आगामी लोकसभा चुनाव (2019) भाजपा के लिए सर्वाधिक चुनौती भरा होगा। इस बार यह चुनौतियां उसे बाहर से नहीं बल्कि घर से ही मिलने वाली हैं। जहां एक तरफ वर्तमान मंत्री और सांसदों को टिकट न दिए जाने की अटकलों को लेकर पार्टी में अभी से विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं तो वहीं दूसरी ओर सबसे बड़ी चुनौती उसे अयोध्या के साधु-संतों की तरफ से मिलने वाली है। ये वह साधु-संत हैं जो अब तक राम मन्दिर निर्माण की आस में पूरे उत्तर प्रदेश के हिन्दुओं के बीच भाजपा को मजबूती देने के लिए प्रचार करता रहे हैं। इस बार यह वर्ग सिर्फ आश्वासन के सहारे दिन गुजारने के लिए तैयार नहीं है। इस बार साधु-संतों ने ठान ली है कि यदि लोकसभा चुनाव से पूर्व अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण की शुरुआत नहीं की जाती है तो पूरे देश में भाजपा का एकतरफा विरोध शुरू हो जायेगा। संतों का यह विरोध मुख्तार अब्बास नकवी के उस बयान के बाद से मुखर हुआ जिसमें उन्होंने यह कहा था कि राम मन्दिर निर्माण का फैसला कोर्ट के फैसले के बाद ही लिया जायेगा। इस बयान के बाद से भड़के साधु-संतों की नाराजगी को दूर करने की कमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही अयोध्या से भाजपा विधायक वेद प्रकाश गुप्ता को सौंपी गयी है। फिलहाल संतों का मनाने का दौर अनवरत जारी है। इस संवाददाता ने जब विधायक वेद प्रकाश गुप्ता से वस्तुस्थिति की जानकारी लेनी चाही तो फोन पर कहा गया कि मुख्यमंत्री से वार्ता हो रही है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि मौजूदा सरकार के लिए यह मुद्दा कितना अहम है।
विगत वर्ष जब यूपी की कमान संत से सांसद बने महंत योगी आदित्यनाथ के हाथों में सौंपी गयी तो भले ही यूपी की जनता में वह उत्साह न देखा गया हो जिसका अनुमान भाजपा हाई कमान को था लेकिन अयोध्या का एक वर्ग ऐसा था जो महंत योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने पर बेहद खुश था। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद सर्वाधिक जश्न का माहौल भी अयोध्या में ही था। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के पश्चात सर्वाधिक खुश होने वाला वर्ग था संतों और महंतों का। अयोध्या के संतों-महंतों को इस बात का यकीन हो चला था कि एक संत के मुख्यमंत्री बनने के बाद अब अयोध्या में राम मन्दिर के निर्माण को कोई ताकत नहीं रोक सकती। योगी सरकार के कुछ महीनों पश्चात ही जब यूपी के कुछ मुसलमानों ने भी अयोध्या के विवादित स्थल पर राम मन्दिर की पैरवी शुरु की तो संत-महंत की उम्मीदें और बढ़ गयीं। कुछ दिनों तक चली यह हलचल कुछ महीनों पश्चात एकाएक शांत पड़ गयी। लगभग एक वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने को आया और अयोध्या की हलचल में कोई तब्दीली नहीं दिखी तो अयोध्या के संतों का चिंतित होना लाजमी थी। इस दौरान अयोध्या के संतों ने अनेक बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक को लोकसभा चुनाव 2014 और विधानसभा चुनाव 2017 में किए गए वादों को याद दिलाया। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भाजपा के लिए संतों-महंतों की उपयोगिता किसी संजीवनी से कम नहीं है। इस वर्ग का नाराज होने का मतलब है कि सीधे-सीधे यूपी के वोट बैंक का नुकसान। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि यूपी की फतह के बगैर केन्द्र की सत्ता पर काबिज होना आसान नहीं है, शायद यही वह वजह है कि योगी से लेकर मोदी तक इस वर्ग को नाराज होता नहीं देखना चाहते।

मुख्यमंत्री से मुलाकात करने वाले संतों में महंत कमलदास, महंत सुरेश दास, महंत राजकुमार दास, बाबा शिवशंकर दास, बाबा नारायणी दास, सतेन्द्र दास, महेन्द्र दास, परमहंस दास, भरत दास और महंत रामदास समेत कई महंत मौजूद रहे। इन संतों में से राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास ने ही राम मन्दिर निर्माण की शुरुआत न करवाए जाने की दशा में लोकसभा चुनाव में परिणाम भुगतने की चेतावनी दी थी। मुख्य पुजारी ने यहां तक कह डाला था कि भाजपा ने भगवान राम के साथ एक तरह से धोखाधड़ी की है, वे सत्ता में राम के नाम से आई और फिर भूल गई। महंत परमहंस दास (दिगम्बर अखाड़ा) ने तो आन्दोलन तक की चेतावनी दे डाली थी। परमहंस दास ने तो स्पष्ट लहजे में कहा था कि यदि भाजपा को दोबारा सत्ता में आना है तो वर्ष 2019 से पहले-पहले राम मन्दिर निर्माण की नींव डालनी ही होगी। यदि ऐसा नहीं होता है तो जिन संतों ने विगत चुनावों में भाजपा के लिए जान लड़ा दी वही संत इस बार भाजपा के खिलाफ ही आन्दोलन के लिए बाध्य हो जायेंगे।
जून माह में मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद पार्टी की तरफ से छायी चुप्पी ने अयोध्या के संतों को एक बार फिर से उद्वेलित कर दिया है। संतों ने खुला ऐलान कर दिया है कि यदि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा की तरफ से पहल नहीं की जाती है तो भाजपा के खिलाफ आन्दोलन की शुरुआत जल्द हो जायेगी। संतों के इस ऐलान का असर यह हुआ कि लगभग चार वर्ष से भी अधिक समय तक चुप्पी साधे रहा केन्द्रीय हाई कमान हरकत में आया और उसने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों में संतों को मनाने की कमान सौंप दी है।
मामले की गंभीरता को भांपते हुए इस बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं नाराज संतों को मनाने अयोध्या पहुंच गए। विगत दिनांे संतों के साथ हुई मीटिंग में एक बार फिर से संतों को आश्वासन की घुट्टी पिलायी गयी। इस मीटिंग में जब योगी आदित्यनाथ ने संतों से यह कहा कि मामला कोर्ट में है, कोर्ट के फैसले के बाद ही राम मन्दिर निर्माण पर कोई फैसला लिया जा सकता है तो संत आग-बबूला हो उठे। संत हर कीमत पर लोकसभा चुनाव से पूर्व अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण को लेकर पहल किए जाने पर अडिग रहे।
उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि यदि आने वाले कुछ दिनों में अयोध्या के साधू-संतों का क्रोध शांत करने के लिए भाजपा ने कोई उपयुक्त कदम नहीं उठाया तो निश्चित तौर पर आगामी लोकसभा चुनाव में संतों का भाजपा विरोधी धमाल कोई न कोई गुल अवश्य खिलायेगा, दूसरी ओर भाजपा भी अब दो पाटों के बीच फंसी नजर आ रही है यदि वह कोर्ट का फैसला आने से पूर्व अयोध्या में किसी प्रकार की गतिविधि को संचालित करने की इजाजत देता है तो निश्चित तौर पर बाबरी मस्जिद का पक्षकार इसे कोर्ट की अवमानना का रूप देकर भाजपा के समक्ष संकट खड़ा कर सकता है दूसरी ओर यदि भाजपा ऐसा कुछ भी कर पाने में सक्षम नहीं हो पाती है तो निश्चित तौर पर भाजपा की रीढ माने जाने वाला संत समुदाय भाजपा को नुकसान पहुंचाने में सक्षम माना जा रहा है।
फिलहाल इस मामले को बिना किसी नुकसान के निपटाने के लिए अयोध्या से भाजपा विधायक वेद प्रकाश गुप्ता को चुना गया है। हाई कमान की तरफ से सख्त आदेश हैं कि येन-केन प्रकारेण इस मामले को सुलझाया जाए। हालांकि श्री गुप्त इस मामले को सुलझाने की गरज से संतों से मिलने का क्रम जारी रखे हुए हैं लेकिन हाल-फिलहाल यह मामला सुलझता नजर नहीं आ रहा।