हरियाणा की राजनीति में कभी तीन लाल का कमाल दिखता था। देवीलाल , बंसीलाल और भजनलाल। इन तीन लालो के इर्द गिर्द ही हरियाणा की राजनीति सिमटी हुई होती थी। अभी भी ज्यादातर नेता हरियाणा में इन्ही लालो के है। हालांकि इन सबसे अलग हटके कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा है। जो हरियाणा के दस साल तक मुख्यमंत्री रहे है। पिछले कई सालों से हुड्डा हरियाणा की सत्ता पर कब्ज़ा जमाने के लिए जोर आजमाइस कर रहे है। इस बार उनके प्रयासों को कांग्रेस ने मजबूती दे दी है।
कांग्रेस ने उनके एक खास उदय भान को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। उदय भान हुड्डा के खास माने जाते है। हरियाणा के नेता प्रतिपक्ष के पद पर खुद हुड्डा विराजमान है। इस तरह प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष पर कब्ज़ा होने के चलते कहा जा रहा है कि हरियणा कांग्रेस हुड्डा के हाथ में है। ऐसे में अब हुड्डा के लिए तीन तीन चुनाव जीतने की चुनौती है। कुछ दिनों बाद ही निकाय चुनाव होने है उसके बाद 2024 में लोकसभा चुनाव तो 5 माह बाद विधानसभा चुनाव होंगे। यहां यह बताना भी जरुरी है कि कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती आम आदमी पार्टी भी हो सकती है क्योंकि हरियाणा से लगते दोनों प्रदेश यानी पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है।आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल मूल रूप से हरियाणा के ही हैं।
देखा जाए तो फिलहाल हरियाणा कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का एकछत्र राज है। इसके चलते ही कई नेता कांग्रेस छोड़कर चले गए थे। इन नेताओं में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर , राव इंद्रजीत सिंह, चौधरी बिरेंद्र सिंह, अवतार सिंह भड़ाना और जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं। यह भी यद् रखना जरुरी है कि पिछले कुछ साल सालों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सियासी ताकत पहले के मुकाबले घटी है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए थे। दोनों ही जाट बाहुल्य सीटों सोनीपत और रोहतक से हारे थे।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हरियाणा की कांग्रेस राजनीती का दिग्गज माना जाता है। कहा जाता है कि भाजपा में भी उनके कद का नेता नहीं है। हुड्डा लगातार दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन के पीछे उनका ही हाथ माना गया था। 2019 में कांग्रेस को हरियाणा में 30 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। जबकि इससे पहले 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हरियाणा में 15 सीटें मिली थी।
कांग्रेस हाईकमान ने हरियाणा में मुख्य दल भाजपा को सिख्स्त देने के लिए फिलहाल भूपेंद्र सिंह हुड्डा को फ्री हैंड दे दिया है। लेकिन अभी भी पार्टी में एक ऐसा वर्ग है जो उनपर भरी पड़ सकता है। प्रदेश कांग्रेस में कुमारी सैलजा, किरण चौधरी, रणदीप सिंह सुरजेवाला और कुलदीप बिश्नोई के गुट उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। हुड्डा के नेतृत्व में हरियाणा में कांग्रेस को अगर आगे बढ़ना है तो इन सभी गुटों पर लगाम लगनी जरुरी है। अन्यथा हरियाणा कांग्रेस का हाल भी उत्तराखंड की तरह ही होगा।
फिलहाल की राजनीतिक परिस्थितियों को देखे तो हरियाणा में माहौल कांग्रेस के अनुकूल है। वहा भाजपा सत्ता में है। सत्ता की कमान गैर जाट नेता मनोहर लाल खट्टर के हाथों में है। खट्टर के बारे में कहा जाता है कि हरियाणा की जाट बिरादरी इसे लेकर नाराज दिखती है। कारण यह है कि इस प्रदेश में भाजपा ने जाट जाति के नेता को मुख्यमंत्री नहीं बनाया। हालांकि हरियाणा में भाजपा ने ऐसा करके गैर जाट 73 प्रतिशत आबादी और विशेष रूप से पंजाबी सिख मतदाताओं के वोट हासिल करने की कोशिश की है। जिसमे उसे कामयाबी भी मिली है। 2009 के विधानसभा चुनाव में 4 सीटें जीतने वाली भाजपा का हरियाणा की राजनीति में इतना आगे आ पाना मुश्किल था। उसने गैर जाट का कार्ड खेलकर बड़ा दांव खेला था। लेकिन इस बार कहा जा रहा है कि एक तो एंटी इंकम्बेंसी और दूसरे जाटों की नाराजगी भाजपा को महंगी पद सकती है। हरियाणा में जाट मतदाता 20 फीसदी है।