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हिजाब-ए-इख़्तियारी यानी एक महिला का हिजाब को लेकर स्वयं चयन का फैसला। हिजाब को लेकर बढ़ रहे विवाद की गूंज कर्नाटक से लेकर ईरान तक सुनाई दे रही है। एक तरफ जहाँ ईरान में हज़ारों महिलाएं हिजाब क़ानून के ख़िलाफ़ सड़कों पर हैं जो उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनना अनिवार्य करता है। तो दूसरी तरफ कर्नाटक में हिजाब को शिक्षा संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों पर लागू किये जाने की मांग की जा रही है। काफी समय से भारत में चल रहे इस विवाद को लेकर, कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है। 

 

दरअसल, शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज (13 अक्टूबर 2022) को फैसला सुनाया है। जहां जस्टिस हेमंत गुप्ता ने इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को सही मानते हुए बैन के खिलाफ अपील को खारिज कर दिया, वहीं दूसरे जज सुधांशु धूलिया की पीठ ने उनसे उलट राय जाहिर की है। चूंकि इस मामले में जजों की एक राय नहीं बन पाई है, इसलिए यह फैसला बड़ी बेंच को सौंप दिया गया है। 
 
क्यों लड़ रही हैं महिलाएं 
 

इन दोनों देशों में चल रहे विवादों के विचार एक दूसरे के विरोधी प्रतीत हो सकते हैं लेकिन इनका तर्क एक ही है। प्रदर्शनकारी महिलाएं कहती है कि ‘एक महिला के पास ये अधिकार होना चाहिए कि वह स्वयं तय कर सके कि उसे क्या पहनना है और क्या नहीं पहनना है। उसे अपने जिस्म के साथ क्या करना है ये अधिकार केवल उसके पास होना चाहिए।’

01 जुलाई 2021,  कोरोना काल के बाद जब शिक्षा संस्थान दोबारा खोले गए तो कर्नाटक के गवर्नमेंट पीयू कॉलेज फॉर गर्ल्स ने कॉलेज यूनिफॉर्म कोड बनाया और उसे लागू कर दिया। जब दोबारा कोविड लॉकडाउन के बाद स्कूल फिर से  खुला तो कुछ छात्राओं को पता चला कि उनकी सीनियर छात्राएं हिजाब पहनकर आया करती थीं। जिसके आधार पर कॉलेज प्रशासन से हिजाब पहनने की अनुमति मांगी। क्योंकि उडुपी जिले में सरकारी जूनियर कॉलेजों की पोशाक को कॉलेज डेवलपमेंट समिति तय करती है और स्थानीय विधायक इसके प्रमुख होते हैं, इसलिए कर्नाटक के बीजेपी विधायक रघुवीर भट्ट ने मुसलमान छात्राओं की यह मांग नहीं मानी और उन्हें क्लास के भीतर हिजाब पहनने की अनुमति नहीं दी गई। 30 दिसंबर 2021, में छात्राओं ने हिजाब पहनकर कैंपस में घुसने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें बाहर ही रोक दिया गया जिसके बाद मुस्लिम लड़कियां प्रदर्शन पर उतर आईं और यहीं से इस मामले ने तूल पकड़ा।

 

जनवरी 2022 में उन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब पर प्रतिबंध के खिलाफ याचिका दायर कर दी थी। ये मामला शुरू तो उडुपी जिले से हुआ था लेकिन जल्द ही यह कर्नाटक के दूसरे जिले शिवमोगा और बेलगावी के साथ-साथ जंगल की आग की तरह बाकी जिलों में भी फैल गया। यह विवाद तेजी से एक कॉलेज से जिलों, शहरों और पूरे भारत में फैलने लगा। कुछ कॉलिजों में हिजाब पहनकर कॉलेज आने वाली मुसलमान छात्राओं को शिक्षा संस्थानों में प्रवेश पर रोक लगा दी गई, और जो कॉलिज रह गए उनमे हिजाब पहनकर आने वाली लड़कियों के विरोध में दूसरे धर्म के विद्यार्थी भगवा गमछा पहनकर छात्राओं के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी होने लगी।


कर्नाटक हाई कोर्ट

हालांकि कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब मामले पर सुनवाई शुरू होने के तीन दिन पहले मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की सरकार ने एक आदेश जारी करके सभी छात्रों के लिए कॉलेज प्रशासन की तरफ से तय यूनिफॉर्म को पहनना अनिवार्य कर दिया गया। निजी और सरकारी कॉलेजों में कॉलेज की विकास समिति के पास यूनिफॉर्म तय करने को लेकर पूर्ण अधिकार दे दिया गया। इस आदेश के दो दिनों के भीतर ही प्रदर्शन राज्य भर में फैल गए और कई जगह हिंसक घटनाएं भी हुईं। यह झड़प इतनी बढ़ गई कि प्रदर्शनकारियों को काबू में करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस छोड़नी पड़ी। यहाँ तक कि मुख्यमंत्री को एहतियात के तौर पर कई दिनों तक सभी स्कूलों को बंद रखने का आदेश देना पड़ा। इसके बाद मामला कर्नाटक हाई कोर्ट की तीन जजों की बैंच में पहुंचा।
कर्नाटक हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक 


कर्नाटक के हाई कोर्ट के जजों मुख्य न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण दीक्षित, जस्टिस जेएस काज़ी की पीठ ने हिजाब प्रतिबंध के खिलाफ याचिका को खारिज को कर तर्क दिया गया कि हिजाब पोशाक का हिस्सा होने की वजह से इस्लाम की आस्था के मूल में है। ऐसा नहीं है कि हिजाब पहनने की कथित प्रथा का अगर पालन न किया जाए तो, जो लोग हिजाब नहीं पहन रहे हैं वो गुनहगार हो जाएंगे, या इस्लाम अपनी चमक खो देगा और धर्म नहीं रहेगा।” हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और तुरंत अपील दायर कर दी गई थी। जिसके बाद यह फैसला अब सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की आपसी सहमति न होने के कारण बड़ी बेंच को सौंप दिया गया है। 

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