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कोख के लिए अभिशाप बनता स्वास्थ्य बीमा!

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे से चौंकाने वाली बात सामने आई है। इस रिपोर्ट के अनुसार देश में महिलाओं के गर्भाशय निकालने के आंकड़ों में भारी बढ़ोतरी दर्ज हुई है। कुछ निजी मेडिकल संस्थानों द्वारा हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी की जा रही है। सर्जरी किसी नेक मकसद से नहीं, बल्कि ‘स्वास्थ्य बीमा’ योजना के तहत लाभ उठाने के लिए की जा रही है। मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे अनावश्यक रूप से गर्भाशय निकालने के मामलों पर रोक लगाने के लिए केंद्र द्वारा तैयार किए गए दिशा-निर्देशों को तीन महीनों के अंदर लागू करें

महाराष्ट्र का ‘बीड’ जिला पिछले कुछ समय से चर्चा का विषय बना हुआ है। इसका कारण कोई उपलब्धि नहीं बल्कि इस जिले में एक गांव का कोखविहीन में तब्दील होना है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस जिले की लगभग 4 हजार 605 महिलाओं ने कोख ही निकलवा ली है। यही हाल आस-पास के गांवों का भी है। दशकों से चली आ रही इस सर्जरी की चपेट में धीरे-धीरे अन्य राज्य भी शामिल होते जा रहे हैं। इस सर्जरी के जरिए अधिकतर महिलाओं में मौजूदा संतान उत्पत्ति की क्षमता को कुछ निजी मेडिकल संस्थानों ने चंद मुनाफे के लिए गैरजरूरी हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी कर रहे हैं। अब यह समस्या अकेले बीड जिले में नहीं कई राज्यों के सामने मुंह बाए खड़ी है।

बीते कुछ अर्से से ऐसी आशंका जताई जा रही है कि भारत में लगभग सभी गैर कानूनी तरीकों को अपनाकर डॉक्टरों द्वारा हिस्टोरेक्टॉमी की जा रही है। सर्जरी किसी नेक मकसद के लिए नहीं, बल्कि ‘स्वास्थ्य बीमा’ योजना के चलते लाभ उठाने के लिए की जा रही है। मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे अनावश्यक रूप से गर्भाशय निकालने के मामलों पर रोक लगाने के लिए केंद्र द्वारा तैयार किए गए दिशा-निर्देशों को तीन महीने के अंदर लागू करें। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने सभी राज्यों के निजी व सरकारी अस्पतालों को हिस्टेरेक्टॉमी के आंकड़ों को पेश करने का आदेश दिया है ताकि इस बढ़ती समस्या को वक्त रहते रोका जा सके और अस्पतालों में हो रहे इस तरह के कालेबाजार को बंद किया जा सके।

क्या है हिस्टेरेक्टॉमी
हिस्टेरेक्टॉमी को यूट्रस रिमूवल भी कहते हैं। यह मेजर सर्जरी के तहत आने वाली सर्जरी है। यह सर्जरी महिलाओं के गंभीर बीमारी के इलाज करने के लिए आखिरी उपचार के रूप में इस्तेमाल की जाती है। गर्भाशय में कई बार गांठें तेजी से फैलती हैं और कैंसर की वजह भी बन जाती हैं, ऐसे में यूट्रस निकालना एकमात्र विकल्प होता है। यूट्रस वह संरचना है, जिसमें प्रेग्नेंसी के दौरान बच्चा पलता-बढ़ता है। यह ब्लैडर और पेल्विक एरिया की हड्डियों को भी सपोर्ट करता है। हालांकि कुछ वजहों से इसे हटाना यानी वेजाइनल हिस्टेरेक्टॉमी जरूरी हो जाती है। लेकिन यह प्रक्रिया डॉक्टर्स के द्वारा तब की जाती है जब किसी भी महिला के गर्भाशय में कैंसर हो जाता है। जिसके बाद कैंसर शरीर के अन्य भागों में न फैले और उसका इलाज होना संभव न हो तो उसे निकाल दिया जाता है या किसी महिला के गर्भाशय से अत्यधिक खून का निकलना जिसे रोक पाना नामुमकिन हो उस समय महिलाओं के गर्भाशय को उनके शरीर से निकाल दिया जाता था।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (2015-2016) के आंकड़ों के मुताबिक देश में बड़ी तादात में 30 से 39 साल की महिलाओं की हिस्टेरेक्टॉमी की गई है। यह सर्जरी सामान्य रूप से होने वाली डिलीवरी की परेशानियों में होने वाले पीठ दर्द, सफेद पानी या ऐसी किसी समस्या के चलते की जाती है। लेकिन अब गांव की अल्प/अशिक्षित गरीब परिवारों की महिलाएं जब किसी निजी डॉक्टर के पास जाती हैं तो उन्हें गर्भाशय निकाल देने की सलाह दी जाती है। हालांकि महिलाओं की इस समस्या का गर्भाशय से कोई संबंध नहीं है। फिर भी डॉक्टरों की पहली सलाह यही होती है। मजदूरी करने वाली महिलाओं को अमूमन पीठ दर्द और संक्रमण की शिकायत होती है, क्योंकि वे अपनी क्षमता से अधिक श्रम करती हैं। उन्हें पीने को साफ पानी नहीं मिलता और कार्यस्थल पर शौचालय की सुविधा न होने से वे पानी भी कम पीती हैं। डॉक्टर उन्हें अंडाशय का कैंसर होने का डर दिखाकर गर्भाशय के साथ अंडाशय भी निकलवाने की सलाह देते हैं। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति 1000 में से 17 महिलाएं गलतफहमी में हिस्टेरेक्टॉमी का ऑपरेशन करवा लेती हैं। यह संख्या अमेरिका में सालाना होने वाले ऐसे ऑपरेशनों के मुकाबले दोगुनी है। एक और समस्या, जिससे डरकर महिलाएं कम उम्र में ही हिस्टेरेक्टॉमी का ऑपरेशन करवा लेती हैं, वह माहवारी के दिनों में अत्यधिक रक्तस्राव, दर्द जैसी समस्याएं है।

हिस्टेरेक्टॉमी के घातक परिणाम
डॉक्टर की गलत सलाह पर हिस्टेरेक्टॉमी करवाने वाली महिलाओं को गंभीर नतीजे भुगतने पड़ते हैं। पेशाब में जलन, त्वचा का सूखना, पीठ और मांसपेशियों का दर्द, थकान और काम करने की ताकत का घट जाना ही नहीं, उम्रदराज महिलाओं में दिल की बीमारियों का कारण भी अक्सर यह ऑपरेशन रहा है। भारत के उत्तर पूर्व के राज्यों में हिस्टेरेक्टॉमी के बेजा ऑपरेशन के मामले कम देखने को मिले हैं, क्योंकि वहां की महिलाएं न केवल अपेक्षाकृत ज्यादा शिक्षित हैं, बल्कि वे निजी के बजाय सरकारी अस्पतालों पर ज्यादा आश्रित भी हैं। कर्नाटक में हुए एक शोध में पाया गया है कि कई बार हिस्टेरेक्टॉमी के ऑपरेशन में महिलाओं की मौत भी हो जाती है।

क्यों डॉक्टर्स दे रहे हैं हिस्टेरेक्टॉमी ऑपरेशन की सलाह
सरकार की कई स्वास्थ्य योजनाओं में डॉक्टरों को हिस्टेरेक्टॉमी का ऑपरेशन करवाने पर कुछ प्रतिशत राशि देने का प्रावधान है। 2012-13 के दौरान राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में हिस्टेरेक्टॉमी के ऑपरेशन पर राशि 37-50 प्रतिशत तक पाई गई है। यह डॉक्टरों का मुनाफा है, जिसे वे मामूली परेशानियों के लिए हिस्टेरेक्टॉमी का ऑपरेशन करवाने की सलाह देकर भुना रहे हैं। महाराष्ट्र के बीड में गन्ने के खेतों में काम करने वाली प्रवासी मजदूर महिलाओं का गर्भाशय केवल इसलिए निकलवा दिया गया था, ताकि उन्हें प्रसूति अवकाश न दिया जा सके। भारत में हिस्टेरेक्टॉमी करवाने वाली महिलाओं की औसत आयु 35 से 40 है। यह वह उम्र है, जब महिलाओं की शादी के बाद एक-दो बच्चे हो जाते हैं। इसके बाद परिवार उनकी हिस्टेरेक्टॉमी करवाने की मंजूरी यह सोचकर दे देता है कि अब आगे महिला को प्रजनन की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन इस मानसिकता का खामियाजा महिलाओं को ताउम्र भुगतना पड़ता है।

क्या है राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना?
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना केंद्र सरकार द्वारा संचालित किया गया एक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम है। इस योजना का उद्देश्य बीपीएल श्रेणी के नीचे आने वाले श्रमिकों को स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना है। इस योजना के अंतर्गत असंगठित क्षेत्र के कामगार और उनके परिवार (पांच की इकाई वाले परिवार) शामिल किया गया है। यह योजना असंगठित क्षेत्रों में कामगारों के लिए एक बड़ी असुरक्षा उनका बार-बार बीमार पड़ना है, इन कामगारों एवं उनके परिवार के सदस्यों की चिकित्सा देखभाल तथा उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ने और उनका आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण सरकार ने इस योजना को इन क्षेत्रों में लागू किया है। यह योजना साल 2011 में केंद्र सरकार के द्वारा लागू की गई थी। इस योजना के तहत हर परिवार 30 हजार रुपये का इलाज मुफ्त करवा सकते हैं बीमा के द्वारा मिलने वाले पैसों के चलते इन्हीं अस्पतालों ने बीमा कंपनी के साथ मिलकर गरीब महिलाओं की कोख उजाड़ दी है। बीपीएल परिवारों की हजारों महिलाएं इस लूटपाट और घोटाले की शिकार हो चुकी हैं।

स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ स्वाति के अनुसार ‘पीरियड्स शुरू होते ही महिलाओं की लाइफ में कई बदलाव होते हैं। कई बदलाव ऐसे होते हैं कि वे परेशान कर देते हैं। कई महिलाएं ऐसी भी होती हैं जो बच्चेदानी को अपने पीरियड्स और प्रेग्नेंसी में होने वाली समस्याओं का कारण मानती हैं। जिसके चलते उसे निकलवाना सही समझती हैं लेकिन यह भूल जाती हैं कि निकलवाने के बाद में कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। गर्भाशय को निकलवाना किसी भी महिला के लिए सुरक्षित नहीं माना जाता है। अगर कोई विकल्प न हो जैसे कि कैंसर या कोई अन्य जानलेवा बीमारी हो तो निकलवा दें, अगर बिना किसी बड़े कारण के आपने बच्चेदानी निकलवा दी तो महिलाओं में इसके कई साइड इफेक्ट्स देखे जा सकते हैं।’

डॉ प्रतिभा कपूर बताती हैं कि महिलाओं को लगता है कि बच्चेदानी निकलवाने के बाद उन्हें पीरियड्स के समय होने वाली दिक्कतें नहीं होंगी, लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि इसके बाद भी महिलाओं को कई बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई बार सर्जरी से रिकवरी करने में काफी समस्या होती है। दरअसल यूट्रस निकलवाने के लिए शरीर में लंबा कट लगाया जाता है। कई मामले ऐसे होते हैं। जिनमें क्षैतिज आकार का भी होता है। जिसके बाद उस कट से गर्भाशय को बाहर निकाला जाता है। ऐसे में घाव और दाग भरने में महीनों या फिर साल लग जाते हैं और इसी के साथ कई तरह की परेशानियां होती हैं। इतना ही नहीं बच्चेदानी को वजाइना के द्वारा निकाला जाता है तो कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वजाइना एक बहुत ही संवेदनशील अंग माना जाता है। इसकी मांसपेशियां और टिशूज बहुत ही नाजुक होते हैं। अगर सर्जन ने थोड़ा-सा भी ध्यान न दिया तो आपकी वजाइना को गंभीर नुकसान हो सकता है।’

 

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