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अनाज संकट की ओर बढ़ता भारत

भारत एक कृषि प्रधान देश है यहां की बड़ी जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। लेकिन वर्तमान समय में भारत के किसानों की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। यद्यपि किसानों की स्थिति में सुधार के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही है। सरकार द्वारा कई राज्यों में जैविक खेती करने की सलाह दी गई है। साथ ही किसानों के लिए कम लागत में बेहतर क़्वालिटी के बीज भी उपलब्ध कराए गए हैं। जिसके चलते कई किसानों को लाभ मिला है। केंद्र सरकार द्वारा खेती के मूल्य में 10 प्रतिशत वृद्धि की गई है और भारत के कुछ राज्यों में किसानों के कर्ज माफ़ी का भी एलान मोदी सरकार ने किया है। वहीं लगातार मोदी सरकार किसानों की आय में वृद्धि करने में भी प्रयासरत है।

लेकिन एक सर्वे के अनुसार, जो योजनाएं भारत सरकार चलाती है न ही वो धरातल पर पहुंच पाती है, न ही उन योजनाओं की जानकारी किसानों को मिल पाती है। जिसके कारण मुनाफे का सौदा होने वाला कृषि कार्य किसानों के लिए घाटे का सौदा हो चुका है।

पिछले महीने इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे देश की रीढ़ कहे जाने वाले किसान को खाद के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ रही है। धीरे-धीरे देश अनाज संकट की ओर बढ़ रहा है। रिपोर्ट में बताया गया कि किसानों को खाद नहीं मिल पा रही है। देश के कई राज्यों के किसान डीएपी, एनपीके खादों के लिए परेशान हैं। सरकार कह रही है उनके पास पर्याप्त खाद है फिर किसान क्यों दिन-दिन भर लाइन लगा रहे हैं? हंगामा कर रहे, आत्महत्या की नौबत आ रही। क्या बारिश में डिमांड बढ़ना थी एक वजह, या फिर विदेशों में उर्वरक और कच्चे माल की कीमत से हुई है समस्या? या फिर सरकार और सिस्टम से हुई है कहीं चूक? इंडियन एक्सप्रेस की इस रिपोर्ट में यह सब बताया गया है।

चिंता का विषय यह है कि खरीफ की बुवाई का सीजन आ रहा है और देश में उर्वरकों का संकट लगातार बढ़ रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। भारत में विशेष रूप से फॉस्फेटिक और पोटेशियम उर्वरकों की आपूर्ति प्रभावित हुई है। भारत ने फरवरी में उर्वरकों की लंबी अवधि की आपूर्ति के लिए रूस के साथ द्विपक्षीय वार्ता की थी। अगर यह सौदा होता, तो भारत को वैश्विक कीमतों में इजाफा होने के बावजूद स्थिर दरों पर आयात में मदद मिलती।

अप्रैल महीने की शुरुआत में देश के स्टॉक में लगभग 25-30 लाख टन डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी), पांच लाख टन म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (एमओपी) और 10 लाख टन नाइट्रोजन, फॉस्फोरस ,पोटाश और सल्फर के जटिल उर्वरकों (एनपीकेएस) के होने का अनुमान था। जबकि अकेले खरीफ सीजन में डीएपी की खपत करीब 50 लाख टन होती है।

खाद की कीमतों में इजाफा

देश में सबसे अधिक खपत वाले उर्वरक यूरिया की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 1,200 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है। इसके अलावा, डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) के लिए आवश्यक फॉस्फोरिक एसिड की कीमत बढ़कर 2,025 डॉलर प्रति टन हो गई है। इस समय देश में करीब 30 लाख टन डीएपी का स्टॉक है।

देश में पिछले माह डीएपी की कीमत में 150 रुपये प्रति बैग (50 किलो) की बढ़ोतरी के बावजूद घाटा काफी ज्यादा हो रहा है। सरकार ने पिछले साल मई, 2021 और उसके बाद अक्तूबर, 2021 में डीएपी पर सब्सिडी में भारी बढ़ोतरी कर इसकी कीमत को 1200 रुपये प्रति बैग पर स्थिर रखा था। लेकिन आयात कीमतों और कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते मार्च, 2022 में कंपनियों ने डीएपी की कीमत को बढ़ाकर 1350 रुपये प्रति बैग कर दिया है।

देश में किसानों के सामने अब खाद संकट आकर खड़ा हो गया है। रबी फसल की बुवाई शुरू होने को है और किसान रासायनिक खाद की कमी से जूझ रहे हैं। डीएपी (डाई अमोनियम फॉस्फेट) और यूरिया की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए किसान राज्य सरकारों से गुहार लगा रहे हैं। मध्यप्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु से इनकी कमी की खबरें सामने आ रही हैं। कुछ जगहों पर किसानों ने प्रदर्शन भी किया है। कुछ राज्यों की ओर से केन्द्र को रासायनिक खाद की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए लेटर लिखा गया है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें बढ़ना अहम वजह

देश में खाद की कमी की एक वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी आसमान छूती कीमतें हैं। चीन द्वारा उर्वरक के एक्सपोर्ट पर अस्थायी रोक और बेलारूस के खिलाफ वेस्टर्न इकनॉमिक सैंक्शंस के चलते ग्लोबल मार्केट्स में उर्वरक की कीमतें और सप्लाई प्रभावित हुई है। इसका असर भारत में उर्वरक के आयात पर भी पड़ा है। बेलारूस 2020-21 में भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा म्यूरिएट ऑफ पोटाश सप्लायर रहा। चीन पिछले दो सालों में भारत के लिए यूरिया का सबसे बड़ा सप्लायर और डाई अमोनियम फॉस्फेट यानी डीएपी के लिए दूसरा सबसे बड़ा सप्लायर रहा। अगस्त में चीन के नेशनल डेवलपमेंट एंड रिफॉर्म कमीशन ने जमाखोरी और सट्टेबाजी को लेकर फर्टिलाइजर कंपनियों को समन जारी किया था। इसके बाद कंपनियों ने एक्सपोर्ट अस्थायी रूप से सस्पेंड कर दिया और घरेलू मार्केट में सप्लाई सुनिश्चित की।

इंटरनेशनल प्राइस बढ़ने के कारण

फॉस्फोरस बेस्ड उर्वरकों के लिए कच्चे माल की कीमतें वैश्विक स्तर पर बढ़ी हैं। वर्ल्ड मार्केट में टाइट सप्लाई की वजह से फॉस्फोरिक एसिड और अमोनिया की कीमतें बढ़ी हैं। इससे भारतीय उर्वरक उत्पादकों द्वारा इनके आयात पर असर हुआ है। ये दोनों मिट्टी के लिए प्रमुख न्यूट्रिएंट हैं।दरअसल नेचुरल गैस की उच्च कीमतों की वजह से कुछ ग्लोबल अमोनिया मेकर्स ने आउटपुट घटाया है या फिर घटाने पर विचार कर रहे हैं, जिससे वैश्विक बाजारों में अमोनिया की उपलब्धता घटी है और कीमतें बढ़ी हैं।

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अगस्त-जुलाई 2021 में प्रमुख उर्वरकों का आयात घटा



अगस्त-जुलाई 2021 के बीच देश में प्रमुख उर्वरकों का आयात एक साल पहले के मुकाबले घटा है। यूरिया का इंपोर्ट सालाना आधार पर 23.43 लाख टन से घटकर 22.05 लाख टन रह गया। वहीं डीएपी, म्यूरिएट ऑफ पोटाश और कॉम्प्लेक्स फर्टिलाइजर्स का आयात भी घटा है। इसकी वजह विदेश से सप्लाई में पैदा हुईं दिक्कतें हैं। डीएपी के लिए देश बड़े पैमाने पर इंपोर्ट पर निर्भर है। डिमांड और सप्लाई में गैप और कम आयात की वजह से देश में डीएपी की कमी का संकट पैदा हो गया है। डीएपी में नाइट्रोजन, अमोनिया और फॉस्फोरस रहता है, जो कि फसलों के लिए प्राइमरी न्यूट्रिएंट्स हैं।

देश में यूरिया उत्पादन गिरना और जमाखोरी भी अहम वजह


यूरिया संकट की वजह केवल आयात में कमी नहीं है। देश में भी यूरिया का उत्पादन गिरा है। अप्रैल-जुलाई में यूरिया का उत्पादन घटकर 78.82 लीटर जो एक साल पहले इसी अवधि में 82.18 लीटर था। वहीं डाई अमोनियम फॉस्फेट का उत्पादन भी 12.66 लीटर से घटकर 11.11 लीटर रह गया। इसके अलावा यूरिया और डीएपी की कमी की एक वजह जमाखोरी भी है। कुछ प्राइवेट दुकानदार ब्लैक में खाद बेच रहे हैं। प्रशासन की ओर से पर्याप्त आपूर्ति मुहैया नहीं है। 

 
 
 

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