नई दिल्ली। असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों की पहचान और उन्हें वापस भेजने के मुद्दे पर राजनीति गर्मा गई है, वहीं दूसरी तरफ राज्य में तनाव की आशंका है। कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए राज्य में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। जिला उपायुक्तों एवं पुलिस अधीक्षकों को कड़ी सतर्कता बरतने के लिए कहा गया है। बारपेटा, दरांग, दीमा, हसाओ, सोनितपुर, करीमगंज, गोलाघाट और धुबरी समेत 14 जिलों में सीआरपीसी की धारा 144 लागू कर दी गई है।
दरअसल, असम में घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए पिछले करीब 37 सालों से अभियान चल रहा है। स्थानीय लोगों का विरोध इस बात को लेकर रहा है कि 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान वहां से बड़ी संख्या में लोग पलायन कर असम में आए और यहीं बस गए। इस कारण स्थानीय लोगों और घुसपैठियों के बीच कई बार हिंसक झड़पें हुईं।1980 के दशक से यहां घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए आंदोलन हो रहे हैं। 1979 में अॉल असम स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद के नेतृत्व में बांग्लादेशियों को वापस भेजने के लिए ऐतिहासिक आंदोलन चला था।
राज्य में अवैध रूप से रह रहे लोगों की पहचान कर उन्हें वापस उनके देश भेजने के लिए सरकार ने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) अभियान चलाया। अब एनआरसी ने राज्य में 25 मार्च 1971 के पहले से रह रहे निवासियों का जो ड्राफ्ट जारी किया है उसमें 40 लाख ऐसे लोगों के नाम नहीं हैं जो अभी असम में हैं। इन लोगों को अब डर सताना स्वाभाविक है कि उन्हें राज्य से निकाल बाहर किया जाएगा। लिहाजा वे आंदोलित हो सकते हैं। स्थानीय लोग भी उन्हें निकालने के लिए आंदोलन कर दबाव बना सकते हैं। दोनों ओर से आक्रोश के चलते स्थिति तनावपूर्ण हो सकती है। यही वजह है कि असम एवं पड़ोसी राज्यों में सुरक्षा चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए केन्द्र ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की 220 कंपनियों को भेजा है।
सरकार राज्य में कड़ी निगरानी रखे हुए है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति गर्मा गई है। असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनवाल ने एनआरसी को राज्य की जनता के हित में कहा है तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आपत्ति है कि जिन लोगों के पास आधार कार्ड और पासपोर्ट हैं उन्हें भी सरकार जबरन निकालना चाहती है। संसद के दोनों सदनों में एनआरसी के ड्राफ्ट को लेकर जमकर हंगामा हो चुका है। इस पर गृहमंत्री राजनाथ ने कहा कि एनसीआर की कवायद निष्पक्षता एवं पारदर्शी तरीके से हो रही है। 15 अगस्त 1985 को असम समझौते पर किए गए हस्ताक्षर के अनुसार, एनसीआर को अपडेट किया जा रहा है और पूरी प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार चल रही है। यदि वास्तविक नागरिकों के नाम ड्राफ्ट में नहीं होंगे तो उन्हें आपत्ति का मौका दिया जाएगा।