मोहब्बत और जंग के साथ ही राजनीति में सब कुछ जायज है। पहले राजनेता के मायने यह होते थे कि वह जिस पार्टी को अपना बना लेता था , ता उम्र उसमें ही अपने आप को खपा देता था । यह पार्टी के प्रति नेता का समर्थन कहलाता था । लेकिन आजकल ऐसा नहीं है। अब नेतागिरी की परिभाषा ही अब बदल गई है। कहा जाने लगा है कि अब नेता गिरगिट की तरह रंग बदलने लगे हैं। अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए नेता को कब कौन सी पार्टी में शामिल होना पड़ जाए यह समय और जरुरत तय करती है।
इस मामले में एडीआर यानी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है जिसमें पिछले 4 साल में अकेले कांग्रेस पार्टी के 170 विधायकों ने पलटी मारी है यह सभी विधायक कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए हैं जबकि इसके विपरीत भाजपा के महत्व 18 विधायकों का ही अपनी पार्टी से मोहभंग हुआ इस दौरान मध्य प्रदेश सहित पांच राज्यों की सरकारें गिर गई या गिराई गई।
वर्ष 2016 से लेकर 2020 तक कई दलों के 405 विधायकों ने अपनी पार्टी को अलविदा कह दिया । यह नहीं कि इन सभी विधायकों ने राजनीति से सन्यास लिया हो बल्कि अपने आप को फिर से जिताने के लिए दूसरी पार्टी का दामन थाम लिया। 405 में से अधिकतर विधायक भाजपा के साथ हो लिए।
मतलब यह है कि जहां सत्ता होगी वही नेता होगा । क्योंकि अधिकतर राज्यों में भाजपा की सरकारें बनी तो इसी दौरान विधायक रातो – रात पार्टी बदल सत्ता के साथ भाजपा में शामिल हो गए । हालांकि इस मामले में कॉन्ग्रेस पिछड़ गई। उसके साथ दूसरी पार्टी छोड़कर सिर्फ 28 विधायक आए । जबकि टीआरएस ( तेलंगाना राष्ट्र समिति ) में 25 विधायक दूसरी पार्टियों से शामिल हुए।
कहते हैं कि जब नींव हिलती है तो महल अपने आप ही भरभरा कर गिर जाते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ राज्य सरकारों के साथ। जब विधायक पार्टी छोड़ दूसरी पार्टियों में शामिल हुए तो कई सरकारें गिर गई । पिछले 5 सालों में इस तरह 5 राज्यों की सरकार गिर गई या गिराई गई । जिनमें मध्य प्रदेश, मणिपुर, गोवा , अरूणाचल प्रदेश और कर्नाटक में सरकारों का बनना – बिगड़ना विधायकों के पाला बदलने के कारण ही संभव हो सका।
ऐसा नहीं है कि दलबदलू केवल विधायक ही रहे । बल्कि इसमें लोकसभा और राज्यसभा में बैठे नेता भी शामिल रहे । वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान पांच सांसद भाजपा छोड़कर दूसरे दलों में शामिल हुए । जबकि 4 साल के दौरान कांग्रेस के 7 राज्यसभा सदस्य दूसरी पार्टियों में चले गए । इस दौरान पार्टी बदल कर फिर से राज्यसभा चुनाव लड़ने वाले 16 राज्यसभा सदस्यों में से 10 भाजपा में शामिल हो गए।