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मुरादाबाद में डॉक्टर-पुलिस पर हमले को मीडिया ने दिखाया पर औरंगाबाद हमले को क्यों नहीं?

मुरादाबाद में डॉक्टर-पुलिस पर हमले को मीडिया ने दिखाया पर औरंगाबाद हमले को क्यों नहीं?

कोरोना संक्रमण को देखते हुए देश में लॉकडाउन लागू है। सारे काम बंद हैं। लोग घर पर हैं। इसके बाद भी हर दिन कई घटनाएँ सामने आ रही हैं। कुछ दिल को सुकून देने वाली तो कुछ चौका देने वाली। कुछ ऐसी ही खबर लगातार देखने को मिल रही है डॉक्टरों की। डॉक्टर दिन रात मेहनत कर रहे हैं इस महामारी से लोगों की जाने बचाने के लिए। अपनी जान की परवाह किए बिना अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। पर उन्हीं डॉक्टरों की जान के दुश्मन कभी पुलिस बनती तो कभी आम जनता। ऐसे तो कई मामले हैं।

लेकिन एक मामला यूपी के मुरादाबाद से सामने आया। डॉक्टरों पर आम लोगों ने हमला बोला। जोकि सरासर गलत है। लेकिन इस खबर को मीडिया ने बड़ी आसानी से धार्मिक रंग दे डाली। ख़ूब बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया। लेकिन ठीक एक ऐसी ही घटना एक जगह और घटी। जोकि मुरादाबाद से भी अधिक संगीन थी। लेकिन वो खबर मीडिया ने पूरी तरह से दबा दिया। लेकिन कहावत हैं न ‘इश्क़ और जुर्म छुपाए नहीं छुपती’ शायद ये कहावत मीडिया भूल गई है। सोशल मीडिया के इस दौर में जहां सभी चौकने हैं। वहां संगीन से संगीन अपराध भी आग की तरह फैल जाती है।

यह मामला है बिहार के औरंगाबाद के अखौनी गाँव की। दिल्ली से एक युवक गाँव आया था। इस बात की जानकारी जब प्रशासन को मिली तो डॉक्टरों की एक टीम उस युवक के घर पहुँची। ताकि उस युवक का चेकअप कर ये पता लगाया जा सके कि उस युवक को कोरोना संक्रमित है या नहीं। लेकिन गाँव के ही लगभग 40-50 उपद्रवियों ने घेर लिया और बुरी तरह से हमला बोल दिया। जिसमें कई नर्स और डॉक्टरों को गंभीर चोटें आईं। हमलावरों को डॉक्टर समझाने की कोशिश करते रही। जब वे नहीं रुके तो डॉक्टरों की टीम जान बचाते हुए क्षेत्रीय पुलिस स्टेशन पहुंची। हमले में आयुष चिकित्सक अर्जुन कुमार, एएनएम नीलू कुमारी, केयर इंडिया के प्रबंधक अनुज कुमार घायल हो गए।

पुलिस को पूरी घटना से अवगत कराया। जिसके बाद SDPO राजकुमार तिवारी भारी पुलिस बल के साथ हमलवारों के गाँव पहुँचते हैं। जहां भारी संख्या में मौजूद उपद्रवी पुलिस बल पर भी टूट पड़ते हैं। सुरक्षा बलों पर जमकर पथराव किया गया और लाठी डंडे से पुलिस बल को खदेड़ा जाने लगा। इस हमले में एसडीपीओ राजकुमार तिवारी, उनका निजी बॉडीगार्ड, एक पुलिसकर्मी पिंटू कुमार सिंह सहित कई अन्य लोग बुरी तरह घायल हुए हैं। एसडीपीओ का जहां सिर फट गया और हाथ में भी काफी चोटें आई। बॉडीगार्ड का भी सिर फट गया और शरीर के अन्य हिस्सों में चोटें आई। वहीं पिंटू कुमार सिंह का भी सिर फट गया।

बता दें इन दोनों घटना की जानकारी पत्रकार अजित अंजुम ने अपने यूट्यूब चैनल पर भी है। वीडियो लगभग 20 मिनट का है जिसमें उन्होंने साफ-साफ बताया कि सरकार खुद इस तरह की घटना को होने देना चाहती है जिसमें मीडिया की बहुत अहम भूमिका है जो देशवासियों के साथ-साथ देश के लिए भी बहुत खतरनाक है जो भारत के भविष्य के लिए ठीक नही हैं। अजीत अंजुम ने मीडिया को भी चेताया की आप किसी घटना को दिखाएं ये आपका कर्तव्य है। लेकिन घटना को धर्म से जोड़ कर एक विशेष समुदाय को दोषी बताना और दूसरे समुदाय के लोगों द्वारा अंजाम दी गई किसी घटना पर पर्दा डालना किसी भी तरह उचित नहीं हो सकता।

गौरतलब है कि इससे पहले भी बिहार के मधुबनी, भागलपुर और कटिहार समेत राज्य के कई हिस्सों में डॉक्टरों या पुलिस टीम पर हमले की शिकायत हो चुकी है। देश के विभिन्न हिस्सों में डॉक्टर और नर्स पर हमला हो चुका है। लेकिन सवाल उठता है कि क्यों किसी भी मीडिया चैनल ने इस घटना को नहीं चलाया। क्यों मीडिया चैनलों में सिर्फ एक कौम को टारगेट करती आ रही है। क्यों इनपर सरकार की रोक-टोक नहीं की जा रही। जबकि इससे मुस्लिम समुदाय को नुकसान झेलना पड़ रहा है। मॉब लीचिंग से लेकर लोगों के तानों से आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं।

बांद्रा में हुई घटना हो या फिर अन्य कोई भी घटना मुस्लिम समुदाय से जोड़ कर ब्रेकिंग न्यूज बता देते हैं। उसके बाद डिबेट की तैयारी करते हैं। क्या चैनलों की टीआरपी को केंद्र में रख कर काम किया जा रहा। आखिर क्यों ये मीडिया चैनल अभी तक मरकज को नहीं भूल पाई है। नए-नए लिंक, नए-नए हथकंडे ढूंढ रही है। कभी आतंकवादियों से तो कभी पाकिस्तानी से लिंक जुड़ा इन्हें दिखता है। इतनी नफरत फैलाने की क्या आन पड़ी। मजदूरों, भूखों, बेबस-लाचार स्टूडेंट्स, रोते- बिलखते लोगों की समस्या क्यों इनकी नज़रों से ओझल हो जाती है। ऐसे कई समस्या हैं जिन्हें लेकर इन्हें जागरूक होने की जरूरत है।

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