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भाजपा क्षत्रपों की बढ़ी बेचैनी

गुजरात में आमूलचूल बदलाव का कदम जीत  के सुपर सक्सेस फॉर्मूले के रूप में स्थापित हो गया है। इससे भाजपा ने गुजरात के 60 साल के इतिहास में किसी भी पार्टी के सबसे ज्यादा सीटें जीतने का रिकॉर्ड और किसी भी राज्य में 86 प्रतिशत सीटें हासिल करने का कीर्तिमान भी अपने नाम कर लिया है। यही बात अब गुजरात से बाहर निकल रही है। चर्चा इसी बात पर हो रही है कि क्या यह फॉर्मूला जिन राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं वहां भी लागू होगा।

दरअसल, पार्टी ने सितंबर 2021 में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के साथ सभी 22 मंत्रियों को भी हटा दिया था। देश में किसी भी पार्टी ने चुनाव से एक साल पहले अपनी सरकार की ऐसी सफाई कभी नहीं की थी। मुख्यमंत्री के तौर पर भूपेंद्र पटेल ने जब शपथ ली तो रूपाणी सरकार का एक भी मंत्री या दिग्गज नेता नए मंत्रिमंडल में नहीं था। 27 साल से सत्ता में काबिज भाजपा ने एंटी इन्कम्बेंसी की काट के लिए सरकार में सभी चेहरे नए कर दिए थे। इनके साथ न तो कोई विवाद चस्पा था, न कोई चर्चित अतीत। यही नहीं इस बार टिकट वितरण में 182 में भी 103 नए चेहरों को टिकट दिया गया। पांच मंत्रियों और कई दिग्गजों समेत 38 सीटिंग विधायकों के टिकट काट दिए गए।

ऐसे में राजनीतिक पंडित मान रहे हैं कि गुजरात में इस बड़े परिवर्तन के बाद जो प्रचंड जीत का सुपर सक्सेस फॉर्मूला बना है, उसे लेकर अब भाजपा शासित राज्यों में बेचैनी बढ़ गई है। अगले साल 2023 के नवंबर-दिसंबर में राजस्थान, कर्नाटक और मध्य प्रदेश सहित करीब नौ राज्यों में चुनाव होने हैं, इसलिए अगले 1 से 2 महीनों में इन प्रदेशों में क्या होगा, इसकी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी, क्योंकि भाजपा जो भी करना चाहेगी, वह जनवरी 2023 तक पूरा करेगी, ताकि उसे चुनाव की तैयारी के लिए 10 से 11 महीने मिल सके।

इन चुनावी राज्यों में भाजपा के लिए सबसे महत्वपूर्ण मध्य प्रदेश है। जहां एंटी इन्कम्बेंसी स्ट्रॉन्ग मानी जा रही है। अन्य राज्यों के विपरीत कांग्रेस यहां टक्कर देने की स्थिति में है। संगठन भी कमोबेश व्यवस्थित है। पिछले चुनाव में मुकाबला करीबी था। भाजपा को 41.6 फीसदी वोट के साथ 109 सीटें और कांग्रेस को 41.5 फीसदी वोट के साथ 114 सीटें मिली थीं। सरकार कांग्रेस ने बनाई। फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत 22 विधायकों की बगावत से भाजपा सत्ता में लौटी। भाजपा में कई क्षत्रपों के चलते टिकट वितरण में बैलेंस का फॉर्मूला बना था, इससे पार्टी नुकसान में रही। अब चर्चा है कि क्या गुजरात की तर्ज पर यहां भी चुनाव से एक साल पहले व्यापक फेरबदल होगा, मामूली होगा या मौजूदा टीम में समीकरण बैठाकर पार्टी चुनाव में उतरेगी?

राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खेमे के अलावा मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया अपने समर्थकों को लेकर अभी से दबाव बनाए हुए हैं। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी उम्मीद लगाए हुए हैं। इधर कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की खींचतान को भाजपा अपने लिए एक अवसर के रूप में देख रही है। दरअसल हिमाचल प्रदेश की तरह यहां भी हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा रही है, जो भाजपा अपने लिए स्वाभाविक लाभ ही मानकर चल रही है। लेकिन पार्टी के भीतर क्षत्रपों की खींचतान भाजपा की चुनावी संभावनाओं को बिगाड़ने न पाए, इसलिए भाजपा सक्सेस फॉर्मूले के तहत बदलाव का कौन-सा स्वरूप लागू करेगी, इस पर सबकी निगाह है।

छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए स्थिति काफी अलग है। वहां पिछले चुनाव में भाजपा 33.6 प्रतिशत वोट शेयर के मामले में कांग्रेस से 10 प्रतिशत से भी ज्यादा पीछे थी। कांग्रेस ने लगातार तीन बार से सत्ता में काबिज भाजपा को हराया था। राज्य में भाजपा का संगठन कमजोर है, जबकि बंपर बहुमत के साथ सरकार चला रहे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जमीन पर सक्रिय दिख रहे हैं। भाजपा के पास छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार के आरोपों में अफसरों की गिरफ्तारियां ही ऐसा मुद्दा है, जिसके आधार पर वह लगातार दबाव बढ़ाने की रणनीति पर चल रही है। गुजरात की प्रचंड जीत के बाद कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार को भ्रष्टाचार के मोर्चे पर घेरने के लिए आने वाले दिनों में व्यक्तिगत हमले तेज हो सकते हैं।

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