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रोहतक का रण में हुड्डा दिखाएंगे दम,परिवर्तन तो होगा लेकिन पार्टी का या अध्यक्ष का 

 हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा अब बगावत के लिए तैयार हो चुके है। हुड्डा समर्थक पूर्व विधायक संतराम मलिक ने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह संकेत दे दिए है। बकौल संतराम “हुड्डा जी ने पुरे प्रदेश में घूम घूम कर लोगो की राय जान ली है। फैसला तैयार है। जिसको 18 की रोहतक रैली में सबको सुना दिया जायेगा। उनकी यह प्रेस कॉन्फ्रेंस कांग्रेस कार्यालय में आखिरी है। हो सकता है अगली बार आपसे मुलाकात यहां ना हो”।
 हरियाणा कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबियों में गिने जाते है। मलिक का मिडिया के सामने दिया गया यह वक्तव्य भविष्य का संकेत देता नजर आ रहा है। 18 अगस्त को रोहतक में हुड्डा की महापरिवर्तन रैली में परिवर्तन होना तो निश्चित है। यह परिवर्तन  सत्ता का हो ना हो लेकिन पार्टी का अवश्य हो सकता है। चर्चा है की इस दिन हुड्डा एक तीर से कई निशाने मार सकते है। जिसमे उनका पहला निशाना अपनी पार्टी आलाकमान सोनिया गांधी पर है जो विधानसभा चुनाव से पूर्व अध्यक्ष ना हटाकर हुड्डा को टिकट वितरण का अधिकार देने को तैयार नहीं तो दूसरा निशाना सत्तासीन भाजपा को रैली में अधिक से अधिक भीड़ लाकर दवाब बनाना है जो उन्हें जमीन के मामले में जेल भेजने की तैयारी कर रही है। जबकि तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण निशाना अपनी राजनीतिक पार्टी खड़ी करना है ।
हरियाणा के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके भूपेंद्र सिंह हुड्डा की लड़ाई अब निर्णायक दौर में है। कांग्रेस संगठन में बिखराव से आहत हुड्डा समर्थक विधायकों ने जहां हाईकमान पर प्रदेश की कमान अपने नेता को सौंपने का दबाव बना रखा है, वहीं विधानसभा चुनाव से पहले हुड्डा टिकट बांटने की जिम्मेदारी अपने हाथों में रखना चाहते हैं, ताकि सत्ता पर दावेदारी बरकरार रहे।
अपनी इसी रणनीति के तहत हुड्डा 18 अगस्त को रोहतक में महा परिवर्तन रैली के जरिये हाईकमान को अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने की तैयारी में हैं।
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुड्डा की महा परिवर्तन रैली पर कांग्रेस हाईकमान के साथ-साथ सत्तारूढ़ भाजपा, इनेलो, जजपा, बसपा और आम आदमी पार्टी की भी निगाह टिकी हुई है। हुड्डा की रैली में जुटने वाली भीड़ हाईकमान की नजरों में उनका राजनीतिक कद तय करेगी। साथ ही भाजपा को यह आकलन करने का मौका देगी कि उसके सामने चुनावी रण में खड़ी होने वाली भावी पार्टी कितनी मजबूत है।


हालांकि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री की तरफ से रैली का आयोजन किया जाना कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है, जैसे क्या यह उनकी तरफ से अक्टूबर में होनेवाले विधानसभा चुनाव से पहले हरियाणा कांग्रेस को तोड़कर एक क्षेत्रीय दल बनाने का पूर्व संकेत है या महज चुनाव से पहले सौदेबाजी का महौल बनाने की कवायद है। निसंदेह भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा कांग्रेस के बड़े चेहरा हैं। बहरहाल गृह युद्ध की स्थिति में खड़ी हरियाणा कांग्रेस में एक नया मोड़ आता हुआ नजर आ रहा है। खबरों की माने और मिल रही जानकारी के अनुसार हरियाणा कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा कुछ बड़ा व आश्चर्यजनक कदम उठाने की ओर अग्रसर दिखाई दे रहें हैं। इसके संकेत उन्होंने गत 5 अगस्त को रोहतक में हुए कार्यकर्ता सम्मलेन में दे दिए थे। वह सम्मलेन में मुख्यमंत्री खटटर का बार बार नाम लेकर उनपर बरसते रहे। लेकिन एक बार भी हुड्डा ने अपनी पार्टी के दो मुख्य स्तम्भ सोनिया गांधी और राहुल गांधी का नाम तक अपनी जुबान से नहीं लिया। हालांकि वह दूसरी बात थी की इस कार्यकर्ता सम्मलेन में लगे बैनर पर सोनिया गांधी के साथ ही गुलामनबी आजाद के फोटो चस्पा थे।

 अभी कांग्रेस में जिस कदर भगदड़ मची है और कई राज्यों की पार्टी यूनिट में उथल पुथल मच रही है, उसको देखते हुए पार्टी सर्किल में सबकी नजर इस पर होगी कि सोनिया गांधी और उनकी टीम हुड्डा की तरफ से पेश की जा रही चुनौती को किस तरह लेती है, क्योंकि इससे यह भी पता चलेगा कि वह अपनी दूसरी पारी में सौदेबाजी करनेवालों के साथ किस तरह निपटती हैं ? फिलहाल सवाल यह भी है कि क्या वह उन्हें जाने देंगी या उनकी बात मानेंगी ?

याद रहे कि हुड्डा और सोनिया के संबंध तब तनावपूर्ण हो गए थे, जब हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ने 2016 में कांग्रेस के राज्यसभा कैंडिडेट आर के आनंद का स्पोर्ट से मना कर दिया था। अब उन्होंने ‘परिवर्तन महारैली’ में राज्य की पार्टी यूनिट या ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के किसी बड़े नेता को नहीं बुलाया है। रैली होने में मात्र एक दिन बीच में है लेकिन हुड्डा ने अभी तक सोनिया या  राहुल किसी को भी आमंत्रित नहीं किया है। इन सबसे मामला रहस्यमय हो रहा है।

राजनितिक पंडितो की माने तो हरियाणा में हुड्डा से निपटना सोनिया के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि हुड्डा हरियाणा में पार्टी के प्रमुख अशोक तंवर की जगह लेना चाहते हैं जिन्हें राहुल गांधी ने पूर्व मुख्यमंत्री की इच्छा के विरुद्ध उस पद पर नियुक्त किया था और सपॉर्ट किया था। हरियाणा में कांग्रेस पार्टी की आंतरिक कलह की मुख्य वजह है परिवारवाद की राजनीति के साथ-साथ वो चेहरे जिन्होंने पार्टी को अपना पूर्ण योगदान देते हुए पार्टी को शीर्ष पर स्थापित किया। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने दम पर हरियाणा में कांग्रेस को लगातार दो बार  जीत दिलाई। वहीं सुरजेवाला ने अपने क्षेत्र में किए विकास कार्यों के चलते लगातार जीत दर्ज करवाई है।

इसमें भी दो राय नहीं कि हरियाणा कांग्रेस के ओर से सीएम रह चुके भजनलाल और उनके बेटे ने भी क्षेत्र के अंदर मजबूत पकड़ बनाई हुई है। जिसके चलते अब कांग्रेस पार्टी के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती आ गई है कि वह राज्य की कमान किसे दे? क्योंकि इनमें से सभी अध्यक्ष पद की दौड़ में लगे हुए है। अगर किसी एक को भी चुना जाता है तो दूसरा पक्ष उसी के विरुद्ध खड़ा हो जाता है। यह नाराजगी लोकसभा चुनाव में साफ तौर पर देखी गई थी । फ़िलहाल  हुड्डा समर्थकों की लगातार यह मांग लोकसभा चुनाव से पहले उठाई जा चुकी है कि प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का चयन फिर से किया जाए। उनका कहना है कि मौजूदा पार्टी अध्यक्ष अशोक तंवर पार्टी को संगठित करने में नाकामयाब साबित हुए हैं। तवर को  राज्य क्षेत्रों को जानकारी भी नहीं है हुड्डा समर्थकों और खुद भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अशोक तंवर से कोई तांत्रिक केले की बातें किसी से छिपी हुई नहीं है। उनकी मांग है कि आने वाला विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा जाए।
गौरतलब है कि हरियाणा में कांग्रेस के 17 विधायक हैं, जिनमें से 13 विधायक हुड्डा समर्थक हैं। प्रदेश कांग्रेस की कमान पिछले पांच छह साल से अशोक तंवर के पास है। हुड्डा समर्थक विधायकों का आरोप है कि इन छह साल में तंवर न तो संगठन ख़ड़ा कर पाए और न ही विधायकों को साथ लेकर चले। प्रदेश में जिला व ब्लाक अध्यक्ष तक नहीं हैं। इसलिए अब चूंकि विधानसभा चुनाव हैं तो हुड्डा को पूरी पावर दी जानी  चाहिए।

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