देश के कई राज्यों ने निजी शिक्षा संस्थानों से कहां है कि वह लॉकडाउन के दौरान अभिभावकों से ट्यूशन फीस ना लें। इसी दौरान निजी शिक्षक अपने अपने छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाई पढ़ा रहे हैं। साथ ही वह अभिभावकों को एक मार्मिक अपील भी कर रहे हैं। जिसमें वह ट्यूशन फीस देने की मांग कर रहे हैं ।
हालांकि, इसके लिए वह प्रेशर तो नहीं डाल रहे, लेकिन उनके इस तरह से अभिभावकों के पास आए संदेशों से ऊहापोह की स्थिति हो रही है। अभिभावक समझ नहीं पा रहे हैं कि एक तरफ सरकार फीस लेने के लिए मना कर रही है तो दूसरी तरफ शिक्षक फीस मांग रहे हैं। इसी उधेड़बुन के चलते एक वकील ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की। जिसमें काफी हद तक स्थिति स्पष्ट हो गई है।
बहरहाल,लॉकडाउन के चलते निजी स्कूलों द्वारा फीस न लेने के निर्देश देने को लेकर दायर याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। याचिका पर उच्च न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाना कोई बच्चों का खेल नहीं है। ऑनलाइन पढ़ाने के लिए शिक्षकों को अपने घर में इंटरनेट, कंप्यूटर से लेकर तमाम इंजमाम करने पढ़ते हैं, जिस पर काफी पैसा भी खर्च होता है। ऐसे में कैसे स्कूलों को ट्यूशन फीस लेने से रोका जा सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरि शंकर की युगल पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई करते हुए कोरोना की वजह से लॉकडाउन के कारण निजी स्कूलों द्वारा ट्यूशन फीस न लेने के निर्देश देने से साफ इनकार कर दिया है।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता प्रशांत कुमार की याचिका को ”मूलभूत रूप से गलत” बताया है। न्यायालय ने अपने 21 पेज के आदेश में कहा, ”जब तक स्कूल ऑनलाइन शिक्षा प्रदान कर रहे हैं तब तक वो निश्चित रूप से ट्यूशन फीस लेने के हकदार हैं।
उन्होंने कहा कि ऑनलाइन क्लास को लेकर निजी विद्यालयों और शिक्षकों द्वारा काफी प्रयत्न किए जा रहे हैं। ऑनलाइन क्लास और स्कूल में पढ़ाने में काफी अंतर होता है, इसलिए दोनों तरीकों की तुलना नहीं की जा सकती है। ऐसा करने के लिए किसी भी शिक्षक को कितने प्रयत्न करने पढ़ते होंगे।
उच्च न्यायालय ने कहा कि कई निजी स्कूलों द्वारा ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही है जो स्वागत योग्य कदम है। इसका उद्देश्य बच्चों की पढ़ाई के नुकसान की भरपाई करना है ताकि उन्हें कोई परेशानी ना हो। इसके जरिए स्कूल ये प्रयास कर रहे हैं कि 2020-21 के अगले शैक्षणिक सत्र के दौरान बच्चों को सिलेबस का नुकसान ना हो।
सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने यह भी कहा कि हम पूरे मन से इस भावना का समर्थन करते हैं। स्कूलों और शिक्षक अपनी ओर से पूरे प्रयास कर रहे हैं। छात्रों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से शिक्षा देने और उसमें लगने वाले मेहनत के प्रयास का न्याय संगत संज्ञान लिया जा सकता है। ऑनलाइन शिक्षा और कक्षा में पढ़ाने की आपस में तुलना किसी भी हद तक नहीं की जा सकती है।