छुट्टी मतलब छुट्टी, हॉलिडे होमवर्क एक कुप्रथा है जो बच्चों के बचपन पर कलंक है। छुट्टी में भी हम होमवर्क करें तो साल के 365 दिन में हमारे लिए कोई अवकाश है ही नहीं। ऐसा राजस्थान के झुंझुनूं में स्थित केंद्रीय विद्यालय के 9वी कक्षा में पढ़ने वाले 14 साल के एक छात्र प्रांजल का कहना है। प्रांजल ने स्कूल से मिलने वाले हॉलिडे होमवर्क का विरोध करते हुए रविवार को सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक उसने विरोध स्वरूप कलेक्ट्रेट पर धरना दिया। धरने के दौरान वह अपना होमवर्क भी कर रहा है।
प्रांजल का कहना है कि एक स्वस्थ जीवन के लिए छुट्टी जरूरी है। जिससे व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप से स्वास्थ्य रहता है। बच्चों के लिए तो अवकाश बहुत ही जरूरी है। ताकि बच्चे का विकास सही ढंग से हो सकें। वे खेल कूद के साथ अपनी रूचि की चीजों में शामिल हो सकें। इससे बच्चों का सही विकास होगा। प्रांजल हॉलिडे होमवर्क के विरोध में कहता है कि अवकाश में भी मैं अपनी रुचि का काम करने के बजाए स्कूल का होमवर्क, प्रोजेक्ट, मॉडल, फाइल आदि बनाता रहता हूं। इसलिए इसके विरोध में वह हर रविवार सुबह 10 से दोपहर 12 बजे तक कलेक्ट्रेट के सामने अपना हॉलिडे होमवर्क करते हुए अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन करता रहेगा।
प्रांजल के इस विरोध में उसकी मां अनामिका भी पूर्ण रूप से उसका समर्थन कर रही हैं। उनका कहना है की चाहे बच्चे हों या बड़े हर किसी को अवकाश मिलना चाहिए। स्कूल की छुट्टियों के दौरान बड़े तो अपना अवकाश मानते है लेकिन बच्चों को ढेर सारा होमवर्क करना पड़ता है। शिक्षण संस्थान और अभिभावक सभी यही चाहते है कि बच्चा हमेशा पढता रहे इसलिए पढ़ो-पढ़ो की रट लगाए रहते हैं। जिससे बच्चों में तनाव बढ़ता है और यही तनाव बच्चों के आत्महत्या का कारण भी बन जाता है।
अनामिका का कहती है कि इस बारे में कई बार रिमाइंडर मुख्यमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री, शिक्षा मंत्री तक को दिया जा चुका है। जिसमें स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि बच्चों के लिए हॉलिडे होमवर्क तकलीफदेह होता है। ऐसा भ्रम है कि अवकाश में फ्री रहने से बच्चों की शिक्षा गुणवत्ता खराब होगी लेकिन ऐसा नहीं है। अवकाश जितना बड़ों के लिए जरूरी है, उतना ही बच्चों के लिए भी जरुरी है। उनका मानना है कि पहले यह कुप्रथा थी कि बच्चे को जितना मारा-पीटा जाए वह पढ़ाई में अच्छा होगा। लेकिन अब इस पर कानून बन चुका है। बच्चे की पिटाई नहीं की जा सकती। इसी तरह का कानून हॉलिडे होमवर्क को लेकर भी बनना चाहिए। आज तक कई अध्ययन हो चुके हैं जिसमे पाया गया है कि अवकाश के बाद बच्चा ज्यादा अच्छी तैयारी कर पाता है। बच्चों और बड़ों के लिए अवकाश की दो परिभाषाएं नहीं हो सकतीं। दुनिया की बेहतरीन 150 शिक्षा संस्थाओं में भारत की एक भी नहीं है। इसकी वजह पढ़ाई के गलत तरीके हैं। छुट्टी होते ही बच्चों को इतना काम दे दिया जाता है कि वह अवकाश आनंद ही नहीं उठा पाते हैं। अनामिका की मांग है कि बेटे प्रांजल की मांग को लेकर आदेश जारी किया जाए।