उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के आठवें मुख्यमंत्री हैं। ठाकरे बिना विधानमंडल के सदस्य रहते हुए मुख्यमंत्री बने हैं। ठाकरे से पहले एआरे अंतुले, वसंतदादा पाटिल, शिवाजी राव निलंगेकर, सुशील कुमार शिंदे, पृथ्वीराज चव्हाण और शरद पवार का नाम इस लिस्ट में शामिल है। लेकिन जिस तरह की परिस्थिति उद्धव ठाकरे के सामने फिलहाल आ रही है, ऐसी पूर्व मुख्यमंत्रियो के सामने कभी नहीं आई होगी। कोरोना जैसी महामारी के चलते फिलहाल ठाकरे की सीट पर खतरा मंडराता दिख रहा है।
हालांकि, अगर प्रदेश के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की महर ठाकरे पर फिर जाए तो उनकी कुर्सी पर कोई आंच नहीं आएगी। इस तरह देखा जाए तो एक बार फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी की चाबी कोश्यारी के हाथों में है। राज्यपाल चाहे तो विवेक के आधार पर ठाकरे को अपने कोटे की सीट से विधान परिषद् में मनोनीत कर सकते हैं। लेकिन इस मामले पर फिलहाल कोश्यारी मौन है। जबकि दूसरी तरफ महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज शिवसेना की धडकने बढ़ गई है।
गौरतलब है कि संविधान की धारा 164 (4) के अनुसार, 6 महीने में उद्धव ठाकरे को विधानसभा या विधान परिषद में से किसी का भी सदस्य बनना अनिवार्य था। ठाकरे को मिली छह महीने की छूट 28 मई को खत्म हो रही है। ऐसे में ठाकरे के सामने मुश्किल यह पैदा हो गई है कि कोरोना महामारी के बढते प्रकोप के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा है।
यह भी उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में विधायकों के कोटे से नौ विधान परिषद की सीटें 24 अप्रैल को खाली हो रही हैं। इन सीटों में से से किसी एक पर वह चुनाव लड़ते तो उनका विधान परिषद बनना तय था। लेकिन लॉकडाउन के चलते यह संभव नहीं है।
इसके अलावा वर्तमान में राज्यपाल कोटे से विधान परिषद की 2 सीटें खाली है। इसका कारण यह था कि दो विधान परिषद सदस्यों ने गत वर्ष अक्टूबर में विधान सभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होने के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी। जिसके चलते यह दोनों सीट खाली हो गई थी । इन दोनों सीटों की भरने की समय सीमा जून के मध्य तक है । इस पर उद्धव ठाकरे को मनोनीत कराने के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव बनाकर 2 सप्ताह पहले ही राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को भेज दिया गया है ।
अगर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी मंत्रिमंडल की सिफारिशें मान कर सरकार द्वारा भेजे गए ठाकरे के नाम पर सहमत हो जाते है तो ठाकरे की कुर्सी बच सकती है। हालांकि, ठाकरे के प्रस्ताव से तीन महीने पहले राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास एनसीपी ने अपने दो सदस्यों को मनोनीत करने का प्रस्ताव भेजा गया था। लेकिन राज्यपाल ने यह प्रस्ताव वापिस भेज दिया था। यह मनोनयन पूरी तरह से राज्यपाल के विवेक पर निर्भर होता है। वह चाहे तो मनोनीत कर सकते हैं और चाहे तो नहीं।
इसी के साथ ही उद्धव ठाकरे के पास एक दूसरा विकल्प भी है। वह यह है कि अगर 6 महीने की अवधि पूरी होने तक भी वह विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य नहीं बन पाते हैं तो उसके लिए उन्हें यह करना होगा कि पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना होगा और इसके बाद ठाकरे को दोबारा राज्य के मुख्यमंत्री पद के तौर पर शपथ लेनी पड़ेगी। जिसमें उन्हें 6 महीने का और समय मिल जाएगा। लेकिन इसमें ट्विस्ट यह है कि इस्तीफा देने के बाद पूरी मंत्रिमंडल का इस्तीफा भी स्वीकार माना जाएगा। ऐसे में ठाकरे को अपने साथ ही पूरे मंत्रिमंडल की दोबारा शपथ लेनी पड़ेगी।
इसके अलावा ठाकरे के सामने दूसरा रास्ता यह भी है कि 3 मई को लॉकडाउन खत्म होते ही चुनाव आयोग विधान परिषद की खाली पड़ी सीटों के लिए चुनाव की घोषणा करे। यही नहीं बल्कि 27 मई से पहले चुनाव प्रक्रिया पूरी कर ले और परिणाम घोषित कर दे। जिसके बाद मुख्यमंत्री निर्वाचित सदस्य के रूप में विधान परिषद् के सदस्य बन सके। लेकिन कोरोना वायरस के दिनों दिन मामले बढ़ने के कारण यह संभव नहीं लग रहा है। हालांकि, अगर मामला यहां से भी नहीं बनता है तो फिर ठाकरे के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण में ही जाना एक रास्ता होगा।
उधर इस मामले में महाराष्ट्र के भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल का कहना है कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी उद्धव ठाकरे को विधान परिषद् सदस्य मनोनीत नहीं कर सकते। उन्हें चुनाव का सामना करना पड़ेगा। इसके बाद ही दुबारा मुख्यमंत्री बन सकते हैं। उद्धव को अब तक विधान परिषद् सदस्य बनने के तीन अवसर मिले, लेकिन उन्होंने मौका गंवा दिया। फिलहाल, जो दो सीटें रिक्त होने की बात कही जा रही है उसका कार्यकाल अभी 6 जून 2020 तक है।
जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 के तहत सदन में रिक्त स्थान भरने का नियम है, लेकिन अधिनियम की धारा 151 ए के उपनियम (ए) में स्पष्ट किया गया है कि यदि एक वर्ष से कम की समयावधि है तो रिक्त सीट के लिए उपचुनाव नहीं कराया जा सकता। ऐसे में दो महीने कार्यकाल शेष होते हुए किसी को भी मनोनीत किया जाना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। तीन महीने पहले राज्यपाल के पास एनसीपी के दो लोगों को मनोनीत करने का प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन राज्यपाल ने इन्ही नियमों के आधार पर प्रस्ताव वापस भेज दिया था।