उज्जवल भविष्य के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन है और भारत सरकार शिक्षा को बढ़वा देने के लिए निरंतर कदम बढ़ा रही है। लेकिन समग्र शिक्षा कार्यक्रम पर शिक्षा मंत्रालय के तहत परियोजना मंजूरी बोर्ड (पीएबी) की वर्ष 2022-23 की कार्य योजना संबंधी बैठकों के दस्तावेजों से यह जानकारी मिली है कि देश के कई राज्य ऐसे हैं जहाँ माध्यमिक स्तर पर बीच में ही पढाई छोड़ने वालों की संख्या में पिछले वर्षों की तुलना में लगभग 14.6 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। ये बैठक अलग-अलग राज्यों के साथ अप्रैल से जुलाई के महीने में हुई थी। इन राज्यों में झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, कर्नाटक, त्रिपुरा, नगालैंड आदि शामिल हैं।
कहा जा रहा है कि सरकार ने नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत साल 2030 तक स्कूली शिक्षा के स्तर पर 100 फीसदी सकल नामांकन दर (जीईआर) हासिल करने के उद्देश्य को प्राप्त करना चाहती है। लेकिन बच्चों का बीच में पढ़ाई छोड़ देना इसमें बाधा बन रहा है। जिसे रोकने के लिए सरकार प्रयास कर रही है।
दस्तावेज के अनुसार दिल्ली में स्कूलों में दाखिला लेने वाले विशेष जरूरत वाले बच्चों (सीडब्ल्यूएसएन) की संख्या 61 हजार 51 थी जिनमें से 67.5 प्रतिशत ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी या उन्हें पहचाना नहीं जा सका है। बोर्ड ने सरकार को आदेश दिया है कि वह बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए कदम उठाये और उनकी शिक्षा स्तर पर ध्यान दें । इसके विपरीत देश के कई राज्य ऐसे भी हैं जहाँ स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है। रिपोर्ट के अनुसार आंध्र प्रदेश में माध्यमिक स्तर पर वर्ष 2019-20 में ड्रॉपआउट दर 37.6 प्रतिशत थी जो वर्ष 2020-21 में घटकर 8.7 प्रतिशत रह गई। ऐसे में परियोजना मंजूरी बोर्ड (पीएबी) ने राज्य से ड्रॉप आउट दर और कम करने के लिए प्रयास जारी रखने को कहा है।
सुधार के लिए सुझाव
इन विद्यार्थियों को शिक्षा से वापस जोड़ने के लिए स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के पूर्व सचिव अनिल स्वरूप ने कहा कि नेग्राम पंचायत और वार्ड स्तर पर स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर रहने वाले बच्चों की मैपिंग कराने और स्कूलों में महीने में कम से कम एक बार शिक्षक-अभिभावक स्तर पर बैठक आयोजित कर जागरूकता फैलाना जरूरी है। साथ ही उनके घर जाकर बात की जानी चाहिए क्योंकि कई बार परीक्षा परिणाम का अच्छा नहीं आना या परिवारिक स्थिति खराब होना भी कारण होता है।