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कोरोना महामारी का स्कूली शिक्षा पर प्रभाव 

कोरोना महामारी ने पुरे विश्व को हिला कर रख दिया। जिसका असर देश की आर्थिक व राजनितिक स्थिति से लेकर बच्चों की शिक्षा तक पड़ा। बीते दिन   एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार पाया गया कि महामारी के बाद बच्चों की पढ़ने की बुनियादी क्षमता प्रभावित हुई है।

 

जिसका असर ये हुआ है कि हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र में तीसरी और पांचवीं कक्षा के बच्चे पढ़ने से लेकर गणित तक में पिछड़ गए हैं। जो देश एक चिंता का विषय है। हालांकि सरकार शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के कई प्रयास कर रही है। लेकिन महामारी के कारण उन सुधारों में कुछ हद तक रुकावट देखने को मिली है।
रिपोर्ट के मुताबिक अंकगणित में बच्चों का स्तर काफी खराब पाया गया। तो वहीं अंग्रेजी पढ़ने की स्थिति में कुछ सुधार देखने को मिला है। लेकिन केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस विषय के हालात भी चिंताजनक देखने को मिले। जहाँ साल 2018 में तीसरी कक्षा के 27.3 फीसदी विद्यार्थी दूसरी कक्षा के लेवल का पाठ पढ़ सकते थे, उनकी संख्या साल 2022 में निचे गिरती हुई नजर आई और यह आंकड़ा घटकर 20.5 फीसदी पहुंच गया। अंकगणित के क्षेत्र में तमिलनाडु, हरियाणा, मिजोरम राज्यों के छात्रों की स्थिति काफी ख़राब रही आंकड़ों के अनुसार साल 2018 तीसरी कक्षा के करीब 28.2 प्रतिशत बच्चे जमा- घटा कर सकते थे जो साल 2022 में घटकर 25.9 फीसदी रह गया। हालांकि यूपी के विद्यार्थियों का स्तर अंकगणित में अच्छा रहा है।

ट्यूशन पर निर्भरता बढ़ी

 

रिपोर्ट में देखा गया की स्कूली शिक्षकों के बदले अब परिवार वालों और स्टूडेंट्स की निर्भरता ट्यूशन के शिक्षकों पर बढ़ गई है। आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक के 26.4 फीसदी बच्चे ट्यूशन से पढ़ाई करते थे, जो साल 2022 में बढ़कर 30.5 प्रतिशत पहुंच गया है। रिपोर्ट के अनुसार बिहार और झारखण्ड के अधिकतर विद्यार्थी ट्यूशन के शिक्षक पर ही अधिक भरोषा करने  लगे हैं।

कई राज्यों में बच्चों की उपस्थिति में कमी

 

रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों के अनुसार स्कूलों में छात्र और शिक्षक दोनों की अटेंडेंस स्थिर रही है।  बच्चों की उपस्थिति करीब 72 प्रतिशत के करीब रही, वहीं शिक्षकों का आंकड़ा 85 फीसदी से थोड़ा ज्यादा देखा गया। रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु ऐसे राज्य हैं जहाँ स्कूल में बच्चों और शिक्षकों की उपस्थिति सबसे अधिक रही, तो वहीं उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , बिहार और त्रिपुरा जैसे राज्यों में शिक्षक व विद्यार्थियों की उपस्थिति सबसे कम रही। इनमें से कई बच्चे ऐसे भी थे जिन्होंने कोरोना महामारी के दौरान छाए आर्थिक संकट के कारण स्कूल छोड़ दिए। इनमे से अधिकतर बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर, गरीब वर्ग के हैं। जिसे देखते हुए ह्यूमन राइट्स वॉच के बाल अधिकार प्रभाग की एक वरिष्ठ शोधकर्ता एलिन मार्टिनेज का कहना है कि, सरकारों के पास वर्षों से ऐसे ठोस साक्ष्य थे जो उन्हें दिखा रहे थे कि स्कूल बंद होने के दौरान बच्चों के किन समूहों के शैक्षिक रूप से प्रभावित होने की सबसे अधिक आशंका है, फिर भी इन बच्चों ने अपनी पढ़ाई जारी रखने में कुछ सबसे बड़ी बाधाओं का सामना किया।  महज स्कूलों को दोबारा खोलने से नुकसान की भरपाई नहीं होगी, और न ही यह सुनिश्चित होगा कि सभी बच्चे स्कूल लौट आएंगे। कहा जा सकता है कि सरकार कोरोना काल के दौरान चल रही ऑनलाइन क्लास को सुचारू रूप से चलाने और हर बच्चे को उसका लाभ दे पाने में असक्षम रही।

क्या रहा स्कूल में दाखिले का स्तर

 

रिपोर्ट के मुताबिक साल 2006 से 2014 के बीच सरकारी स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चों  के अनुपात में लगातार कमी देखी गई। साल 2014 में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या 64.9 प्रतिशत थी जो 2018 में 65.6 प्रतिशत से तेजी से बढ़कर साल 2022 में 72.9 प्रतिशत हो गया। साथ ही स्कूल में दाखिला लेने वाली लड़कियों की संख्या में 2 फीसदी वृद्धि हुई है।

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