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‘मैं चीखता-चिल्लाता रहा कि अंधा हूं, पर वो मुझे पिटते रहे’

'मैं चीखता-चिल्लाता रहा कि अंधा हूं, पर वो मुझे पिटते रहे'

वर्ष 1969 में अस्तित्व में आया जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय इस समय गंभीर संकट और संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का जुमला उछाल जेएनयू की साख को नष्ट करने का प्रयास राजनीतिक विचारधाराओं के जंजाल में उलझकर विकराल रूप ले चुका है। 5 जनवरी को कैंपस में हुई हिंसा को लेकर विश्वविद्यालय के कुलपति जगदीश कुमार की भूमिका संदिग्ध ही नहीं, बल्कि पूरी तरह काली नजर आ रही है। जगदीश कुमार के इस्तीफे की अफवाहों के बीच ‘दि संडे पोस्ट’ की टीम ने जेएनयू का दौरा कर जो कुछ जाना-समझा वह न केवल स्तब्धकारी है, वरन् वर्तमान सत्ता-प्रतिष्ठान की मंशा पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है

 

‘‘मैं चीखता रहा, चिल्लाता रहा कि मैं अंधा हूं, पर वो मुझे मारते गए, एक लड़की की भी आवाज सुनी वो कह रही थी कि अंधा है तो क्या हुआ, मारो सालों को, ये सब देशद्रोही हैं, पीटो इन्हें।’’ यह दहशत भरा बयान जेएनयू के एमफिल के छात्र सूर्य प्रकाश का है जो ब्लाइंड हैं और संस्कृत विभाग में शोध की पढ़ाई करते हैं।

अब एक और बयान पढ़िए

 

 

 

 

 

 

 

‘हम किस मेंटल ट्रामा से गुजर रहे हैं, आप उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। हमें न पुलिस से मदद मिल रही है, न विश्वविद्यालय प्रशासन से और न ही हॉस्टल के गार्ड्स से। हमें लोहे की रॉड से मारा गया है। मेरे साथियों के सिर तक फट गए हैं, हमसे कोई बात तक नहीं करने आ रहा। हम किस स्थिति में हैं किसी को परवाह नहीं।’’ यह बात ‘दि संडे पोस्ट’ को साबरमती हॉस्टल की प्रेसीडेंट की प्रेसीडेंट मोनिका बिश्नोई ने बताई जो लैंग्वेज की पढ़ाई कर रही हैं।

सूर्य प्रकाश, जो संस्कृत विभाग में शोध छात्र हैं, उन्होंने बताया कि ‘शाम 6 बजे के करीब गुंडों ने मेरे दरवाजे पर हमला किया, खिड़कियां तोड़ी और कहा कि दरवाजा खोलो, मैंने अंदर से आवाज दी कि मैं अंधा हूं मुझे मत मारो तो उन्होंने मुझे गंदी गालियां दी। उनमें से एक लड़की ने कहा अंधा है तो क्या हुआ, इन्हें खूब मारो। हमने पुलिस को फोन किया तो वहां से भी मदद के बजाय गालियां ही मिली। मेरे फोन पर मुझे जान से मारने की धमकियां आ रही हैं। मैंने सभी नंबर पुलिस को दिए, पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।’

मोनिका कहती हैं कि ‘उस दहशत की रात को तीन दिन बीत गए, पर विश्विद्यालय प्रशासन का कोई भी व्यक्ति हमारे हाल चाल पूछने तक नहीं आया। जब रविवार 5 जनवरी की रात हमने पुलिस को फोन किया तो पुलिस को हमारी आवाज में साबरमती हॉस्टल नहीं सुनाई दे रहा था। यह सब दुःखद था, डराने वाला था। अंधेरे में हम पर हमले होते जा रहे थे।’

बतौर मोनिका, वो 5 जनवरी को हॉस्टल में उस समय उपस्थित थीं जब बेखौफ, गुंडे कानून की धज्जियां उड़ा रहे थे। मोनिका थोड़ा सहमी हुई थीं, वो बस लड़कियों को ह्यूमन चैन बनाकर सुरक्षित करने का प्रयास कर रही थीं। उनके कई साथियों को चोटें आई हैं। वो कह रही थीं आप सोचिए कि सिर्फ 20 प्रतिशत लड़कियां यहां हैं बाकी सब सहमकर अपने घर चली गई हैं। हमें न गार्ड की सुरक्षा मिलती है, न पुलिस की, न विश्वविद्यालय प्रशासन से कोई जवाब। उन्होंने कहा कि मारने वाले गुंडों में जो लोग थे वे टार्गेट करके हम पर वार कर रहे थे। मोनिका दुखी मन से बताती हैं कि ‘मैं नहीं जानती कि वो नकाबपोश कौन थे, पर लगातार इतनी नफरत विश्विद्यालय में देखकर मैं मेंटल ट्रॉमा से गुजर रही हूं। सबसे सुरक्षित जगह को सबसे डरावनी जगह बना दिया गया है।’

जेएनयू प्रशासन की शिकायत पर जवाहर लाल नेहरू छात्र संघ अध्यक्ष आईशी घोष के अलावा 20 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। जेएनयू प्रशासन ने भी अब इन लोगों की सूची जारी की है।

चश्मदीदों के अनुसार, छात्रों को टार्गेट कर हमले किये गए। अहम सवाल है कि दंगाइयों को कैसे पता कि रूम नंबर 156 में कश्मीरी छात्र रहता है? उन्होंने अगल-बगल के कमरे छोड़कर उसी कमरे को क्यों चुना। इसका मतलब कि छात्रों में ही कोई उन नकाबपोशों से मिला हुआ था। जबर्दस्त हिंसा हुई है, टार्गेट वॉर हुआ है। कश्मीरी, मुस्लिम, डिसएबल्ड छात्रों और छात्राओं पर बुरी तरह राड और लाठी से हमला हुआ है। जिसकी सिर्फ निंदा ही की जा सकती है। हालांकि यह अभी जांच चल रही है कि वो नकाबपोश गुंडे कौन थे, पर लगातार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लोगों पर आरोप लग रहे हैं। वहीं जिन छात्रों, पर आरोप लग रहे हैं वो मीडिया के सामने आकर अपनी सफाई दे सकते थे, पर उनमें से कोई भी सामने नहीं आ रहा है। ज्ञान, शील और एकता की मिसाल देने वाले छात्र संगठन को अपने भीतर के अराजक तत्वों को त्वरित चिन्हित कर निष्कासित करना चाहिए।

पूरे मामले में पुलिस और विश्विद्यालय प्रशासन की कार्यवाही को संदिग्ध और भेदभाव­पूर्ण माना जा रहा है क्योंकि जिस वक्त यानी कि शाम को नकाबपोश गुंडों का हमला चल रहा था उस वक्त विश्विद्यालय प्रशासन जेएनयूएसयू लीडर आइशी घोष और अन्य छात्रों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा रहा था। आइशी घोष के सर पर लगभग 15 स्टिच लगी हैं और हाथ में मेजर इंजरी हुई है।


छात्र-छात्राओं में इस बात को लेकर आक्रोश है कि एक तरफ तो गुंडों ने उनको पीटा, दूसरी तरफ विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके खिलाफ तोड़फोड़ और मारपीट के मामले में एफआईआर भी लिखवाई है। हिंसा के खिलाफ छात्र -छात्राओं द्वारा सभाएं की जा रही हैं। मंगलवार 7 जनवरी की शाम को आयोजित एक ऐसी ही सभा में बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण भी पहुंचीं। इसके अलावा यहां पहुंचे सीपीआई नेता डी ़राजा, जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने छात्रों को संबोधित किया। दीपिका ने छात्रसंघ अध्यक्ष आईशी घोष से बात की। संस्थान के छात्रों ने कहा कि दीपिका छात्रों का साथ देने के लिए आईं थीं और उन्होंने इस घटना का विरोध किया।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 5 जनवरी की रात को हिंसा की घटना की हर जगह निंदा हो रही है। इस घटना में तकरीबन 25 छात्र और शिक्षक गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इस पूरे घटनाक्रम में जेएनयू कैंपस के सर्वर रूम का बार- बार जिक्र आ रहा है। जेएनयू में रविवार 5 जनवरी शाम को हुई हिंसा और विवाद को समझने के लिए सबसे पहले यहां चल रहे फीसवृद्धि आंदोलन को समझना होगा। जेएनयू में फीस बढ़ोतरी को लेकर सबसे बड़ा प्रदर्शन पिछले साल 11 नवंबर को हुआ था। विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दिन छात्रों ने प्रदर्शन करके केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री से बढ़ी हुई फीस वापस लेने की मांग करते हुए समारोह का बहिष्कार किया था। मंत्रालय की ओर से कमेटी गठित होने के बाद प्रशासन ने बढ़ी हुई फीस में आंशिक कमी करते हुए आंदोलनकारी छात्रों से वापस कक्षाएं ज्वाइन करने के लिए कहा था। लेकिन जेएनयू छात्रसंघ कंपलीट रोल बैक यानी पूरी बढ़ी हुई फीस वापस लेने की मांग पर अड़ा रहा।

छात्रों की इस मुहिम को देश के अन्य विश्वविद्यालयों और जेएनयू के लेफ्ट विंग शिक्षकों का भी सहयोग मिल रहा था। शुरुआती दौर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने भी फीस बढ़ोतरी पर प्रदर्शन किया था, लेकिन आंशिक तौर पर ये वृद्धि वापस होने के बाद उन्होंने विरोध वापस ले लिया था। वहीं जेएनयू प्रशासन ने अपना पक्ष देते हुए कहा था कि विश्वविद्यालय बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) छात्रों को आर्थिक रूप से मदद भी करेगा। लेकिन विरोध प्रदर्शन फिर भी जारी रहा।


जेएनयू में विरोध कर रहे छात्रों ने परीक्षा का भी बहिष्कार किया था, इसके बाद प्रशासन की ओर से दाखिला प्रक्रिया शुरू की गई थी।जेएनयू छात्रसंघ लगातार इसका भी विरोध कर रहा था। ये दाखिला प्रक्रिया जेएनयू के सर्वर रूम से की जाती है। जेएनयू में ऑनलाइन दाखिला प्रक्रिया के लिए सर्वर रूम की बड़ी भूमिका है। आरोप है कि शनिवार 4 जनवरी को जेएनयू छात्र संघ ने सर्वर रूम को लॉक कर दिया था। जेएनयू प्रशासन ने शनिवार को बयान जारी करके कहा था कि कुछ छात्रों ने मास्क पहनकर सर्वर रूम पर कब्जा कर लिया था और तकनीकी स्टाफ को बंधक बना लिया था। वहीं रविवार 5 जनवरी को इसको लेकर एबीवीपी और लेफ्ट विंग के स्टूडेंट्स में हल्की झड़प हुई थी। इसके बाद जेएनयू छात्र संघ की ओर से साबरमती हॉस्टल से मार्च निकाला जाना था। इसी मार्च के दौरान यहां हिंसा हुई जिसे लेफ्ट विंग के छात्र एबीवीपी की ओर से सुनियोजित हमला बता रहे हैं।

फिलहाल जवाहर लाल नेहरू स्टूडेंट्स यूनियन (जेएनयूएसयू) और जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन (जेएनयूटीए) ने इस घटना के लिए आरएसएस से जुड़े अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को जिम्मेदार ठहराया है जबकि एबीवीपी ने इसमें किसी तरह का हाथ होने से इनकार किया है। पूरे मामले को लेकर गृह मंत्रालय ने दिल्ली पुलिस और मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने जेएनयू प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है। इस बीच इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर बताती है कि भाजपा समर्थित एबीवीपी के कम से कम छह पदाधिकारी, जेएनयू के चीफ प्रॉक्टर, दिल्ली यूनिवर्सिटी से संबद्ध एक कॉलेज के शिक्षक और दो पीएचडी छात्र तीन ऐसे वाट्सएप ग्रुप का हिस्सा थे जिनमें बीते 5 जनवरी को हिंसा की धमकी देते मैसेज चल रहे थे। हिंसा से पहले ये तीनों ग्रुप खूब सक्रिय थे, बल्कि इनमें तब भी मैसेज भेजे जा रहे थे जब नकाबपोश हमलावर जेएनयू कैंपस में घुसकर उपद्रव कर रहे थे।

दूसरी तरफ लगभग एक मिनट का वीडियो आया है वाइस चांसलर जगदीश कुमार का। उन्होंने कहा है कि चीफ प्रॉक्टर और दिल्ली पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है। हम हमलावरों पर कोई धारणा नहीं बनाना चाहते हैं। फिलहाल दिल्ली पुलिस और जेएनयू की एक कमेटी मामले की जांच कर रही है। वाइस चांसलर ने कहा कि 5 जनवरी को यूनिवर्सिटी में जो कुछ भी हुआ, वह नहीं होना चाहिए। यूनिवर्सिटी में हिंसा कतई नहीं होनी चाहिए।

सवाल उठ रहे हैं कि आखिर पुलिस उस वक्त इतनी मुस्तैद क्यों नहीं थी जब एक साथ 50-60 लोगों की भीड़ मेन गेट से कैंपस में घुसती है? यूनिवर्सिटी प्रशासन के बयान और पुलिस की कर्रवाई में देरी का अंतर, दोनों के बयान की सत्यता पर कई गम्भीर सवाल खड़ा करते हैं। छात्रों को दिल्ली पुलिस पर निष्पक्षता से जांच का भरोसा क्यों नहीं है? देश के प्रतिष्ठित संस्थान का जब यह हाल है तो अन्य जगह छात्रों की क्या सुरक्षा होगी, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।

-साथ में नीतू टिटाण और कोहिनूर

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