9 मई 1980 को उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के एक गांव कफल्टा में जातीय दंभ से चूर सवर्णों ने पड़ोसी बिरलगांव के चौदह दलितों को निर्ममता के साथ जिंदा जलाकर उनकी हत्या कर डाली थी।
यह कांड एक शादी से जुड़ा था। गांव के ही दलित श्याम प्रसाद की बारात कफल्टा गांव से होकर गुजर रही थी। दूल्हा पालकी में बैठा था। जब बारात सवर्णों के गाँव से गुजरी तो गांव वालों ने दूल्हे से कहा कि दूल्हा यहां से वह पैदल चले। यहां भगवान बदरीनाथ का मंदिर है, जिसके सम्मान में दूल्हे को पालकी से उतरकर गांव को पार करने की बात कही गई।
बारात में शामिल दलितों ने इस बात का विरोध किया और कहा कि वह ऐसा नहीं करेंगे। इसके बाद जोर जबरदस्ती होने लगी दूल्हे और बारात पर उनकी बात मानने का दबाव दिया जाने लगा। इसी बीच गांव में छुट्टी पर आये खीमानन्द नाम के एक फ़ौजी ने दूल्हे की पालकी को पलट दिया। ब्राह्मण खीमानन्द के इस हमले के बाद दलितों के साथ उसकी तनातनी हुई जो बाद में हाथापाई में बदल गयी। इस दौरान खीमानन्द की मौत हो गई।
बताया जाता है कि इसके बाद ठाकुर और ब्राह्मण इकठ्ठा हुए और बारात पर धावा बोल दिया। अपनी जान बचाने को सभी बाराती कफल्टा में रहने वाले इकलौते दलित नरी राम के घर छुप गए थे। लेकिन सवर्णों ने उस घर को घेरकर उसकी छत तोड़ दी और छत के टूटे हिस्से से चीड़ का पिरूल, लकड़ी और मिट्टी का तेल भीतर डाला और आग लगा दी। इससे छः लोग मौके पर ही जिंदा भून दिए गए। जो बाराती किसी तरह अपनी जान बचाने को बाहर निकलकर भागे उन्हें लाठी-पत्थरों से मार दिया गया। इस तरह 14 दलित बारातियों को दूल्हे को पालकी में बैठकर बारात निकालने की सजा दे दी गयी।
देश और उत्तराखंड में दलित चेतना और एकजुटता के कारण कफल्टा कांड को दोहराया तो नहीं जा सका। लेकिन दलितों पर अत्याचार के मामलों में आज भी कमी नहीं आई है। ताजा मामला पश्चिम उत्तर प्रदेश का है। जहां के सरधना विधानसभा क्षेत्र में उच्च वर्ग के लोगों के द्वारा 40 साल पहला कफल्टा कांड जैसा ही एक मामला सामने आया है। यह विधानसभा क्षेत्र बीजेपी के फायर ब्रांड नेता संगीत सोम का है।
यहां के गांव मैनपुरी में दलित जाति के लोग भी उच्च बिरादरी के साथ रहते हैं। इस गांव में दलित दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर घुड़चढ़ी नहीं करा सकता। इसके चलते बरसों से ही दलित अपने मन की इच्छाओं को दफन करके पैदल ही घुड़चढ़ी करते आ रहे थे ।लेकिन कर्ण पुत्र मांगेराम और कर्ण के चचेरे भाई सूरज पुत्र ओम प्रकाश इस बंधन को तोड़ कर घोड़ी चढ़ने की मनसा पाल बैठे।
लेकिन दूसरी तरफ उच्च बिरादरी खासकर ठाकुर संप्रदाय के लोग उनके खिलाफ हो गए । जैसे ही गांव में पता चला कि कर्ण और सूरज घोड़ी पर चढ़कर गांव से घुड़चढ़ी निकालेंगे तब से ही उन्हें जान से मारने की धमकी मिलने लगी। इसके बाद दोनों ने सरधना थाने में एक शिकायत दर्ज कराई। लिखित शिकायत में उन्होंने कहा कि घोड़ी पर चढ़कर घुड़चढ़ी कराने की बात कहने के बाद उन्हें ठाकुरों द्वारा गोली मारने की धमकी दी जा रही है।
इसके बाद पुलिस हरकत में आ गई। सरधना थाना के इंस्पेक्टर बृजेश कुमार ने खुद कमान संभाली। उन्होंने खाकी की सरपरस्ती में दोनों दलित दुल्हों की मन की इच्छा पूरी की। संगीनों के साए में दोनों गांव मे घोड़े पर चढ़कर घुड़चढ़ी करके दुल्हन लेने गए ।
गांव मानपुरी में यह पहली बार हुआ है, जब पुलिस के आगे उच्च बिरादरी के लोग चुप रहे और दलित दूल्हे घोड़ी चढ़कर घुड़चढ़ी कर आए। यहां यह भी बताना जरूरी है कि जब से प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी है तब से ठाकुरवाद कुछ ज्यादा ही हावी हो रहा है। इस ठाकुरवाद के मुद्दे को लेकर आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सांसद और उत्तर प्रदेश प्रभारी संजय सिंह योगी सरकार के खिलाफ अड़े हुए हैं। उन्होंने खुद ठाकुर होने के बावजूद भी योगी सरकार की ठाकुर गिरी का जमकर प्रतिकार किया है।