जिस प्रकार हर एक कोस पर पानी का स्वाद बदलता है उसी प्रकार भाषा भी बदलती है। भारत सबसे ज्यादा भाषाओं और बोलियों का प्रयोग करने वाला देश है जहां अनेक भाषाओं को मानने वाले लोग रहते हैं। लेकिन विवधताओं के इस देश में धीरे धीरे लोक भाषाएं विलुप्त होती जा रही हैं
“कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी” यह कहावत भारत की भाई विविधता को व्यक्त करती है जिसका अर्थ है जिस प्रकार हर एक कोस पर पानी का स्वाद बदलता है उसी प्रकार भाषा भी बदलती है। भारत सबसे ज्यादा भाषाओं और बोलियों का प्रयोग करने वाला देश है जहां अनेक भाषाओं को मानने वाले लोग रहते हैं। लेकिन विवधताओं के इस देश में धीरे धीरे लोक भाषाएं विलुप्त होती जा रही हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं। खासकर बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखण्ड और गुजरात जैसे प्रदेश अपनी सांस्कृतिक विविधता और लोकसंपदा की समृद्धता के कारण पहचाने जाते रहे हैं। इनका अपना लोक संसार रहा है लेकिन अब यह खत्म होने की कगार पर हैं। कारण यह कि जिस भाषा में यह लोक संसार रचा– बसा है, वही भाषा,बोली अब खत्म होती जा रही है।
दरअसल इन दिनों बिहार की “थारू” और “सूरजापुरी” भाषा को लेकर कहा जा रहा है कि ये दोनों भाषाएं विलुप्त होने की कगार पर है । विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि यदि इन्हें पुनर्जीवित करने के लिए कदम नहीं उठाए गए, तो ये दोनों भाषाएं भोजपुरी, मैथिली, हिंदी और बांग्ला में घुल-मिल जाएंगी। थारू भाषा भोजपुरी और मैथिली के मेल से बनी है तथा यह थारू समुदाय द्वारा मुख्य रूप से पश्चिमी और पूर्वी चंपारण जिलों में बोली जाती है।सूरजपुरी भाषा बंगला, मैथिली और हिन्दी के मेल से बनी है और इसको बोलने वाले मुख्य रूप से राज्य के किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और ररिया जिलों में वास करते हैं।
बिहार के उपमुख्यमंत्री और कटिहार से चार बार विधायक रहे तारकिशोर प्रसाद कहते हैं कि मेरे निर्वाचन क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में सूरजापुरी भाषा बोली जाती है लेकिन यह सच है कि इस भाषा में अब विविधता देखी जा रही है जो लोग पहले सूरजापुरी भाषा बोलते थे, अब बंगला, मैथिली और हिंदी में बातचीत करना पसंद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ”निश्चित रूप से इस मामले को देखेंगे और अधिकारियों से कहेंगे कि वे इस भाषा के पुनरुद्धार के तरीकों का पता लगाएं। इस भाषा को ‘किशनगंजिया’ नाम से भी जाना जाता है।
इसी तरह की राय व्यक्त करते हुए राज्य सरकार की बिहार हेरिटेज डेवलपमेंट सोसाइटी (बीएचडीएस) के कार्यकारी निदेशक बिजॉय कुमार चौधरी कहते हैं कि अगर इन दो भाषाओं को पुनर्जीवित नहीं किया गया तो, ये दोनों भाषाएं गायब हो जाएंगी, क्योंकि लोग भोजपुरी, मैथिली, हिन्दी और बंगला जैसी अन्य प्रमुख भाषाओं को बोलना पसंद करते हैं।
राज्य सरकार के कला, संस्कृति और युवा विभाग की एक शाखा के रूप में कार्यरत बीएचडीएस बिहार की मूर्त और अमूर्त विरासत के संरक्षण और प्रचार के लिए काम करती है। बिहार में संबंधित अधिकारियों के पास थारू भाषा बोलने वाले लोगों की कुल संख्या का आंकड़ा नहीं है। समुदाय के रूप में थारू लोग उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और बिहार में स्थित हिमालय की तलहटी और नेपाल के दक्षिणी वन क्षेत्रों में रहते हैं। सूरजापुरी भाषा बोलने वालों का एक बड़ा हिस्सा पूर्णिया जिले के ठाकुरगंज प्रखंड से सटे नेपाल के झापा जिले में रहता है।
भारत में कितनी भाषाएं बोली जाती हैं
संविधान की आठवीं अनुसूची के अनुसार भारत में 22 भाषाओं को संविधानिक रूप से मान्यता प्राप्त है। जिसमें असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी शामिल हैं। पहले इनकी संख्या 14 थी।इसके अलावा लगभग 100 भाषाएं हैं जिन्हें आधिकारिक दर्जा प्राप्त नहीं है। भाषाओं के अतिरिक्त अगर इसमें इनकी उपबोलियों को भी मिला दिया जाय तो एक अनुमान के अनुसार इनकी सांख्या लगभग 19 हज़ार है।
आधिकारिक रूप ये भाषाएं जिनका प्रयोग भारत में आधिकारिक कार्यों के लिए किया जाता है। वो है हिंदी और अंग्रेजी। पहले इसमें अंग्रेजी को स्थान नही दिया गया था बाद में “द ऑफिसियल लैंग्वेजेज एक्ट-1963” के अंग्रेजी को भी इसमें जोड़ा गया।
भाषाओं के विलुप्त होने का कारण
इन भाषाओं को बोलने वालों की संख्या या तो कम हो गई है या खत्म ही हो गई है। काफी बड़ी तादाद में लोग अपनी मातृभाषा को छोड़ते जा रहे हैं और अन्य भाषाएं अपनाते जा रहे हैं। गांवों से शहर की ओर पलायन के कारण भी लोग अपनी भाषाओं को भूलते जा रहे हैं और अन्य राज्यों की भाषा को अपनाते चले जा रहे हैं।
शोधकर्ताओं द्वारा इसका एक अन्य कारण भारत की शिक्षा व्यव्स्था को बताया जा रहा है। जहां केवल कुछ ही भाषाओं को महत्व दिया जाता और अन्य भाषाओं को नजरंदाज कर दिया जाता है। भारत के राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने कहा था “राष्ट्र के जो बालक अपनी मातृभाषा में नहीं बल्कि किसी अन्य भाषा में शिक्षा पाते हैं, वे आत्महत्या करते हैं। इससे उनका जन्मसिद्ध अधिकार छिन जाता है।” शोधकर्ताओं के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में अन्य भाषाओं के ज्ञान का विस्तार करना आवश्यक है। साथ ही शिक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं को भी महत्व दिया जाना चाहिए, जिससे उन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सके।
अन्य देशों में भी संकट में लोक भाषाएं
भारत ही नहीं यह त्रासदी पूरे संसार में फैली हुई है। पहले विश्व में लगभग 16 हजार भाषाएं बोली जाती थीं। लेकिन मौजूदा समय में लगभग 2 हजार 500 भाषाएं संकटग्रस्त हैं अर्थात लुप्त होने की कगार पर हैं । वहीं कुछ भाषाएं तो ऐसी हैं जिसे जानने ओर समझने वाले मात्र 1000 से भी काम संख्या में रह गए हैं । यूनेस्को की रिपोर्ट ‘एटलस ऑफ वल्र्ड्स लार्जेस्ट लैंग्वेज इन डेंजर-2009’ के अनुसार बताया गया था कि “मौजूदा सभी भाषाओं में से तकरीबन 90 फीसदी भाषाएं अगले 100 वर्षों में अपना वजूद खो सकती हैं।”
जो भाषाएं पूर्ण रूप से लुप्त हो गई
भारत से भाषाएं व बोलियां तेजी से विलुप्त होती जा रही हैं तो कुछ भाषाएं उसी की राह पर चल रही हैं। हाल ही में विलुप्त हुई कुछ भाषाएं हैं
‘याहगनी’ मैगलन और चिली की भाषा, ‘तुले- कवाह योकुत्सो की वुक्चुमनी बोली’ कैलिफोर्निया की, ‘बेरिंग अलेउत कामचटका क्राय’ रूस की , ‘तेहुएलचे पेटागोनिया’ अर्जेंटीना , कल्लम ‘वाशिंगटन’ , ‘अपियाकास’ ब्राज़ील , और ‘नगासा’ जो की तंजानिया की भाषा है और ऐसे ही कई अन्य भाषाएं भी इसी में शामिल हैं।
भाषाओं को सुरक्षित रखने के प्रयास
भारत में लुप्त हो रही भाषाओं को सुरक्षित रखने के लिए वर्ष 2013 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा “लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिए स्कीम फॉर प्रोटक्शन एंड प्रिजर्वेशन ऑफ़ एंडेंजर्ड लैंग्वेजेस(एसपीपीईएल )योजना की शुरआत हुई। जिसका उद्देश्य लुप्त हो रही और संकटग्रस्त भाषाओं का दस्तावेजीकरण करना और उन्हें संग्रहित करना है ताकि उस भाषा को भविष्य में विलुप्त होने से बचाया जा सके।
“विश्वविद्यालय अनुदान आयोग” भी लुप्त हो रही भाषाओं को बचाए रखने का प्रयास कर रहा है। यह आयोग विद्यालयों और अनुसंधानों में लुप्तप्राय भाषाआें का केन्द्र स्थपित करने में वित्तिय सहायता प्रदान करता है।