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कैसे हुआ हिंदी भाषा का विकास 

हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा एवं मातृभाषा है, सभी क्षेत्रों में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कई संस्थाएं और एनजीओ इस पर कार्य कर रहे  हैं। यही कारण है कि दुनियाभर में हिंदी भाषा सीखने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। देश के साथ-साथ दुनियाभर में हिन्दी का प्रचार प्रसार तेजी से आगे बढ़ रहा है। आज के दौर में  एक से अधिक भाषा सीखने का  ये चलन काफी बढ़ रहा है। जिस तरह भारतीय हिंदी के साथ-साथ दूसरी भाषाएं जानते हैं उसी तरह अन्य  देश के लोग भी हिंदी भाषा सीखने का काफी प्रयास कर रहे हैं और सीख भी रहे हैं। अमेरिका में आधी आबादी हिंदी के प्रचार प्रसार में जुटी है तो ऑनलाइन दुनिया में भी हिन्दी के प्रति प्रेम लगातार बढ़ रहा है। 

हिंदी साहित्य सम्मेलन 
 
हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।  14 सितंबर को हिंदी के महान साहित्यकार व्यौहार राजेंद्र सिंह का जन्मदिन होने के कारण भी इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी को विशेष दर्जा दिलवाने में गोविंद दस, हजारीप्रसाद द्विवेदी, काका कालेलकर और मैथिलीशरण गुप्त का अहम योगदान रहा है। साल 1918 में महात्मा गांधी ने एक हिंदी साहित्य सम्मेलन के दौरान हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए कहा था। बता दें, गांधी जी हिंदी को जनमानस की भाषा कहते थे। उनका हिंदी से खास लगाव था।  दुनिया भर में लगभग 120 मिलियन लोग दूसरी भाषा के रूप में हिंदी बोलते हैं, और 420 मिलियन से अधिक लोग इसे अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं।

हिंदी भाषा का इतिहास
 

भारत में संस्कृत 1500 ई. पू, से 1000 ई. पूर्व तक रही, ये भाषा दो भागों में विभाजित हुई- वैदिक और लौकिक। मूल रूप से वेदों की रचना जिस भाषा में हुई उसे वैदिक संस्कृत कहा जाता है, जिसमें वेद और उपनिषद का जिक्र आता है, जबकि लौकिक संस्कृत में दर्शन ग्रंथों का जिक्र आता है। इस भाषा में रामायण, महाभारत, नाटक, व्याकरण आदि ग्रंथ लिखे गए हैं। संस्कृत के बाद जो भाषा आती है वह है पालि। पालि भाषा 500 ई. पू. से पहली शताब्दी तक रही और इस भाषा में बौद्ध ग्रंथों की रचना हुई। बौद्ध ग्रंथों में बोलचाल की भाषा का शिष्ट और मानक रूप प्राप्त होता है। पालि के बाद प्राकृत भाषा का उद्भव हुआ। यह पहली ईस्वी से लेकर 500 ई. तक रही। इस भाषा में जैन साहित्य काफी मात्रा में लिखे गए थे। पहली ई. तक आते-आते यह बोलचाल की भाषा और परिवर्तित हुई तथा इसको प्राकृत भाषा की संज्ञा दी गई। उस दौर में जो बोलचाल की आम भाषा थी वह सहज ही बोली व समझी जाती थी, वह प्राकृत भाषा कहलाई।

दरअसल, उस समय इस भाषा में क्षेत्रीय बोलियों की संख्या बहुत सारी थी, जिनमें शौरसेनी, पैशाची, ब्राचड़, मराठी, मागधी और अर्धमागधी आदि प्रमुख हैं। प्राकृत भाषा के अंतिम चरण से अपभ्रंश का विकास हुआ ऐसा माना जाता है। यह भाषा 500 ई. से 1000 ई. तक रही। अपभ्रंश के ही जो सरल और देशी भाषा शब्द थे उसे अवहट्ट कहा गया और इसी अवहट्ट से ही हिंदी का उद्भव हुआ। हिंदी के कई अधिकांश विद्वान हिन्दी का विकास अपभ्रंश से ही मानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि हिंदी का जो विकास हुआ है वह अपभ्रंश से हुआ है और इस भाषा से कई आधुनिक भारतीय भाषाओं और उपभाषाओं का जन्म हुआ है, जिसमें शौरसेनी (पश्चिमी हिन्दी, राजस्थानी और गुजराती), पैशाची (लंहदा, पंजाबी), ब्राचड़  (सिन्धी), खस (पहाड़ी), महाराष्ट्री (मराठी), मागधी (बिहारी, बांग्ला, उड़िया और असमिया), और अर्ध मागधी (पूर्वी हिन्दी) शामिल है।

 
हिंदी राजकीय भाषा
 

हिंदी राष्ट्रीय नहीं बल्कि राजकीय भाषा है। 14 सितंबर 1949 को देवनागरी लिपि हिंदी को भारत की राजभाषा तौर पर स्वीकार किया गया था। वहीं, 26 जनवरी 1950 को संविधान के अनुच्छेद 343 में हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई थी और घोषित किया गया था। यह भारतीय गणराज्य की 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1949 से शुरू होकर हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने का फैसला किया। और हिंदी साहित्य को मनाने के लिए देश भर में कई अन्य सांस्कृतिक उत्सव मनाए जाते हैं। हिंदी दिवस के अलावा, 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस भी मनाया जाता है, जो 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में आयोजित पहले विश्व हिंदी सम्मेलन की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है, जिसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। यह पहली बार 2006 में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा दुनिया भर में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मनाया गया था।

हिंदी भाषा का महत्व


हिंदी साहित्य का सम्मान करने और हिंदी भाषा के प्रति सम्मान दिखाने के लिए इस दिन देश भर में कई सांस्कृतिक उत्सव आयोजित किए जाते हैं। हिंदी दिवस पर, मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों,राष्ट्रीय बैंकों और नागरिकों को हिंदी भाषा में उनके योगदान के लिए राजभाषा कीर्ति पुरस्कार और राजभाषा गौरव पुरस्कार जैसे पुरस्कार प्राप्त होते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू), विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, राष्ट्रीय बैंकों और व्यक्तियों को हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए राजभाषा कीर्ति पुरस्कार और राजभाषा गौरव पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है।
हिन्दी दिवस कार्यक्रम 

हिन्दी दिवस के दौरान कई कार्यक्रम होते हैं। इस दिन छात्र-छात्राओं को हिन्दी के प्रति सम्मान और दैनिक व्यवहार में हिन्दी के उपयोग करने आदि की शिक्षा दी जाती है। जिसमें हिन्दी निबंध लेखन, वाद-विवाद हिन्दी टंकण प्रतियोगिता आदि होता है। हिन्दी दिवस पर हिन्दी के प्रति लोगों को प्रेरित करने हेतु भाषा सम्मान की शुरुआत की गई है। यह सम्मान प्रतिवर्ष देश के ऐसे व्यक्तित्व को दिया जाएगा जिसने जन-जन में हिन्दी भाषा के प्रयोग एवं उत्थान के लिए विशेष योगदान दिया है। इसके लिए सम्मान स्वरूप एक लाख एक हजार रुपये दिये जाते हैं। हिन्दी में निबंध लेखन प्रतियोगिता के द्वारा कई जगह पर हिन्दी भाषा के विकास और विस्तार हेतु कई सुझाव भी प्राप्त किए जाते हैं। लेकिन अगले दिन सभी हिन्दी भाषा को भूल जाते हैं। हिन्दी भाषा को कुछ और दिन याद रखें इस कारण राष्ट्रभाषा सप्ताह का भी आयोजन होता है। जिससे यह कम से कम वर्ष में एक सप्ताह के लिए तो रहती ही है।

 
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का हिंदी में योगदान
 
वर्ष 1915 में सबसे पहले मंडी बास के जी लाल मोहल्ला निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मास्टर रामकुमार ने किया था। यह अमरोहा गेट पर अपनी दस फीट चौड़ी और 20 फीट लंबी दुकान खोली थी। उन्होंने लेटर प्रेस पर 24 पृष्ठों की काले पन्नों वाली इस किताब का प्रकाशन एक पैसे की कीमत में शुरू किया था। वर्ष 1997 में इस पुस्तक को ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस रामकुमार प्रेस एंड एलाइड इंडस्ट्रीज पर प्रकाशित किया जाने लगा जिसकी कीमत डेढ़ गुना  हो गई थी। बेहद सरल ढंग से हिंदी के अक्षरों, मात्राओं का ज्ञान कराने और सबसे ज्यादा सस्ती होने के कारण देशभर से इसकी मांग बड़ी तादाद में आती थी। इस किताब की लोकप्रियता का आलम यह था कि देशभर में करीब 18 करोड़ प्रतियां बेची गई। उस समय हिंदी भाषा में प्रकाशित इस किताब को पढ़ने के लिए लोगों ने हिंदी भाषा को सीखना शुरू कर दिया था। इसकी शुरआत  मुरादाबाद  के ककहरे गांव से हुई थी। जैसे-जैसे वक़्त गुज़रता रहा देश में और भी हिंदी की पुस्तकों का चलन होने लगा और लोगों का रुझान घटने लगा जिसकी वजह से पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 1997 में बंद हो गया।
 
संयुक्त राष्ट्र में पहली बार जब हिन्दी बोली गई
 
संयुक्त राष्ट्र में कई बार हिन्दी की गूंज सुनाई दी है।लेकिन पहली बार 1977 में इसकी सुनाई दी  थी । तब विदेश मंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिन्दी में संबोधित किया था। वाजपेयी ने दुनिया को जय जगत का नारा दिया था। यह पहला ऐसा मौका था, जब भारत के किसी नेता ने वैश्विक मंच पर हिंदी  बोली थी। अपने इस चर्चित भाषण में अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनिया को वसुधैव कुटुम्बकम का नारा दिया और पूरे संसार को एक परिवार बताया था। 
 

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