मध्यप्रदेश विधानसभा सोमवार को 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया गया। इसके बाद भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली है जिस पर आज फैसला आना था पर कल तक के लिए सुनवाई टल गया। सुप्रीम कोर्ट याचिका पर सुनवाई करते हुए विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति को नोटिस जारी कर तलब किया है। सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है और 18 मार्च, 2020 को सुबह 10:30 बजे कोर्ट में हाजिर होने को कहा है। एनपी प्रजापति पर आरोप है कि उन्होंने राज्यपाल महोदय के निर्देश के बावजूद फ्लोर टेस्ट नहीं कराया और विधायकों के इस्तीफे स्वीकार ने पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाया।
सोमवार को ही राज्यपाल लालजी टंडन ने प्रजापति को फ्लोर टेस्ट कराने का कहा था। इसके बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ उनसे जाकर राजभवन में मिले। कमलनाथ ने राज्यपाल से मुलाकात के बाद मीडियाकर्मियों से बात की। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, “मैं फ्लोर टेस्ट क्यों दूं। यदि किसी को लगता है कि सरकार अल्पमत में है तो वह अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है।” उन्होंने आगे कहा कि हम संविधान के भीतर किसी भी चीज के लिए तैयार हैं। लेकिन संविधान के दायरे से बाहर नहीं जा सकते। आज की तारीख में उपस्थिति के अनुसार हमारे पास संख्या है।
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने विपक्षी पार्टी भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि यदि कोई कहता है कि हमारे पास बहुमत नहीं है तो वह अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है। कल जो भी घटना क्रम सामने आए और उसके बाद कमलनाथ का ये बयान जिस तरह से आया है उससे साफ लगता है कि कांग्रेस फ्लोर टेस्ट की स्थिति में नहीं है। सिंधिया का भाजपा में जाने के बाद पार्टी में जिस करह से उफथल-पुथल मची है इससे साफ है कि प्रदेश की राजनीति में आगे अभी बहुत कुछ देखने को मिलेगा। कमलनाथ ने ये खुद कहा भी है कि कांग्रेस के 16 विधायकों को क्या समस्या है। उन्हें सामने आना चाहिए और अपनी बात रखना चाहिए। इससे ये तो साफ जाहिर है कि कांग्रेस में बगावत हो चुकी है। अगर मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सत्ता जाती है तो कांग्रेस में छटनी होना तय है।
राष्ट्रपति शासन के आसार
इन सभी तनाव या राजनीति दाव-पेचों के बीच मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति शासन की संभावनाएं बढ़ती हुई रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक, राज्यपाल राष्ट्रपति शासन के लिए सिफारिश कर सकते हैं। यह उनके अधिकार क्षेत्र में आता है। इसकी कुछ वजहें भी हैं। बीते साल अक्टूबर-नवंबर में महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। वो भी चुनाव नतीजों के 19 दिन के बाद। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राज्य के तीन प्रमुख दलों शिवसेना, भाजपा और राकांपा को सरकार बनाने का न्योता दिया था पर कोई भी पार्टी सरकार बनाने के लिए संख्या बल जुटा नहीं पाई थी जिसके कारण राज्यपाल को राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश करनी पड़ी थी। हालांकि, 12 दिन बाद रातों-रात राष्ट्रपति शासन हटाया गया था और देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई थी। इसके बाद भाजपा की काफी किरकिरी हुई थी।
उससे पहले जून 2018 में भी ऐसा ही हुआ था जब जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की सरकार थी। भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया था। ऐसे में पीडीपी-नेशनल कॉन्फ्रेंस ने मिलकर सरकार बनाने की कोशिश की थी जिसके बाद राज्यपाल शासन लगा दिया गया। कुल मिलाकर ये पूरा मामला राज्यपाल के हाथ में है। अगर उन्हें लगेगा कि प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता है और किसी भी दल के पास संख्या बल नहीं है तो ऐसे में राज्यपाल राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकते हैं।
गौर करने वाली बात ये भी है कि मध्यप्रदेश में अगर राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो फिर से चुनाव नहीं होगा। राज्यपाल एक बार फिर सभी दलों को सरकार बनाने का मौका देंगे। जिस भी पार्टी के पास 50% से अधिक विधायक होंगे, उसी पार्टी की सरकार बनेगी।
वर्तमान में मध्यप्रदेश विधानसभा की स्थिति
मध्यप्रदेश में अभी विधानसभा की कुल सीटों की संख्या 230 हैं। फिलहाल विधायकों की संख्या 228 है जिसमें से दो विधायकों की मृत्यु हो चुकी है। जिन विधायकों ने इस्तीफा दिया है उनमें 6 विधायकों का इस्तीफा मंजूर मंजूर कर लिया गया है। इस तरह अब सदन में सीटों की संख्या 222 रह गई है। अगर बाकी 16 विधायकों के भी इस्तीफे मंजूर हो गए या फिर वे अनुपस्थित रहे तो संख्या 206 हो जाएगी। जब सरकार बनाने के लिए 104 विधायकों की जरूरत होगी। भाजपा कल अपने 106 विधायकों का लिस्ट राज्यपाल को सौंप चुकी है। अब यहां स्थिति ये बनती है कि या यो भाजपा की सरकार बने या फिर राष्ट्रपति शासन लग जाए।