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किसानों और जाटों की उम्मीदों पर कितना खरा उतर पाएंगे जयंत चौधरी?

कुछ दिनों पूर्व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेता चौधरी अजीत सिंह का कोरोना बीमारी के चलते निधन हो गया। आगामी 18 मई को उनकी तेरहवीं है । इस दिन खाप के चौधरी उनके बेटे जयंत चौधरी के सर पगड़ी बांध देंगे। जाटों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खाप के सरदारों की पगड़ी की लाज अब जयंत चौधरी के सर पर होगी। इसी के साथ ही जयंत चौधरी से अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ख़ासकर जाटों की बड़ी उम्मीद होगी । साथ ही उनके पिता चौधरी अजीत सिंह का वह सपने भी जिसमें वह हरित प्रदेश और हाईकोर्ट की बेंच की स्थापना चाहते थे ।

सवाल यह है कि उनका वह सपना जयंत चौधरी कितना पूरा कर पाएंगे? साथ ही 2022 के विधानसभा चुनाव की भी चुनौती जयंत चौधरी के कंधों पर होगी। इस चुनाव में वह किस तरह अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाएंगे इस पर सभी की नजर होगी।

सर्वविदित है कि चौधरी चरण सिंह के बेटे होने के कारण अजीत सिंह को काफी बड़ी विरासत मिली, वह थी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट वोट बैंक की। इसी वोट बैंक की वजह से हर पार्टी अजीत सिंह की ओर हाथ मिलाने के लिए लपकती थी। लेकिन उसे बचाने में अब चौधरी चरण सिंह की तीसरी पीढी जयंत चौधरी को काफी पसीना बहाना पड सकता है।

उत्तर प्रदेश में दो सीटें किला मानी जाती थीं- एक रायबरेली और दूसरी बागपत। बागपत चौधरी परिवार का किला मानी जाती थी। चौधरी चरण सिंह कभी वहां से चुनाव नहीं हारे और यह भी 6 बार सांसद रहे। लेकिन उनके बाद उनके बेटे चौधरी अजीत सिंह को दो बार शिकस्त झेलनी पड़ी। एक बार 2014 खुद हारे तो दूसरी बार 2019 में इनके बेटे जयंत भी बागपत से हार गए। अजित सिंह के निधन के बाद जयंत के सामने चुनौतियां होंगी पार्टी के छिटके वोट बैंक को दोबारा लाने की, खासकर जाट वोट बैंक की।

राजनीति के जानकारों का कहना है कि अजित सिंह का पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बेल्ट में जो पराभव हुआ था वह समाप्त होने लगा था। किसान आंदोलन ने अजित सिंह को एक नई ताकत दी थी। आम तौर पर दिल्ली में बने रहने वाले अजित सिंह ने किसान आंदोलन के बहाने पश्चिमी यूपी के गांव-गांव में फिर पैठ बढ़ाई थी। ऐसे में उन्होंने अपने बेटे जयंत चौधरी को भी आगें कर दिया था।

लेकिन ऐसे समय में अजित सिंह चले गए। जब किसान आंदोलन के एक बार फिर से खड़े होने को उम्मीद मिली थी। चौधरी चरण सिंह के बाद अजित सिंह और अब जयंत चौधरी को वह जाट राजनीति की विरासत दे गए हैं। लोगों को जयंत से काफी उम्मीदें हैं। सबसे बडी उम्मीद यह है कि अब अजित सिंह के ना रहने पर जयंत चौधरी चौधरी चरण सिंह की विरासत को आगे बढ़ाएंगे।

हालांकि गत दिनों हुए पंचायत चुनाव में सफलता के बाद 2022 में सपा और रालोद की उम्मीदें बढी हैं। सपा और आरएलडी का साथ तभी सफल होगा अगर 2013 के दंगों के जख्म अगर भर गए होंगे । अगर ऐसा होता है तो जाट-मुसलमान एक साथ आ सकते हैं। जबकि पिछले साल से शुरू हुए किसान आंदोलन ने कुछ हद तक खाई को पाटने का काम किया है।

चौधरी अजित सिंह की खासियत यह रही कि विदेश से पढ़कर आने के बाद भी वह अपनी जड़ों से कभी कटे नहीं। अपने पिता की विरासत को सहेजने में पूरी तरह तो नहीं लेकिन कुछ हद तक वह कामयाब जरूर हुए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति पर उनकी मजबूत पकड़ रही। खास तौर से जाट बिरादरी के बीच । काफी समय तक चौधरी अजीत सिंह जाटों के सर्वमान्य नेता रहे।

हाल ही में इसका उदाहरण उस समय देखने को मिला, जब नरेश टिकैत ने किसानों की सभा में कहा कि हम लोगों ने अजित सिंह को हराकर बहुत बडी गलती की।

ये कहना दिखाता है कि भले ही रालोद को जाट समाज ने 2014 और 2019 में हरा दिया लेकिन जाटों के मन में उनके लिए स्नेह या सम्मान की भावना जरूर अभी भी हैं। दूसरी तरफ जाट समाज को यह लगता था कि किसानों की पीड़ा को चौधरी परिवार समझते हैं। शायद यही वजह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट पहले चौधरी चरण सिंह उसके बाद चौधरी अजीत सिंह और अब जयंत चौधरी पर विश्वास करते रहे हैं।

फिलहाल , जाटों में जयंत चौधरी को सहानुभूति भी मिलेगी। इस समय जयंत चौधरी किसान आंदोलन के जरिए जाटों में ज्यादा ऐक्टिव भी हैं। जाटों का मानना है कि चौधरी चरण सिंह की विरासत को अच्छी तरह संभाल सकते हैं। जाटों को जयंत पर किसान आंदोलन के साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने के आंदोलन को लेकर काफी उम्मीदें भी हैं। वैसे भी चौधरी अजित सिंह की दो उम्मीद अधूरी रह गई थी। एक पश्चिमी उत्तर प्रदेश को हरित प्रदेश बनाना और दूसरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट की बेंच की स्थापना कराना। अब देखना यह है कि जयंत चौधरी इन उम्मीदों पर कितना खरा उतर पाएंगे।

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