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Country Uttarakhand

घर में घिरी जीरो टॉलररेंस नीति

भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की कथनी और करनी सवालों के घेरे में है। मुख्यमंत्री पर गंभीर आरोप लग रहे हैं कि जब वे राज्य के कृषि मंत्री थे तब ढैंचा बीज घोटाला हुआ। उसी दौरान त्रिवेंद्र की पत्नी सुनीता रावत जो कि सालाना मात्र तीन लाख छह हजार रुपए का वेतन ले रही थीं, उन्होंने देहरादून में करोड़ों रुपए की जमीन खरीद डाली। आश्चर्यजनक यह है कि इस खरीद में सरकारी नियमावली का जमकर उल्लंघन किया गया। जनसंघर्ष मोर्चा ने जीरो टॉलरेंस नीति का माखौल उड़ाते हुए कहा है कि त्रिवेंद्र रावत की पत्नी ने करोड़ों की जमीन खरीदने की सूचना अपने विभाग को जानबूझकर इसलिए नहीं दी कि कहीं ढैंचा बीज घोटाले की आंच उनके पति तक न पहुंच जाए। जनसंघर्ष मोर्चा को संदेह है कि ढैंचा बीज घोटाले की काली कमाई से ही मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर करोड़ों की जमीन खरीदी गई
राज्य की त्रिवेंद्र रावत सरकार भ्रष्टाचार को समाप्त करने की अपनी ही जीरो टॉलरेंस नीति पर पलीता लगा रही है। सौ दिनों में राज्य को एक मजबूत लोकायुक्त कानून देने का वादा करने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र अपने सवा साल के शासन में न तो लोकायुक्त कानून दे पाए हैं और न ही अपनी जीरो टॉलरेंस नीति का पालन कर पा रहे हैं, जबकि स्वयं मुख्यमंत्री और उनका परिवार भी इसके जद में आ चुका है। मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार में शामिल होने और उससे की गई कमाई को जमीनों की खरीद-फरोख्त में लगाने के आरोप लग रहे हैं।
दरअसल, जन संघर्ष मोर्चा के संयोजक और राज्य की पूर्व भाजपा सरकार में दायित्वधारी राज्यमंत्री रहे रघुनाथ सिंह नेगी ने मुख्यमंत्री पर जीरो टॉलरेंस नीति का माखौल उड़ाये जाने और अपनी पत्नी के नाम पर देहरादून में करोड़ों के पांच भूखंड खरीदने के आरोप लगाए हैं। नेगी के मुताबिक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की धर्मपत्नी सुनीता रावत जो कि देहरादून के अजबपुर कलां के पूर्व माध्यमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका के तौर पर कार्यरत हैं, उन्होंने वर्ष २०१० में तीन भूखंड तथा वर्ष २०१२ में दो भूखंड खरीदे हैं। भूखंडों की खरीद के मामले में रघुनाथ नेगी का आरोप है कि इसमें उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली १९५६ का अनुपालन नहीं किया गया। नियमानुसार एक सरकारी कर्मचारी द्वारा किसी भी तरह चल-अचल संपति की खरीद- फरोख्त के लिए अपने विभाग को सूचित करना और अनुमति लेनी बेहद जरूरी है जबकि इस मामले में इसका पालन नहीं किया गया।
उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली १९५६ में राजाज्ञा सं० ९५७/ कार्मिक-१/१९९८ लखनऊ, दिनांक १७ अक्टूबर १९९८ द्वारा संशोधित जो आचरण नियमावली है उसका पालन भूमि खरीदने में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की पत्नी ने नहीं किया। इस आचरण नियमावली में पूरी तरह से स्पष्ट किया गया है कि ‘कोई भी सरकारी कर्मचारी सिवाय उस दशा में जबकि उसके संबंधित अधिकारी को इसकी पूर्ण जानकारी हो, स्वयं अपने नाम से या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के नाम से पट्टा, रहन, क्रय- विक्रय या भेंट द्वारा न तो कोई अचल सम्पति अर्जित करेगा और न ही बेचेगा।’ जन संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी द्वारा सूचना अधिकार कानून के तहत शिक्षा विभाग के उप शिक्षा अधिकारी रायपुर खंड से सूचना मांगी गई तो वहां से बताया गया कि सुनीता रावत द्वारा संपत्ति खरीदने संबंधी कोई भी सूचना अपने विभाग के अधिकारियों को नहीं दी गई। इस बारे में सूचना धारित नहीं होने की बात कही गई है। स्प्ष्ट है कि सुनीता रावत द्वारा सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली का उल्लंघन किया गया है।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की धर्म पत्नी सुनीता रावत द्वारा क्रय किए गए भूखंडों की सूचना अपने अधिकारियों को नहीं दी गई, जबकि सुनीता रावत शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापिका के तौर पर कार्यरत हैं। आरोप है कि इन सभी भूखंडों की खरीद में उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली का उल्लंघन किया गया है। यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि जब सुनीता रावत द्वारा यह भूखंड खरीदे गए थे तब त्रिवेंद्र रावत तत्कालीन भाजपा सरकार में कूषि मंत्री के पद पर थे और उन पर कूषिमंत्री रहते हुये करोड़ों के ढैंचा बीज घोटाले का आरोप भी लगा था। इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है।
देहरादून में पांच करोड़ के भूखंडों की खरीद की टाइमिंग पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। इसी टाइमिंग को लेकर जन संघर्ष मोर्चा के रघुनाथ सिंह नेगी द्वारा वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पर आरोप लगाए गए हैं। नेगी का आरोप है कि वर्ष २०१० में त्रिवेंद्र रावत राज्य की भाजपा सरकार में कूषि मंत्री के थे और उनके समय में ढैंचा बीज घोटाला हुआ था। जिसमें प्रदेश के किसानों को ढैंचा बीज वितरण में बड़ा खेल किया गया था और सरकारी खजाने को करोड़ों की चपत लगाई गई थी।
मोर्चा का यह भी आरोप है कि ८ सितंबर २०१० को देहरादून में ८३३ वर्ग मीटर भूखंड त्रिवेंद्र रावत की धर्मपत्नी द्वारा खरीदा गया था, जबकि इसी समय में ढैंचा बीज घोटाले का मामला समाने आया था। इससे यह आशंका है कि ढैंचा बीज द्घोटाले की कमाई से ही यह भूखंड खरीदा गया है। अगर ऐसा नहीं है तो किस आधार पर मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी सुनीता रावत द्वारा इस भूखंड को खरीदने की सूचना अपने विभाग के अधिकारियों को नहीं दी गई। साफ है कि ढैंचा बीज द्घोटाले का मामला सामने आ चुका था और मामले में तत्कालीन कूषिमंत्री पर उठ रहे सवालों से बचने के लिए ही सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली का जानबूझ कर उल्लंघन किया गया। अगर सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली के अनुसार सूचना दी जाती तो मामले में कई सवाल उठ खड़े होते। मसलन एक सरकारी सहायक शिक्षिका जिसकी वार्षिक आय महज ३ लाख ६ हजार ३०८ रुपए थी, जैसा कि स्वयं त्रिवेंद्र रावत ने अपने २०१४ के निवार्चन शपथ पत्र में भी उल्लेख किया है, उसने उस शिक्षित ने कैसे करोड़ों की जमीन खरीद डाली। निर्वाचन आयोग को दिए गए शपथ पत्र में त्रिवेंद्र रावत द्वारा अपनी पत्नी की वार्षिक आय आयकर रिटर्न २०१३-१४ में ३ लाख ६ हजार ३०८ रुपए का ही उल्लेख किया गया है।
अब सवाल उठता है कि महज ३ लाख ६ हजार की वार्षिक आय से किस आधार पर ८३३ वर्ग मीटर का भूखंड खरीदा गया है। यही नहीं २७ जुलाई २०१२ को ० ०-१०१ हेक्टेयर तथा ३० नवंबर २०१२ को ०-१२६ हेक्टेयर यानी तकरीबन ३ बीद्घा भूमि भी सुनीता रावत धर्मपत्नी त्रिवेंद्र रावत द्वारा खरीदी गई है। आश्चर्यजनक है कि सुनीता रावत जिनकी वार्षिक आय इन्कम टैक्स रिटर्न वर्ष २०१३-१४ के आधार पर महज ३ लाख ६ हजार थी, वे करोड़ों के भूखंड खरीद रही थीं। वे इस पूरी खरीद-फरोख्त की कोई सूचना सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली के तहत अपने अधिकारियों तक देने से परहेज करती रहीं। रघुनाथ नेगी का दावा है कि त्रिवेंद्र रावत जो कि तब राज्य के केैबिनेट मंत्री थे, उनको अपनी पत्नी की इस खरीद की सूचना थी। उनकी पत्नी द्वारा की गई खरीद-फरोख्त की जानकारी जानबूझ कर ही छुपाई गई ताकि त्रिवेंद्र रावत पर ढैेंचा बीज घोटाले और भ्रष्टाचार से कमाई करने के आरोप न लग पाएं। त्रिवेंद्र की पत्नी के नाम पर हुई जमीन खरीद बेनामी संपति का भी मामला बनता है और आय से अधिक संपति का मामला भी। जन संघर्ष मोर्चे के इस तरह खुलेआम सामने आने पर प्रदेश की राजनीति में कई तरह की चर्चायें हो रही हैं। साथ ही सरकार और खास तौर पर मुख्यमंत्री की जीरो टॉलरेंस नीति पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। अब सवाल यह है कि क्या मुख्यमंत्री अपने घर में ही जीरो टॉलरेंस के मामले में कार्यवाही करेंगे या फिर यह भी एक जुमला साबित होगा? क्या उनकी धर्म पत्नी जो कि एक सरकारी कर्मचारी हैं, अभी भी नियमों को ताक पर रखकर करोड़ों रुपए के आवासीय और व्यावसायिक भू खण्ड खरीदेंगी? क्या उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला नहीं बनता है? मामला तब बेहद दिलचस्प हो जाता है जब केंद्र की मोदी सरकार आय से अधिक संपत्ति के मामले में कड़ी कार्यवाही करने के बड़े-बड़े दावे कर रही है। अब देखना दिलचस्प होगा कि मोर्चा के अरोपों पर सरकार और प्रशासन के साथ-साथ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत क्या कदम उठाते हैं।
सार्वजनिक जीवन में शुचिता की बात करना सरल है। मगर शुचिता का पालन करना कठिन है।
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड
यह सब अफवाह है। जो लोग आरोप लगा रहे हैं, वे तथ्यों की पूरी छानबीन कर लें। उनकी याद दुरुस्त करने के लिए बता देता हूं कि २०१२ और २०१७ में दोनों बार चुनाव लड़ते समय त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी सारी संपत्तियों के खुलासे किए हैं। मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी पर आरोप लगाकर कुछ लोग झूठी प्रसिद्धि पाना चाहते हैं।
मदन कौशिक, कैबिनेट मंत्री एवं प्रवक्ता उत्तराखण्ड सरकार

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