सैयद अब्दुल करीम उर्फ टुंडा को हैदराबाद कोर्ट ने मंगलवार को बरी कर दिया। करीम टुंडा पर 1998 में सिलसिलेवार बम धमाके की साजिश रचने का आरोप लगा था। टुंडा पर देशभर में 40 से ज्यादा बम धमाके करने का आरोप है। मेट्रोपोलिटन सेशन न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष टुंडा के खिलाफ पर्याप्त सबूत प्रस्तुत नहीं कर पाया। हालांकि, मेट्रोपोलिटन सेशन कोर्ट जज ने इस फैसले को सुरक्षित रखा था।
हैदराबाद में 1998 में गणेश उत्सव के दौरान लगातार कई ब्लास्ट हुए थे। टुंडा पर ब्लास्ट की साजिश रचने और अंजाम देने का आरोप था। आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसमें आपराधिक साजिश, शस्त्र अधिनियम, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, पासपोर्ट अधिनियम और विदेशी अधिनियम शामिल हैं।
पुलिस के मुताबिक, टुंडा इसमें सहअभियुक्त था और अन्य आरोपियों को उसने बम बनाना सिखाया था। पुलिस ने उसे दुर्दांत आतंकी माना था। टुंडा पर देश के अन्य हिस्सों में भी हुए बम धमाके के कुछ मामलों में आरोपी हैं। अभी बाकी मामले लंबित हैं। टुंडा को गाजियाबाद जेल में रखा गया है। पुलिस के अनुसार, टुंडा उन 20 आतंकियों में शामिल रहा है, जिन्होंने 26/11 मुंबई आतंकी हमले को अंजाम दिया। पुलिस ने इस मामले में कुल 28 आरोपियों को गिरफ्तार किया था।
पुलिस का कहना था कि आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने देश में कई स्लीपर सेल बनाए थे। उनमें से एक स्लीपर सेल का चीफ टुंडा को बनाया था। वह लश्कर चीफ जकी रहमान लखवी का खासमखास था। 1984 में भिवंडी दंगों के बाद टुंडा ने एक संगठन बनाया। जिसमें आग्रीपाडा का रहनेवाला डॉक्टर जलीस अंसारी भी शामिल हो गया। यह वही अंसारी है, जिसने देश भर में कई बम धमाके किए थे।
डॉक्टर अंसारी ने मुंबई यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस किया। वह कुछ साल जेजे अस्पताल में रहा। जब 1984 में भिवंडी में दंगे हुए, तो डॉक्टर अंसारी ने भिवंडी में एक कैंप लगाया। वहीं टुंडा की मुलाकात डॉक्टर अंसारी से हुई। इस मुलाकात के बाद टुंडा ने डॉक्टर अंसारी को अपने संगठन में शामिल कर लिया। जब दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई, तो टुंडा ने डॉक्टर अंसारी को बम बनाने की ट्रेनिंग दी।
इसी के बाद डॉक्टर अंसारी भी बम बनाने लगा। फिर ये सब देशभर में ब्लास्ट करने लगे। ऐसा आरोप है कि इन तीनों ने अपने साथियों के साथ मिलकर देशभर में कुल 60 ब्लास्ट किए थे। यूपी में ऐसे ही एक बम बनाने के दौरान टुंडा का एक हाथ उड़ गया। इसके बाद से ही उसका नाम टुंडा पड़ गया। अनुपम खेर और नसीरूद्दीन शाह की फिल्म ‘अ वेडनसडे’ की कहानी उसी की दहशत पर केंद्रित है।
78 साल के सैय्यद अब्दुल करीम टुंडा को 16 अगस्त, 2013 को भारत-नेपाल सीमा पर मौजूद बनबासा से केंद्रीय एजेंसी ने गिरफ्तार किया था। बाद में हैदराबाद पुलिस ने उसे हिरासत में लिया था। बताया जाता है कि टुंडा बहुत ही ईमानदार और मेहनती था। लेकिन 1985 में हुए सांप्रदायिक दंगों में जब टुंडा के एक करीबी रिश्तेदार जफर भाई को जिंदा जला दिया गया तो इस घटना ने उसे अन्दर तक झकझोर दिया। इस घटना के बाद से ही वह आतंकी कार्यों में संलिप्त हो गया।