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 लिंग समानता में आज भी बहुत पीछे है भारत 

भारत में लिंग समानता का अनुपात हमेशा से ही चिंता का विषय रहा है। हाल में विश्वआर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) ने “जेंडर गैप रिपोर्ट जारी कि जिसमें चार प्रमुख आयामों , आर्थिक भागीदारी , शैक्षिक प्राप्ति, स्वास्थ्य अस्तित्व, और राजनीतिक सशक्तिकरण में लैंगिक समानता को दर्शाता गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार 146 देशों में लैंगिक समानता को लेकर सर्वेक्षण किया गया जिसमें भारत 135वे नंबर पर है। हालांकि पिछले वर्ष की तुलना में इसमें सुधार आया है। 2021 में भारत इस रिपोर्ट के अनुसार जहां 140 वे स्थान पर था । लेकिन अभी भी भारत की स्थिति बेहतर नहीं है। इस समय भारत की लिंग समानुपातिक दर अपने कई पड़ोसी देशों से भी कम है। फिलहाल बांग्लादेश 71वें , नेपाल 96 वें , श्रीलंका 110 वें , मालदीव 117 वें और भूटान 126 वें नंबर पर है। लिंग समानता के मामले में आइसलैंड सबसे पहले स्थान पर है। दूसरे स्थान पर फ़िनलैंड और तीसरे स्थान पर नार्वे है। वहीं पाकिस्तान और अफगानिस्तान देश इस लिस्ट के आखिरी पायदान पर हैं।

स्वास्थ्य और उत्तरजीविता उप-सूचकांक के आधार पर इन देशों में भारत (146) सबसे अंतिम स्थान पर है। जहाँ महिलाओं का स्वास्थ्यस्तर काफी ख़राब है।
वहीँ शिक्षा के स्तर पर अर्थात प्राथमिक शिक्षा नामांकन और तृतीयक शिक्षा नामांकन यानी सार्वजनिक और निजी विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, तकनीकी प्रशिक्षण संस्थानों और व्यावसायिक स्कूलों सहित सभी औपचारिक माध्यमिक शिक्षा के लिए लिंग समानता के मामले में भारत विश्व स्तर पर 107 वें स्थान पर है। राजनीतिक सशक्तिकरण में फिर भी इसका स्तर काफी बेहतर है जिसमें भारत 46वे नंबर पर है।

लिंग असमानता के कारण

भारत में लिंग असमानता के कई कारण हैं। लेकिन इसका मूल कारण शिक्षा प्राप्त करने और सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रगति के बाद भी भारतीय समाज में पितृसत्तात्मक मानसिकता स्थित है। इसके कारण महिलाओं को आज भी एक जिम्मेदारी समझा जाता है। उन्हें बोझ समझा जाता है और आज भी भारतीय समाज में कई जगह लड़किओं को गर्भ में ही मौत के घाट उतार दिया जाता है। ग्रामीण इलाकों में अगर लड़कियां जन्म ले भी लेती है तो कई स्थानों पर उन्हें हीन दृस्टि से देखा जाता है और उन्हें मात्र घरकी चार दीवारों के भीतर कैद रखा जाता है जिसके कारन शिक्षा के क्षेत्र में उनका विकास नहीं हो पाता। सरल शब्दों में कहें तो महिलाओं का सामाजिक और पारिवारिक सोच के कारण विकास के कम अवसर मिलते हैं, जिससे उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है।

लिंग असमानता में सुधार के प्रयास

लिंग असमानता में पहले के अनुसार कुछ हद तक सुधार आया है। लेकिन इसमें अभी काफी सुधार की आवश्यकता है। पहले भी इसे लेकर कई कानून बनाए जा चुके हैं। जिस पर पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त नहीं हो पाई है। वर्तमान सरकार ने भी इस असमानता को खत्म करने के लिए ‘बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ’ , ‘सुकन्या योजना’ आदि जैसी कई योजनाओं की शुरुआत की है।

 

 

 

 

 

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