बिहार के मुजफ्फरपुर बालिका आश्रय गृहकांड में मुख्य आरोपी बृजेश ठाकुर और अन्य दोषियों की अपील पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने 4 दिसम्बर को सुनवाई 6 दिसम्बर तक के लिए स्थगित कर दिया है।
ठाकुर को तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर सजा सुनाई गई
दोषी ठाकुर ने अपील में कहा था कि निचली अदालत ने उसका पक्ष सुने बिना ही जल्दबाजी में फैसला सुनाया है। जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रजनीश भटनागर के समक्ष ठाकुर ने यह दलील देते हुए निचली अदालत द्वारा 20 जनवरी, 2020 को दोषी ठहराने और 11 फरवरी को सजा सुनाने के फैसले को रद्द करने की मांग की थी। पिछली सुनवाई पर सीबीआई ने पीठ को बताया था कि ठाकुर को तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर सजा सुनाई गई है।
मुजफ्फरपुर बालिका गृह में रहने वाली बच्चियों से यौन शोषण करने के जुर्म में बृजेश ठाकुर व अन्य दोषी उम्रकैद की सजा काट रहे है।
इससे पहले, सीबीआई ने मामले की स्थिति को लेकर संक्षिप्त विवरण पेश किया था।
दोषी बृजेश ठाकुर ने अपील में निचली अदालत द्वारा मामले में उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है।
निचली अदालत ने ठाकुर पर 32.20 लाख रुपये के जुर्माना भी किया है। ठाकुर ने अपील में जुर्माने की सजा पर भी रोक लगाने की मांग की है। इसके अलावा दोषी कुमार ने भी निचली अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने को चुनौती दी है।
क्या है पूरा मामला
मुजफ्फरपुर में मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस) ने पूरे बिहार में स्थित आश्रयगृहों का सोशल ऑडिट किया था। इसमें कहा गया था कि बृजेश ठाकुर द्वारा संचालित आश्रयगृह में नाबालिग लड़कियों के साथ लगातार यौन शोषण किया जाता है।
ऑडिट के बाद टीआईएसएस ने अप्रैल 2018 में अपनी रिपोर्ट जमा की थी। इसकी समीक्षा के बाद सरकार ने 31 मई, 2018 को प्राथमिकी दर्ज कराई थी।