर प्रतिबंध, पत्रकारों पर मुकदमे और बहुत अधिक प्रतिबंधात्मक कानूनों को लेकर चिंता जाहिर की गई है।

अमेरिकी विदेश विभाग ने भारत पर अपनी 2021 की मानवाधिकार रिपोर्ट में लगातार बढ़ रही मनमानी गिरफ्तारी, हिरासत में मौत, अल्पसंख्यकों के खिलाफ धार्मिक हिंसा, अभिव्यक्ति की आजादी, मीडिया पर प्रतिबंध, पत्रकारों पर मुकदमे और बहुत ज्यादा प्रतिबंधात्मक कानूनों को लेकर चिंता जताई गई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन सब मुद्दों पर पहले भी प्रकाश डाला जा चुका है। फिर भी सरकार के स्तर से इस पर कोई जवाब नहीं दिया जा रहा। रिपोर्ट में चीन की राजनीतिक व्यवस्था और मानवाधिकार स्थिति पर भी चिंता जताई गई है। चीन न इस पर सख्त लहजे में जवाब दिया है।

भारत पर रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय कानून मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और जेल में डालने से रोकता है। लेकिन 2021 में ये दोनों हुए। यहां तक कहा गया है कि पुलिस ने विशेष सुरक्षा कानूनों के माध्यमों से कोर्ट में गिरफ्तारियों की समय पर सुनवाई तक नहीं होने दी। कई मामलों में तो मनमाने ढंग से इतने दिनों तक जेल में रखा गया कि उस अपराध की उतनी सजा भी नहीं होती। 12 अप्रैल को राज्य सचिव एंटनी ब्लिंकन ने मानवाधिकारों पर देश की रिपोर्ट यूएस कांग्रेस के सामने सौंपी। रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त व्यक्ति, नागरिक, राजनीतिक, कार्यकर्ताओं से चर्चा के बाद तैयार की जाती है।

दिशा रवि, कवि वरवर राव, मुनव्वर फारुकी
रिपोर्ट में मनमाने ढंग से हिरासत में लिए जाने के मामलों में फरवरी 2021 में जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि, मानवाधिकार कार्यकर्ता हिदमे मरकाम और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बार-बार नजरबंदी का जिक्र है। इसके अलावा भीमा कोरेगांव विरोध के सिलसिले में कैद किए गए 15 कार्यकर्ताओं में से अधिकांश को जमानत देने से इनकार किया गया, इस पर भी विस्तृत चर्चा है। 81 वर्षीय कवि वरवर राव और स्टेन स्वामी के मामलों की भी चर्चा है जिन्हें विशेष एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) अदालत ने मेडिकल आधार पर की गई जमानत याचिकाओं को भी खारिज कर दिया और बाद में फादर स्टेन स्वामी की मौत हो गई।

पेगासस मैलवेयर के माध्यम से पत्रकारों की निगरानी पर हुई मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया है कि कैसे सरकार ने मनमाने और गैर कानूनी तरीके से टेक्नोलॉजी की मदद लेकर निजता का उल्लंघन किया है। यह देखते हुए कि सरकार आम तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करती है। रिपोर्ट कहा गया है कि ऐसे उदाहरण भी थे जिनमें सरकार या सरकार के करीबी माने जाने वाले अभिनेताओं ने सरकार की आलोचना करने वाले मीडिया आउटलेट्स पर कथित तौर पर दबाव डाला या उन्हें परेशान किया, इसमें ऑनलाइन ट्रोलिंग भी शामिल है।

रिपोर्ट में स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी पर बात हुई है जिन्हें मध्य प्रदेश पुलिस ने कॉमेडी के दौरान धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए गिरफ्तार किया था। 1 फरवरी 2021 के सरकार के आदेश का भी जिक्र है जिसमें ट्विटर को तीन कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को कवर करने वाले पत्रकारों के अकाउंट को ब्लॉक करने का निर्देश दिया गया था।

जिन अन्य मामलों पर रिपोर्ट में जिक्र किया गया है उनमें सामाजिक कार्यकर्ता एरेन्ड्रो लीचोम्बम की गिरफ्तारी का मामला भी है जिन्होंने फेसबुक पर भाजपा नेता के उस बयान की आलोचना की थी जिसमें उन्होंने कोविड 19 के इलाज के गाय के गोबर और मूत्र की वकालत की थी। इसके अलावा प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की आलोचना करने पर तमिलनाडु पुलिस ने कैथोलिक पादरी जॉर्ज पोन्नैया को अरेस्ट किया था, इस घटना पर चर्चा है। फ्रीडम ऑफ एसोसिएशन की रिपोर्ट में एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के मामलों पर प्रकाश डाला गया जिनकी संपत्ति प्रवर्तन निदेशालय ने जब्त कर ली गई थी।

रिपोर्ट में हिरासत में हुई मौतों पर सवाल
पुलिस और न्यायिक हिरासत में मारे गए या मारे गए कैदियों या बंदियों की रिपोर्ट भी जारी हुई है। मार्च में नेशनल कैंपेन अगेंस्ट टॉर्चर ने 2020 में पुलिस हिरासत में 111 लोगों की मौत हुई। रिपोर्ट में कहा गया है कि 82 मौतें कथित यातना कारण हुईं। उत्तर प्रदेश और गुजरात में हिरासत में सबसे अधिक 11 लोगों की मौत हुई, इसके बाद मध्य प्रदेश में 10 लोगों की मौत हुई। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक अलग जेल सांख्यिकी (पीएसआई) रिपोर्ट ने 2020 में न्यायिक हिरासत में 1,887 कैदियों की मौत दर्ज हुई है। रिपोर्ट में जेल में सबसे ज्यादा मौत प्राकृतिक कारणों से हुई और कहा गया कि हिरासत में सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में हुईं।

18 जून को एक दलित महिला संदिग्ध चोरी के आरोप में पुलिस हिरासत में गिर गई और उसकी मौत हो गई। तेलंगाना हाई कोर्ट ने पीड़िता की पीट-पीट कर हत्या करने के आरोपों की जांच का आदेश दिया। तेलंगाना सरकार ने हिरासत में हुई मौत में शामिल होने के लिए तीन पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया और परिवार के सदस्यों को मुआवजा प्रदान किया। 22 जुलाई को रवि जादव और सुनील पवार एक आदिवासी समुदाय के दो सदस्य, जो साइकिल चोरी के मामले में शामिल थे, गुजरात के नवसारी जिले के एक पुलिस स्टेशन के अंदर लटके पाए गए। हिरासत में हुई मौतों के सिलसिले में तीन पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया और 18 सितंबर को नवसारी पुलिस ने पीड़ितों के परिवार के सदस्यों को मुआवजा दिया।

अमेरिका की इस मानवाधिकार रिपोर्ट पर बहस शुरू हो गई है। हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भारत में मानवाधिकार उल्लंघन के संबंध में बोला था। उन्होंने कहा था कि अमेरिका भारत में हो रहे कुछ हालिया चिंताजनक घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए है। इनमें कुछ सरकारी, पुलिस और जेल अधिकारियों की मानवाधिकार उल्लंघन की बढ़ती घटनाएं शामिल हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वाशिंगटन में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के साथ भारत-अमेरिका ‘2$2’ मंत्र स्तरीय वार्ता में हिस्सा लिया। वहीं विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साफ किया है कि 2$2 मंत्री स्तरीय बैठक में अमेरिका में उनके समकक्ष एंटनी ब्लिंकन के साथ मानवाधिकार के मुद्दे पर उनकी कोई बातचीत नहीं हुई। उन्होंने दो-टूक कहा कि जब भी इस पर चर्चा होगी तो भारत बोलने से पीछे नहीं हटेगा। ब्लिंकन के बयान का इशारों में जिक्र कर जयशंकर ने यह भी कह दिया कि अमेरिका के बारे में भारत भी अपने विचार रखता है।

रिपोर्ट को चीन ने दिया झूठा करार
राष्ट्रीय मानवाधिकार रिपोर्ट पर चीन की राजनीतिक व्यवस्था और मानवाधिकार स्थिति पर हमला किया गया। इस पर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लीच्येन ने 13 अप्रैल को कहा कि अमेरिका की तथाकथित राष्ट्रीय मानवाधिकार रिपोर्ट की चीन से संबंधित सामग्री और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन की टिप्पणी तथ्यों की उपेक्षा करती है, सही और गलत को भ्रमित करती है और राजनीतिक झूठ और वैचारिक पूर्वाग्रह से भरी होती है।

चीन इससे असंतुष्ट है और इसका कड़ा विरोध करता है। चाओ लीच्येन ने कहा कि चीन में मानवाधिकारों की स्थिति कैसी है, चीनी लोगों के अपने मानक हैं, अंतरराष्ट्रीय समुदाय लंबे समय से चीन सरकार की शासन क्षमता के बारे में जानता है। इनमें से किसी को भी कुछ शब्दों या अमेरिका में कुछ लोगों द्वारा जारी एक रिपोर्ट द्वारा बदनाम नहीं किया जा सकता है। साल दर साल, अमेरिकी सरकार तथाकथित मानवाधिकार रिपोर्ट का इस्तेमाल चीन को बदनाम करने और दुनिया के कई देशों पर हमला करने के लिए करती है।

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक यह सही समय है कि जब भारत को भी अमेरिका में मानवाधिकारों की स्थिति पर उसे चेतावनी जारी करनी शुरू कर देनी चाहिए और भारत को भी कहना चाहिए कि वो अमेरिका में मानवाधिकारों के उल्लंघन को मॉनिटर कर रहा है। इसी महीने की 3 तारीख को अमेरिका के न्यूयॉर्क में सिख समुदाय के दो लोगों के खिलाफ नस्लीय हिंसा हुई थी, जिसमें ये लोग बुरी तरह घायल हो गए थे लेकिन इस घटना का जिक्र अमेरिका ने अपनी इस रिपोर्ट में कहीं नहीं किया है। अमेरिका को भी ये जानना चाहिए कि वो सरपंच बन कर दुनियाभर के देशों को मानवाधिकारों पर लेक्चर देता है। लेकिन असल में खुद अमेरिका में मानवाधिकारों की स्थिति बहुत खराब है।

4 अप्रैल को अमेरिका के Michigan में एक पुलिसकर्मी द्वारा एक अश्वेत नागरिक पर हमला किया गया था। इस व्यक्ति की गलती ये थी कि इसकी कार पर गलत नंबर प्लेट लगी हुई थी और ऐसे मामले में इसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए था लेकिन ये व्यक्ति अश्वेत था इसलिए इसे पुलिस द्वारा बेरहमी से पीटा गया। वर्ष 2020 में अमेरिका में अश्वेत नागरिकों के खिलाफ हिंसा की 2 हजार 871 घटनाएं हुई थीं। ये घटनाएं 2019 के मुकाबले 49 प्रतिशत ज्यादा हैं। आपको याद होगा 25 मई 2020 को भी अमेरिका में George Floyd नाम के एक अश्वेत नागरिक की पुलिस द्वारा हत्या कर दी गई थी और तब इस घटना के बाद अमेरिका में ठसंबा स्पअमे डंजजमत नाम से आंदोलन चलाया गया था लेकिन अमेरिका कभी अपने देश में मानवाधिकारों की इस खतरनाक स्थिति पर कोई बात नहीं करता।

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