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भारत में अमेरिका और ब्रिटेन से भी ज्‍यादा महिला पायलट

आज हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। जमीन हो या आसमान हर जगह अपनी काबिलियत से अपनी पहचान  बना रही हैं। काफी समय से भारत में विमानन में पुरुषों का ही एकाधिकार रहा है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में भारत में महिला पायलटों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है। दुनिया में सबसे ज्यादा महिला पायलट भारत में हैं। इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ वूमेन एयरलाइन पायलट्स के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया भर में कुल पायलटों में 5.8 फीसदी महिलाएं शामिल हैं, जबकि 94.2 फीसदी पुरुष हैं। यानी इस सेक्टर में सिर्फ 6 फीसदी लैंगिक समानता है। हालाँकि, भारत में महिला पायलटों की संख्या कुल पायलटों की संख्या का 12.4 प्रतिशत है और भारत दुनिया में इस सूची में सबसे आगे है। इसके विपरीत विश्व आर्थिक मंच की 146 देशों की सूची में लैंगिक समानता के मामले में भारत का स्थान 135वां है।

महिला पायलटों की संख्या में अन्य देश और भारत…

भारत  के बाद आयरलैंड और दक्षिण अफ्रीका में 9.9 प्रतिशत महिला पायलट हैं। फिर ऑस्ट्रेलिया (7.5 प्रतिशत), कनाडा (7 प्रतिशत), जर्मनी (6.9 प्रतिशत) सूची में अपेक्षाकृत ऊपर हैं। अत्यधिक विकसित और शक्तिशाली देश माने जाने वाले अमेरिका में यह अनुपात मात्र 5.5 प्रतिशत और ब्रिटेन में 4.7 प्रतिशत है।

भारत में महिला पायलटों की संख्या कैसे बढ़ी?

भारत में यह बहुत पहले था कि महिलाओं को एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) की नौकरियों में रखा गया था। पायलटिंग भी उसी प्रकार की नौकरियों के अंतर्गत आती है। लेकिन यह कहा जा सकता है कि पिछले तीस दशकों में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है। भारतीय वायु सेना ने 1990 के दशक में हेलीकॉप्टर और परिवहन विमान उड़ाने के लिए महिला पायलटों को भी शामिल किया। राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) के एयर विंग की स्थापना 1948 में हुई थी। इस संगठन के कारण कई महिलाएं इस करियर की ओर आकर्षित हुईं।
अधिकांश निजी एयरलाइंस महिला कर्मचारियों और पायलटों के लिए विशेष रियायतें प्रदान करती हैं। देर से घर छोड़ने पर महिला पायलटों को और उनके पास भेजे जाने वाले वाहनों को सुरक्षा कर्मियों को सौंपा जाने लगा। महिलाओं की सुरक्षा के लिए एयरलाइंस ने उन्हें आराम से ड्यूटी देना, पर्याप्त मातृत्व अवकाश, गर्भवती महिलाओं को कुछ दिनों के लिए उड़ान भरने से छूट देना और उन्हें अलग से काम करने या कार्यालय के काम की अनुमति देना, बच्चों के लिए नर्सरी चलाना या नर्सरी का भुगतान करने जैसी सुविधाएं भी प्रदान कीं।
फ्लाइंग ट्रेनिंग काफी महंगी होती है। लेकिन भारत में कुछ राज्य सरकारों ने इसे कम कीमत पर महिलाओं को उपलब्ध कराने के लिए योजनाओं को लागू करने का फैसला किया है। कुछ व्यावसायिक कंपनियां आगे आईं और भारत में पायलट प्रशिक्षण के लिए महिलाओं को पूरी राशि की छात्रवृत्ति देने लगीं। इन्हीं सब बातों के चलते लड़कियां इसकी ओर मुड़ने लगीं।

मानसिकता में बदलाव?

निवेदिता भसीन एक वाणिज्यिक एयरलाइन के लिए काम करने वाली दुनिया की पहली सबसे कम उम्र की कप्तान रही । 33 साल पहले – जब वह 1989 में कप्तान बनीं, तो उन्होंने बताया कि लोग महिला पायलटों को कैसे देखते हैं। उन्होंने न्यूज एजेंसी ‘ब्लूमबर्ग’ को बताया था कि शुरुआत में उन्हें जल्दबाजी में कॉकपिट में घुसने और वहीं रहने को कहा गया। ताकि यात्री यह जानकर यात्रा को लेकर चिंतित न हों कि ‘एक महिला विमान उड़ाने जा रही है।”  लेकिन अब महिला पायलटों की बढ़ती संख्या के प्रमाण के रूप में यह मानसिकता बदल गई है। आज की कई महिला पायलट खुले तौर पर कहती हैं कि उन्हें अपने परिवारों से मजबूत समर्थन प्राप्त है।

कम दुर्घटनाएं?

संयुक्त राज्य अमेरिका में एक संगठन द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 1983 और 1997 के बीच हवाई जहाज और हेलीकाप्टर दुर्घटनाओं में पुरुष पायलट काफी अधिक शामिल थे। कई अवलोकनों में पाया गया है कि किसी भी आपात स्थिति में अधिक सावधानी से निर्णय लेने और न्यूनतम जोखिम लेने की प्रवृत्ति भी महिला पायलटों को अधिक विश्वसनीय बनाती है।

पुरुष एकाधिकार खत्म

वर्तमान आँकड़े आशा देते हैं कि यह क्षेत्र अब ‘केवल पुरुष’ के लिए नहीं है और भविष्य में भी ऐसा नहीं रहेगा। यह भारतीय लड़कियों के लिए एक उत्साहजनक परिदृश्य है जो पायलट के रूप में अपना करियर बनाना चाहती हैं।

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