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बढ़ रहा पुरुषों की आत्महत्या का आंकड़ा 

आत्महत्या

 भारत में आत्महत्या एक अपराध की श्रेणी में आता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से भारत में की जाने वाली आत्महत्या दर लगातार बढ़ती जा रही है। जो एक चिंता का विषय है। हाल ही में मेडिकल पत्रिका द लैंसेट में “भारत में आत्महत्या से होने वाली मौतों का बदलता पैटर्न” शीर्षक से छपी एक स्टडी के अनुसार भारत में आत्महत्या की दरों में लगातार वृद्धि हो रही है। साथ ही स्टडी में इस बात का दवा भी किया गया है कि आत्महत्या करने वालों में पुरुषों की संख्या अधिक है।

 

जानकारी के मुताबिक पुरुषों में आत्महत्या मृत्यु दर (एसडीआर) 34.6 प्रतिशत है, तो वहीं पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के मालमों में यह आंकड़ा 13.1 प्रतिशत है। इस स्टडी में जनसांख्यिकीय डेटासेट का उपयोग करके भारत में की जाने वाली आत्महत्या दरों का अध्ययन किया गया है।

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द प्रिंट में छपी खबर के अनुसार द लैंसेट की इस स्टडी में साल 2014 से लेकर साल 2021 के दौरान की गई आत्महत्याओं  का अध्ययन किया गया है। जिसे पूरा करने के लिए ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (NCRB) द्वारा जारी किये गए आंकड़ों का भी सहारा लिया गया है। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया गया है की बीमारी से होने वाली मौतों पर तो चर्चा होती रहती है लेकिन खुदखुशी के मामलों पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता है।

 

पुरुषों के आत्महत्या के मामले अधिक क्यों

 

द लैंसेट की स्टडी के मुताबिक कोरोना महामारी के बाद से बढ़ती बेरोजगारी आत्महत्या के एक प्रमुख कारण के रूप में उभरकर सामने आया है। यह स्टडी बताती है कि बेरोजगारी, लगभग 48.2 फीसदी पुरुषों और 27.8 प्रतिशत महिलाओं की खुदखुशी का एक कारण है। इसके अलावा पुरुषों द्वारा बार पारिवारिक समस्याएं,  भविष्य की चिंता और स्वास्थ्य संबंधी विषयों के चलते भी लोग खुदखुशी करते हैं। स्टडी के मुताबिक साल 2014 से 2021 के दौरान आत्महत्याओं का पुरुषों -से-महिला अनुपात क्रमशः 1.9 और 2.5 से बढ़कर 2.4 और 3.2 हो गया।

 

बढ़ती आत्महत्या के अन्य कारण

 

कोरोनाकाल में लोगों के रोजगार पर पड़ा असर या बढ़ती महंगाई भी बताई जा रही है। कोरोना काल में पूरे देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। छोटे -मोटे व्यापर चलाने वाले लोग जो दिन -रात कार्य करके खाने का इंतजाम करते थे या जिन्होंने सेविंग्स अधिक नहीं कर रखी थी। कोरोना काल में उन्हें भारी समस्याओं का सामना करना पड़ा और अधिकतर लोगों को बेरोजगारी की मार झेलनी पड़ी। इस स्थिति में मानसिक तनाव अधिक महसूस करने के कारण इस आय वर्ग के लोगों की खुदखुशी के बहुत मामले सामनेआए हैं ।

एक बड़ा हिस्सा किशोर – किशोरियों का भी है। विशेषज्ञों द्वारा इसका कारण यह भी बताया जा रहा है कि पढ़ाई के लिए बच्चों पर माता-पिता का दबाव और अच्छे रिजल्ट की उम्मीद , जो छात्रों के कौशल या हितों के अनुरूप नहीं होते। इसी दबाव में अधिकतर किशोर व किशोरियां मानसिक रूप से असहाय महसूस कर खुद को ही खत्म कर लेने का निर्णय ले लेते हैं।

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यह भी पढ़ें : कोटा छात्रों की आत्महत्या में मामलों में आएगी कमी

महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में ये मामले सबसे अधिक मिलते हैं। वर्तमान में बड़ी नहीं बल्कि छोटी छोटी बातों पर भी आत्महत्या के मामले सामने आते हैं। जैसे- प्रेम प्रसंग को ठुकराया जाना भी इसका एक महत्वपूर्ण कारण बन गया है।

आज के इस दौर में मनुष्य जिस तरह से प्रगति की ओर बढ़ रहा है। अपनी सहनशक्ति भी खोता जा रहा है। छोटी – छोटी बात पर उत्तेजित हो जाता है। चाहे वह बात उसके घर पर हो या बाहर । यदि मनुष्य थोड़ा सा धैर्य व सहनशीलता धारण कर ले, तो उसकी जीवनलीला समाप्त होने से बच सकती है। हर हालत में मजबूत रखकर जीवन का आनन्द लेना चाहिए।

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क्या कहते हैं एनसीआरबी के आंकड़े

 

राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में प्रति 10 लाख लोगों में से लगभग 120 लोगों ने खुदखुशी की है जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 6.1 फीसदी बढ़ गई है। पिछले वर्षों आए खुदखुशी के मामलों में से ये सबसे अधिक है। इस रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या करने वालों में पुरुषों, छात्रों और छोटे उद्यमियों की संख्या सबसे अधिक है।

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इन आंकड़ों के अनुसार साल 2021 में प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 120 मौतें हुईं और खुदखुशी से कुल 1 लाख 64 हजार 33, लोगों की जान गई जिसकी संख्या 2020 में की गई आत्महत्याओं के मामलों से लगभग 7.2 प्रतिशत ज्यादा है। जो संख्या साल 2020 में लगभग 1 लाख 53 हजार 52 थी। साल 2019 में यह आंकड़ा करीब 1 लाख 39 हजार था। इससे पहले खुदखुशी के सबसे ज्यादा आंकड़े साल 2010 में सामने आए थे। जिसमें प्रति 10 लाख की जनसँख्या में 113 लोगों की मौते हुई थी।

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