हरिद्वार शहर में वर्षों से होते आ रहे अवैध निर्माण हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण के लिए बड़ी चुनौती साबित हुए हैं। राज्य में बीजेपी सरकार बनने के बाद तो शहर में अवैध निर्माणों की बाढ़-सी आ गई है। हर जगह अवैध निर्माण दिखाई देना आम बात हो गई है। इनमें से अधिकांश निर्माण प्राधिकरण से स्वीकृत नहीं होता। दिन दुगुनी और रात चैगुनी रफ्तार से हो रहे इन निर्माणों से जैसे शहर का दम सा घुटता जा रहा है। निर्माणों से शहर के वातावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ना लाजिमी है।
बावजूद इसके हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण चुप्पी साधे हुए है या यूं कहें कि चाहकर भी कई बार कार्रवाई नहीं कर पाता। थोड़ी-सी पड़ताल के बाद ही पता चल जाता है कि प्राधिकरण की इस लचीली कार्यप्रणाली के पीछे उसकी सबसे बड़ी कमजोरी स्टाफ की भयंकर कमी है। पिछले लंबे समय से हरिद्वार, रुड़की विकास प्राधिकरण में कर्मचारियों और अधिकारियों का बड़ा टोटा है।
प्राधिकरण के पास न तो पर्याप्त जूनियर इंजीनियर हैं और न ही अधिशासी अभियंता जिसके चलते कार्रवाई करने में प्राधिकरण अपने हाथ पीछे खींच लेता है। इसका सबसे बड़ा फायदा भू-माफिया और अवैध निर्माण करने वाले दोनों हाथों से उठा रहे हैं। यदि इनकी शिकायत प्राधिकरण के अधिकारियों से कोई करे तो वो पर्याप्त स्टाफ न होने का बहाना बनाकर टालमटोल कर देते हैं।
शहर में ऐसी कई इमारतें और भवन हैं जो बिना नक्शा स्वीकृत कराए धड़ल्ले से बनी हैं और हरिद्वार प्राधिकरण के मुंह को चिढ़ा रही हैं। पुराना रानीपुर मोड़, सिंहद्वार, संपूर्ण कनखल, हर की पैड़ी, श्रवणनाथ नगर के आस-पास ऐसे सैकड़ों अवैध निर्माण हुए हैं जिन पर प्राधिकरण केवल मुंह ताकता नजर आया है। तमाम शिकायतों के बावजूद प्राधिकरण इनके विरुद्ध कोई कार्रवाई करने का साहस नहीं दिखा सका। करे भी तो कैसे करे, जब काम करने वाला स्टाफ ही नहीं।
हमारे पास भले ही तकनीकी स्टाफ कम हो पर हम पूरा प्रयास कर रहे हैं कि नियम विपरीत कोई निर्माण शहर में न हो। अब हालांकि हमारे पास महाकुंभ के भी कई कार्य हैं जो वर्तमान में चल रहे हैं जिनमें हमारा स्टाफ व्यस्त रहता है, पर फिर भी शहर में कोई भी अवैध निर्माण न होने देने के लिए हम तैयार हैं। -हरवीर सिंह, सचिव
हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण एवं अपर मेला अधिकारी प्राधिकरण में किस हद तक कर्मचारियों की किल्लत है। इसकी पूरी जानकारी हमें प्राधिकरण में स्वीकृत और भरे हुए पदों का अनुपात बता देता है। प्राधिकरण में जूनियर इंजीनियर के कुल 13 पद सृजित हैं, जबकि इन पर केवल 4 जूनियर इंजीनियर की ही नियुक्ति है। बाकी 9 पद पिछले लंबे समय से खाली हैं। एक पद अधिशासी अभियंता का है जो पिछले तीन महीनों से खाली है।
इसी तरह इसी तरह टाउन प्लानिंग में 3 पद ड्राफ्टमैन, 2 पद एटीपी तथा 1 पद आईटीपी का है। आश्चर्य की बात है कि इनमें से किसी भी पद पर कोई नियुक्ति नहीं है यानी सारे पद खाली चले आ रहे हैं। अब जब स्टाफ की इतनी किल्लत होगी तो इतने विशालकाय क्षेत्र को व्यवस्थित कैसे रखा जा सकता हैै। ऐसे दर्जनों उदाहरण देखने को मिल चुके हैं जहां स्टाफ की कमी के कारण कई अवैध निर्माण पूरे हो चुके हैं।
हाल ही में सिंहद्वार के पास हो रहे एक निर्माण को खुद प्राधिकरण के वीसी दीपक रावत ने रुकवाया था, पर उनकी गैरमौजूदगी में फिर से निर्माण कार्य शुरू करा दिया गया। स्थानीय लोगों ने प्राधिकरण के सचिव हरवीर सिंह को कई बार इसकी शिकायत की तो उन्होंने निर्माण कार्य को रुकवाया, लेकिन तब तक तीसरी मंजिल पर अवैध रूप से छत डालने की तैयारी पूरी हो चुकी थी।
इसी तरह पुराने रानीपुर मोड़ पर बनी एक चार मंजिला इमारत भी जैसे प्राधिकरण का मुंह चिढ़ा रही है। रातों-रात काम चलाकर मंत्री जी के करीबी कहे जाने वाले एक डाॅक्टर ने इसका निर्माण करा दिया, जबकि नियमानुसार यहां 4 मंजिला निर्माण नहीं हो सकता, लेकिन नियमों को ताक पर रखकर बिना मानचित्र स्वीकृत कराए यहां यह गगनचुंबी इमारत खड़ी कर दी गई। जिसे प्राधिकरण मूकदर्शक बना हुआ देखता रहा। यदि प्राधिकरण के अधिकारियों से कुछ सवाल जवाब किए जाएं तो वह भी शून्य में झांकने लगते हैं। बहरहाल यदि प्राधिकरण में इसी तरह तकनीकी स्टाफ की किल्लत जारी रही तो वो दिन दूर नहीं जब पूरा शहर अव्यवस्थित अवैध निर्माणों से घिर जाएगा।
-अरुण कश्यप