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मंदी की मार से थर्राया उद्योग जगत

देश का उद्योग जगत इस समय कठिन दौर से गुज़र रहा है। देश की जीडीपी में नोटबंदी और जीएसटी के बाद लगातार दर्ज़ गिरावट संभलने का नाम नहीं ले रही। इस बीच सरकार को परेशानी में डालने वाली ख़बर देश के ऑटोमोबाइल उद्योग से आ रही है। उद्योग जगत में मंदी के चलते हाल ही में वाहनों की बिक्री में भारी गिरावट के बीच वाहन डीलरों द्वारा पिछले तीन महीनो में दो लाख लोगों की छंटनी की गयी है। उद्योग संगठन फेडरेशन ऑफ आटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (फाडा) द्वारा दावा किया गया कि पिछले तीन महीनों के दौरान खुदरा विक्रेताओं ने बिक्री में भारी गिरावट की वजह से करीब दो लाख कर्मचारियों की छंटनी की है।

फेडरेशन ऑफ़ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (फाडा) द्वारा कहा गया कि निकट भविष्य में स्थिति में सुधार की संभावना नहीं दिख रही है, जिसकी वजह से और शोरूम भी बंद होने की स्थिति में है तथा छंटनी का सिलसिला जारी रह सकता है। फाडा के अध्यक्ष आशीष हर्षराज काले द्वारा कहा गया की , बिक्री में गिरावट की वजह से डीलरों के पास श्रमबल में कटौती का ही  एकमात्र विकल्प बचा है। काले द्वारा यह भी कहा गया कि सरकार द्वारा वाहन उद्योग को राहत देने के लिए जीएसटी में कटौती जैसे उपाय करने चाहिए।

उनके द्वारा यह भी कहा गया कि अभी ज्यादातर छंटनियां फ्रंट एंड बिक्री में हो रही है, लेकिन सुस्ती का यह रुख अगर लगातार जारी रहा तो तकनीकी नौकरियां भी प्रभावित हो सकती हैं। और फिर निकट भविष्य में छंटनी का सिलसिला जारी रह सकता है।

वही ऑटो सेक्टर की कंपनियों के फायदे पर असर पड़ने और उपभोग की मांगो में सुस्ती रहने के कारण ऑटो उद्योग का उत्पादन के और घटने की सम्भावना बानी हुयी है। जिसके फलस्वरूप उद्योग क्षेत्र में श्रम करने वालों पर बेरोज़गार होने का ख़तरा भी मंडराने लगा है। वही उद्योग जगत से जुड़े लोगो द्वारा बताया गया है कि वस्तु एवं सेवा कर अधिक होने और कृषि क्षेत्र में संकट होने के साथ ही सैलरी और श्रम की कमी होने के कारण उद्योग जगत में मांग में सुस्ती बनी हुयी है। जिसके कारण हर महीने बिक्री में कमी होती जा रही है।

इसी तरह कुछ दिनों पहले ऑटो सेक्टर की टॉप कम्पनियो में शुमार बजाज ऑटो के चेयरमैन राहुल बजाज द्वारा केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों पर निशाना साधा गया था। इसके साथ ही उन्होंने ऑटो इंडस्ट्री के बिगड़ते हालात पर भी चिंता जाहिर की थी। उनके द्वारा बजाज ऑटो की सालाना आम बैठक में शेयर धारकों को सम्बोधित करते हुए कहा गया था कि ऑटो सेक्टर मुश्किल हालातों से गुज़र रहा है। कार ,कमर्शियल व्हीकल्स और टूव्हीलर्स सेग्मेंट की हालत भी ठीक नहीं है और निजी निवेश भी नहीं है ,फिर ऐसे में विकास कहाँ से आएगा क्या ऑटो सेक्टर के लिए विकास आसमान से गिरेगा।

पिछले दिनों भारतीय रिजर्व बैंक के  वर्तमान गर्वनर शक्तिकांत दास ने भी  ‘India’s Relations with International Monetary Fund’ किताब के लॉन्च के मौके पर दिल्ली में भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपना पक्ष रखा था। दास द्वारा कहा गया था कि सीमित संसाधनों के बीच व्यापक नीतियां बनाने का काम मुश्किल है। उनका कहना था  कि अधिकारियों द्वारा बनायी गई और सुझाई गई नीतियों को व्यापक पैमाने पर लागू किए जाने की जरूरत है। इससे स्थायी विकास का पैमाना स्थापित किया जा सकेगा। इसके साथ ही दास ने यह भी कहा था कि मौजूदा समय में वैश्विक अर्थव्यवस्था नए और तनावपूर्ण व्यापार वार्ताओं के अनिश्चित दौर में जा रही है। इस वजह से कुछ जरूरी मसलों का समाधान निकालना कठिन होता जा रहा है।इतना ही नहीं, शक्तिकांत दास ने यह भी कहा कि मौजूदा समय में अर्थव्यवस्था को लेकर कई चुनौतियां सामने आ रही हैं। वर्तमान में संस्थाओं द्वारा लिए जाने वाले कर्ज का स्तर ज्यादा है और विकसित होती अर्थव्यवस्था वाली सरकारों द्वारा समूह में लिये जाने वाले कर्ज ने सकल घरेलू उत्पाद का 100 फीसदी तक पार कर लिया है।

हाल ही में 4 अगस्त को आरबीआई के पूर्व गवर्नर बिमल जालान द्वारा कहा गया कि भारतीय इकॉनमी एक या दो साल में रफ्तार पकड़ेगी। उन्होंने यह भी कहा कि अभी इकॉनमी में सुस्ती सक्रीय है। लेकिन अगले एक-दो साल में वृद्धि दर रफ्तार पकड़ेगी। जालान द्वारा यह भी कहा गया कि सरकार कई सुधारों की घोषणा करने के लिए तैयार है। अब सवाल उनके क्रियान्वयन का है विशेष रूप से निवेश की दृष्टि से।

जालान द्वारा कहा गया की  ‘वृद्धि में सुस्ती है। एक या दो साल में निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था में सुधार होगा।’ जालान द्वारा स्पष्ट किया गया कि आज की स्थिति 1991 की तुलना में काफी अलग है। उस समय देश को बाहरी मोर्चे पर गंभीर आर्थिक संकट से जूझना पड़ा था। उन्होंने जोर देकर कहा, ‘1991 की तुलना में भारत आज काफी मजबूत स्थिति में है। यदि आप मुद्रास्फीति की दर देखें तो यह काफी निचले स्तर पर है। अगर आप विदेशी मुद्रा भंडार देखें तो यह काफी ऊंचे स्तर पर है।’ वैश्विक और घरेलू कारणों से आईएमएफ और एशियन विकास बैंक (एडीबी) ने भारत की वृद्धि दर के अनुमान को कम किया है।

आईएमएफ के ताजा अनुमान के मुताबिक 2019 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7 प्रतिशत और 2020 में 7.2 प्रतिशत रहेगी। वहीं एडीबी ने भी इस साल के लिए भारत की वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया है। यह पूछे जाने पर कि निजी क्षेत्र निवेश क्यों नहीं कर रहा है, जालान द्वारा कहा गया कि यह नोटबंदी के बाद का प्रभाव हो सकता है या वे लोकसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार कर रहे थे। व्यय प्रबंधन आयोग के पूर्व चेयरमैन ने विदेशी सरकारी कर्ज के बारे में पूछे जाने पर कहा कि सरकार पहले ही घोषणा कर चुकी है कि यह 5 से 20 साल के लिए होगा। यह लघु अवधि के लिए नहीं होना चाहिए।

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