एक तरफ जब लोग गर्मी की भारी तपिश से अपने आप को लू से बचाने के लिए वातानुकूलित कमरों में बैठे थे तो वहीं दूसरी तरफ देहरादून के गरम तापमान की परवाह किए बिना 72 साल का एक नौजवान बुजुर्ग सड़कों पर उतर जाता है। अपनी सक्रियता से नौजवानों को भी मात देता वह सख्श धरना प्रदर्शन कर रहा है, तो कहीं बैलगाड़ी चलाकर केन्द्र सरकार की जन विरोधी नीतियों का पुरजोर विरोध करता हुआ दिखता है।
आज मैंने, उत्तराखंड की रायपुर विधानसभा क्षेत्र, देहरादून में केन्द्र सरकार द्वारा लगातार डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ाने एवं महंगाई के खिलाफ कांग्रेसजनों के साथ बैलगाड़ी में सवार होकर "विरोध प्रदर्शन" किया।@INCIndia @RahulGandhi @INCAssam@INCUttarakhand #SpeakUpAgainstFuelHike pic.twitter.com/5FDzDPdxlv
— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) June 29, 2020
पुलिस जब उन्हें सड़क पर धरना देने से मना करती है तो बांस की बनी छोटी सी कुर्सी को हाथ में लिए चल पड़ता है और 50 मीटर दूर जाकर फिर राज भवन पर धरना दे देता है । जब वह चलता है तो अकेला, लेकिन थोड़ी देर बाद उनके पीछे जनता का हुजूम होता है। क्योंकि जनता जनार्दन है और वह जानती है कि यह एक खाटी और जमीनी नेता है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की। जिन्होंने कल और आज धरना-प्रदर्शन करके न केवल सत्तासीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार को भरी दोपहरी में कंपकपी छुटा दी बल्कि अपनी ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की धडकनें बढा दी। बहरहाल, उत्तराखंड में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की निष्क्रियता और 72 वर्ष के हरीश रावत की कोरोना काल में सक्रियता के चर्चे आम है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जहां अपने क्वार्टर में किसी से मिलने तक से कतराते हैं, वहीं दूसरी तरफ हरीश रावत लोगों से मिलने को इतना आतुर हो जाते हैं कि दिल्ली से आकर देहरादून में क्वॉरेंटाइन हो जाते हैं। नियम -कानून के पक्के हरीश रावत एकांतवास का समय पूरा करने के बाद जब उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून में बैलगाड़ी पर सवार होकर निकलते हैं तो जनता खुद ब खुद उनके साथ हो लेती है । यही नहीं बल्कि वह अकेले ही धरना प्रदर्शन करने को 40 के टेंपरेचर में देहरादून की तपती सड़कों पर राज भवन के सामने बैठ जाते हैं।
दोस्तों, विपक्ष की आवाज को कुचलने के कुप्रयास के खिलाफ, #देहरादून_राजभवन के निकट हाथीबड़कला पुल, विरोध स्वरूप "#सांकेतिक_धरना" देते हुये। #लोकतंत्र बचाओ-भाजपा होश में आओ। आप सबका………https://t.co/eMvRYO78wO@INCIndia @RahulGandhi @INCAssam @INCUttarakhand @ripunbora pic.twitter.com/KCHOVlQM02
— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) June 30, 2020
देश में पेट्रोल-डीजल की मूल्य वृद्धि को लेकर यूं तो हर शहर, हर कस्बे में विपक्ष धरना प्रदर्शन कर रहा है और भाजपा सरकार की घेराबंदी कर रहा है। लेकिन कुछ जगह ऐसी है जहां पर विपक्ष से भाजपा सरकार घबरा गई है। ऐसा ही प्रदेश है उत्तराखंड प्रदेश। जहां मुख्य विपक्षी पार्टी कॉन्ग्रेस ने इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष की घेराबंदी की। धरना-प्रदर्शन के दौरान जनता विपक्ष के साथ दिखाई दी।
उत्तराखंड में कांग्रेस ने संयुक्त रुप से बृहस्पतिवार को धरना प्रदर्शन किया। जिसकी अगुवाई प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने की थी। तब भाजपा सरकार ने पीसीसी प्रेसिडेंट प्रीतम सिंह सहित 50 कांग्रेसियों पर लॉक डाउन कानूनों का पालन न करने के चलते मुकदमे दर्ज किए।
उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष प्रीतम सिंह, उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना और लगभग 50 अन्य कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ गुरुवार को देहरादून पुलिस ने ईंधन की कीमतों में वृद्धि के विरोध में धरना देने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करने के लिए मामला दर्ज किया है। यह केस देहरादून नगर कोतवाली में कांग्रेस नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
"#सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है, जोर कितना बाजुए कातिल में है"।https://t.co/bumZitcSI8@INCIndia @RahulGandhi @INCUttarakhand pic.twitter.com/faIUUz1g9b— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) June 29, 2020
इसके बाद उत्तराखंड कांग्रेस शांत बैठ गई। लेकिन पेट्रोल डीजल मूल्य वृद्धि पर कल एक बार फिर त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार उस समय घबरा गई जब कल पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बैलगाड़ी पर चढ़कर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। हरीश रावत की बैलगाड़ी ने खूब सुर्खियां बटोरी। फलस्वरूप प्रदेश सरकार ने अपनी किरकिरी होते देख हरीश रावत और उनके करीब 39 समर्थकों पर एफआईआर दर्ज करा दी।
जिस तरह प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और उनके समर्थक अपने ऊपर सरकार द्वारा केस दर्ज होने के बाद घरों में चुप बैठ गए, उस तरह हरीश रावत ने चुप बैठना स्वीकार नहीं किया। बल्कि वह आज दुगने उत्साह के साथ एक बार फिर त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के खिलाफ खम ठोंकते नजर आए। हरीश रावत ने राज भवन पर 1 घंटे का धरना दिया और इस दौरान त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार भी जमकर घेराबंदी की।
हरीश रावत की मेहनत और लगन का ही परिणाम है कि सदा ही कांग्रेस आलाकमान के प्रिय रहे हैं। कांग्रेस आलाकमान पर रावत की पकड़ को इसी बात से समझा जा सकता है कि 23 सदस्यीय कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) में भी उन्हें शामिल किया गया है। बावजूद इसके कि कांग्रेस के नेता राज्य में विधानसभा चुनाव की हार के लिए हरीश रावत को जिम्मेदार मानते हैं। इसके बाद भी उन्हें महासचिव के साथ ही असम राज्य का भी प्रभार दिया गया। जहां पर पार्टी विपक्ष में है। अगर देखा जाए तो राज्य बनने के 20 साल के दौरान रावत राज्य की राजनीति से दूर नहीं गए।
आज मैंने, #उत्तराखंड की रायपुर विधानसभा क्षेत्र, देहरादून में #केन्द्र_सरकार द्वारा लगातार #डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ाने एवं महंगाई के खिलाफ कांग्रेसजनों के साथ "विरोध प्रदर्शन" किया।@INCIndia @RahulGandhi@INCAssam @INCUttarakhand #SpeakUpAgainstFuelHike pic.twitter.com/C9iMzVeUdg
— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) June 29, 2020
कांग्रेस ने 2002 में कांग्रेस ने चुनाव हरीश रावत के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए लड़ा और जीता भी। लेकिन आलाकमान की कृपा से रावत की दावेदारी को किनारे करते हुए नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया गया। उस दौरान भी रावत ने राज्य को नहीं छोड़ा और उसके बाद 2012 में जब कांग्रेस फिर से सत्ता में आई तब विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया।
दोस्तों, विपक्ष की आवाज को कुचलने के कुप्रयास के खिलाफ आज मैं, #देहरादून_राजभवन के निकट 1 घंटे विरोध स्वरूप "सांकेतिक धरने" पर बैठा। #लोकतंत्र_बचाओ–#भाजपा होश में आओ। आप सबका स्नेह चाहिये। यहां लड़ाई निरंतर आगे जारी रहेगी। pic.twitter.com/vuqU0hkI5e
— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) June 30, 2020
हालांकि, उस दौरान रावत केंद्र में मंत्री थे। लेकिन उन्होंने राज्य में अपने राजनैतिक वजूद को बनाए रखा। कुछ ऐसे ही हालत मौजूदा समय में भी है। पद के हिसाब से देखे तो हरीश रावत राज्य की राजनीति से बाहर हैं और फिर से राज्य में सक्रिय हो रहे हैं। जो उनके विरोधी गुट के लिए उनकी नींद उड़ाने वाला साबित हो रहा है।
तीन दशकों से ज्यादा के अपने राजनीतिक करियर में हरीश रावत के नाम पर ढेरों कामयाबियां हैं तो आरोपों की भी कमी नहीं है। इस सबके बावजूद रावत ने मुश्किलों से पार पाने वाले नेता की छवि बनाई है। आज उनके दम पर ही कांग्रेस उत्तराखंड में 2022 में वापसी की राह तलाश रही है।