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मशीन नहीं इंसान बचाएंगे मजदूरों की जान

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिलक्यारा टनल में दिवाली के दिन से फंसे 41 मजदूरों और उनके परिवार की जिंदगी में अँधेरा छाया हुआ है। मजदूरों को फंसे आज 16 दिन हो रहे हैं। जिन्हे अलग-अलग तकनीकों से लगातार बाहर निकालने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन अब तक कोई सफलता नहीं मिली है।

 

पिछले दिनों सुरंग के मलबे को ऑगर मशीन के जरिए ड्रिल किया जा रहा था लेकिन बाद में मशीन का हिस्सा टूट गया जिसके कारण कुछ समय के लिए मलबा हटाने की प्रक्रिया को रोका जाना पड़ा। हालांकि अब टूटे हुए टुकड़े को बाहर निकल लिया गया है और अब मशीनों की जगह इंसानी ताकत के सहारे ही मजदूरों को बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू की गयी है। जिसका अर्थ है कि अब मशीनों से मलबा हटाए जाने की बदले मजदूरों द्वारा हाथों से खुदाई शुरू होगी, जिसे चूहा खनन (रैट माइनिंग) कहा जाता है। माना जा रहा है कि इस रैट माइनिंग के जरिये ही सरकार को सफलता हासिल हो सकती है।

रैट माइनिंग की प्रक्रिया के तहत मजदूरों को चूहे की तरह काम करना होता है। सुरंग में ये लोग किस तरह से खुदाई करेंगे इस बारे में चूहा खनन करने वाले मजदूरों एबीपी न्यूज़ को बताया की दो लोग पाइपलाइन में जाएंगे, एक आगे का रास्ता बनाएगा और दूसरा मलबे को ट्रॉली में भरेगा। जिसके बाद बाहर खड़े चार लोग पाइप के अंदर से मलबे वाली ट्रॉली को रस्सी के सहारे बाहर ​खींचेंगे।

एक बार में 6 से 7 किलो मलबा बाहर लाएंगे। इसी तरह बाकी बची 10 मीटर की खुदाई का काम होगा। साथ ही मलबा निकलने का काम कर रहे मजदूरों ने अंदर फंसे मजदूरों के प्रति सहानुभूति जताते हुए कहा है कि, ” अंदर फंसे लोग भी श्रमिक हैं और हम भी श्रमिक हैं। उन्हें बचाएंगे तो कल अगर हम कहीं फंसे तो ये लोग बचाएंगे।

 

कैसे हुआ हादसा

 

दरअसल, चार धाम वाली सड़क जो यमुनोत्री के लिए जा रही है वहां बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री इन चारों को जोड़ा जा रहा था। उसी कार्य के लिए एक जगह जहां सुरंग का निर्माण चल रहा था, वहां दीपावली के दिन सुबह के शिफ्ट में जो लोग काम करने गए थे, उसी समय सुरंग में अचानक से मलबा आ गया। कहा जा रहा है कि उस सुरंग 41 लोग फंस गए। पिछले दो दिनों से उनको बाहर निकालने और सुरंग को साफ करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

लेकिन अभी तक उन 41 मजदूरों को सुरक्षित निकाला नहीं जा सका है। सुरंग का निर्माण करा रही एनएचआईडीसीएल के अनुसार टनल में फंसे हुए मजदूरों में दो उत्तराखण्ड, एक हिमाचल प्रदेश, चार बिहार, तीन पश्चिम बंगाल, आठ उत्तर प्रदेश, पांच उड़ीसा, दो असम और 15 झारखण्ड के हैं। टनल में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए एनएचआईडीसीएल, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी, बीआरओ के लोग लगातार काम कर रहे हैं और अब हाई पावर आगर ड्रिलिंग मशीन से भी कोशिश की जा रही है।

इस हादसे पर पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यहां जो हिमालय का क्षेत्र है वो बहुत ही कमजोर है और यहां लगातार इस तरह के हादसे होते रहे हैं। इसके बावजूद वहां की भौगोलिक स्थिति को बगैर ध्यान में रखे काम किए जा रहे हैं। जिसके लिए विस्फोटकों का इस्तेमाल होता है। इसलिए यहां हादसे होना स्वाभाविक माना जाता हैं।
दो साल पहले चमोली का हादसा हुआ और इस साल चार धाम यात्रा शुरू होने से पहले जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाओं के साथ ही उत्तराखण्ड के कई हिस्सों से लैंडस्लाइड की खबरें लगातार आ रही हैं। ऐसे में निर्माण कार्यों होना ही हादसों की मुख्य वजह माना जा रहा है।

 

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