एक चैनल पर पत्रकार उत्तराखंड सरकार के कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक से सवाल करते हैं कि प्रदेश में कोविड डेडिकेटिड हॉस्पिटल की क्या स्थिति है। इस सवाल के जवाब में कैबिनेट मंत्री जवाब तो देते हैं लेकिन उन अस्पतालों के बारे में बताने लगते हैं जिनमें कोरोना के सदिग्धों का इलाज चल रहा है।
इसके बाद पत्रकार मंत्री को बीच में टोकते हुए कहते हैं कि वह कोविड डेडिकेटिड हॉस्पिटल की बात कर रहा है। जहा पूरे प्रदेश में 15 कोविड डेडिकेटिड हॉस्पिटल में से 11 ऐसे हॉस्पिटल है जिनमें वेंटिलेटर नहीं है। जबकि 6 हॉस्पिटल में आईसीयू नही है। इस पर मंत्री जी का जवाब बहुत चौंकाने वाला आता है। जिसमें वह कहते हैं कि हम भविष्य की तैयारी कर रहे हैं। मतलब यह हुआ कि आग लगी है अब उस आग को बुझाने को अभी पानी की व्यवस्था नहीं है । जबकि भविष्य में आग बुझाने को कुएं खोदने की बात कही जा रही है।
आप पत्रकार और कैबिनेट मंत्री के सवाल-जवाब से अंदाजा लगा सकते हैं कि ऐसे में जब देश में केरोना जैसी महामारी के चलते लोगों की जिंदगी खतरे में है तो देवभूमि उत्तराखंड में बने अस्पतालों में ना आईसीयू है और ना ही वेंटिलेटर है। तो ऐसे में आप समझ सकते हैं कि उत्तराखंड के लोगों की जिंदगी राम भरोसे है।
हालांकि, इस प्रदेश में दुष्यंत मैनाली जैसे अधिवक्ता भी है। जो देवभूमि के लोगों को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने के लिए हर संभव प्रयासों में जुटे हैं। अपनी लोक कल्याणकारी जनहित याचिकाओं के जरिए पहचाने जाने वाले मैनाली ऐसे कानूनविद है जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान भी अपना फर्ज निभाते हुए सरकार को उनकी नैतिक जिम्मेदारी याद दिलाई है।
इसके लिए एडवोकेट दुष्यंत मैनाली ने बकायदा हाई कोर्ट नैनीताल में एक जनहित याचिका दायर की थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि कोरोना महामारी के इलाज में उत्तराखंड सरकार ने केंद्र सरकार और डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन तक का पालन नहीं किया है।
केन्द्र सरकार और डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन के अनुसार कोरोना महामारी का इलाज करने के लिए हर प्रदेश में तीन तरह की श्रेणी के हॉस्पिटल होने चाहिए। जिनमें पहली श्रेणी में वह हॉस्पिटल होगे जिनमें क्वारेन्टाइन सेन्टर स्थापित किए जायेंगे। इन कोरेन्टाइन सेन्टरों में कोरोना संदिग्ध मरीजों का इलाज किया जाएगा। जबकि दूसरी श्रेणी में ऐसे हॉस्पिटल होगे जहा आइसोलेशन सेन्टर स्थापित किए जाएंगे।
इस सेन्टर में ऐसे मरीजों को भर्ती कराया जाएगा जिनकी कोरोना वायरस से संक्रमित होने की आशंका होती है। इनमें ज्यादातर बाहर से आए लोगों को एडमिट किया जाता है। इसके अलावा एक तीसरी श्रेणी भी होंगी। जो दोनों से महत्वपूर्ण होगी। इसमें हॉस्पिटल को कोविड डेडिकेटिड हॉस्पिटल कहा जाएगा। इन अस्पतालों में ऐसे मरीजों को भर्ती कराया जाएगा जो कोरोना पाजिटिव पाए गए हो। ऐसे हॉस्पिटल में आईसीयू और वेंटिलेटर जरूरी होगा।
इस बाबत 31 मार्च को बकायदा केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने गाइडलाइन भी जारी की थी। इसके तहत गत 31 मार्च को प्रदेश के 15 अस्पतालों को कोविड डेडिकेटिड यानि कोरोना समर्पित घोषित कर दिया गया। जिनमें बेस अस्पताल अल्मोड़ा, जिला अस्पताल बागेश्वर , जिला अस्पताल चमोली, जिला अस्पताल चंपावत, दून मेडिकल कॉलेज देहरादून , मेला हॉस्पिटल हरिद्वार, एसटीएम मेडिकल कॉलेज नैनीताल, बीडी पांडे हॉस्पिटल नैनीताल, बेस अस्पताल कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज पौड़ी गढ़वाल, जिला अस्पताल पिथौरागढ़, जिला अस्पताल रुद्रप्रयाग, जिला अस्पताल टिहरी गढ़वाल, जिला अस्पताल उधम सिंह नगर, और जिला अस्पताल उत्तरकाशी आदि।
आनन-फानन में ही सरकार ने उक्त सभी 15 अस्पतालों को कोविड डेडिकेटिड हॉस्पिटल घोषित तो कर दिया, लेकिन इनमें सुविधाओं पर ध्यान देना भूल गई। हल्द्वानी (नैनीताल) के एसपीएस यानी सुशीला तिवारी अस्पताल और देहरादून स्थित दून अस्पताल को छोडकर कही भी वेंटिलेटर नहीं है। जबकि पिथौरागढ़ और रुद्रप्रयाग में सामाजिक संस्थाओं ने लगवाए है। इसके अलावा किसी भी अस्पताल में वैन्टीलेटर नहीं है। यही नहीं बल्कि बेस हॉस्पिटल अल्मोड़ा, जिला अस्पताल बागेश्वर, जिला अस्पताल चमोली, जिला अस्पताल रुद्रप्रयाग, मेला हॉस्पिटल हरिद्वार और बीड़ी पांडे हॉस्पिटल नैनीताल में तो आइसीयू तक भी नहीं है।
इसके बावजूद भी राज्य सरकार ने इन अस्पतालों में केन्द्र सरकार और डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन के अनुसार मानक पूरे नहीं किए। तब हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने सरकार को जगाने के लिए न्यायालय का सहारा लिया। मैनाली ने इस मामले में जनहित याचिका दायर की। जिसे कोर्ट ने तुरंत सुनवाई की। हाई कोर्ट ने विडियो कांफ्रेस के जरिए पूरे मामले की सुनवाई की। जिसमें मैनाली ने अपने तथ्यों के साथ जनता की पैरवी करने का काम किया।
फलस्वरूप हाई कोर्ट ने सरकार को इस मामले में जमकर लताड़ लगाई। यही नहीं बल्कि हाई कोर्ट ने हैरानी भी जताई कि कैसे जनता की जिंदगी के साथ सरकार खिलवाड़ कर रही है। सुनवाई के दौरान प्रदेश के स्वास्थ्य निदेशक ने माना कि उनके कई अस्पतालों में वेंटिलेटर नहीं है। साथ ही आईसीयू ना होने की बात भी स्वीकारी। इसपर गत 21 अप्रैल को हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को कहा है कि वह सात दिनों के अंदर सभी कोविड डेडिकेटिड हॉस्पिटल को सभी सुविधाओं से परिपूर्ण करने के आदेश दिए हैं।
अब 28 अप्रैल को हाई कोर्ट नैनीताल की सरकार को दी गई समय सीमा 28 अप्रैल को पूरी हो जाएगी। जबकि दूसरी तरफ प्रदेश के कैबिनेट मंत्री और सरकार के सलाहकार मदन कौशिक ने दावा किया है कि वह हाई कोर्ट नैनीताल की बताई गई समय सीमा के अंदर सभी 11 अस्पतालों में वेंटिलेटर लगवा देंगे। इसके साथ ही कौशिक ने यह भी कहा कि जिन छह अस्पतालों में आईसीयू नही है वहा भी हम आईसीयू सेन्टर बना देंगे।
अब देखना यह है कि सरकार हाई कोर्ट द्वारा निर्धारित की गई समय सीमा के अंदर अस्पतालों की दशा में कितना परिवर्तन कर पाती है। यहा यह भी उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट नैनीताल ने इस मामले में अगली सुनवाई 29 अप्रैल निर्धारित की हुई है। अगर किसी वजह से सरकार 28 अप्रैल तक अस्पतालों में वैन्टीलेटर और आईसीयू नही लगवा पाती है तो उस पर हाई कोर्ट का डंडा चलना तय है।