साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य की सत्ताधारी पार्टी भाजपा जहां हर कीमत पर सत्ता में बने रहने के लिए रात – दिन चुनावी तैयारियों में जुटी है वहीं विपक्षी पार्टी कांग्रेस भीतर कलह के चलते एक के बाद एक बड़े नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। राज्य में कांग्रेस की हालत यह है कि वर्ष 2015 में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के चेहरा रहे हार्दिक पटेल ने कांग्रेस का हाथ छोड़ नया सियासी दांव चल दिया है जिससे प्रदेश कांग्रेस में हड़कम मचा हुआ है। कहा जा रहा है कि हार्दिक पटेल का पार्टी छोड़ना भाजपा के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है।
दरअसल गुजरात में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हार्दिक का कांग्रेस छोड़ना और भाजपा के मुद्दों के समर्थन में दिखना, राज्य की राजनीति में एक बड़ा बदलाव का संकेत है। कहा तो यहां तक जाने लगा है कि वह देर-सबेर भाजपा में भी शामिल हो सकते हैं, क्योंकि उनकी भाजपा नेताओं से पर्दे के पीछे मुलाकातें होती रही हैं। जिस तरह उन्होंने बिना नाम लिए राहुल गांधी पर भी निशाना साधा। हार्दिक ने अपने त्यागपत्र में इस बात का उल्लेख किया है कि जब भी देश में संकट और कांग्रेस को नेतृत्व की आवश्यकता थी तो पार्टी के नेता विदेश में थे।
युवा नेता ने यह बात लिखी कि शीर्ष नेतृत्व का कांग्रेस के प्रति बर्ताव ऐसा रहा जैसे उन्हें गुजरात और गुजरातियों से नफरत हो। गुजरात के नेता सिर्फ इस बात पर ध्यान देते हैं कि दिल्ली से आए नेता को चिकन सैंडविच मिला या नहीं। कांग्रेस ने युवाओं का भरोसा तोड़ा है। पत्र में हार्दिक ने प्रदेश कांग्रेस के नेताओं पर निशाना साधते हुए लिखा कि आज गुजरात में हर कोई जानता है कि किस प्रकार कांग्रेस के बड़े नेताओं ने जानबूझकर गुजरात की जनता के मुद्दों को कमजोर किया।
बीएल संतोष से मुलाकात
हार्दिक पटेल ने पिछले पिछले दिनों भाजपा के महामंत्री संगठन बीएल संतोष के साथ मुलाकात की थी। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की भी सहमति इस रणनीति में शामिल है। भाजपा ने अभी इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है। लेकिन गुजरात की चुनावी रणनीति देखते हुए भाजपा इस बार पूरी तैयारी से चुनाव मैदान में दिखेगी। इसकी शुरुआत उसने साल भर पहले ही कर दी थी जब राज्य में मुख्यमंत्री समेत पूरे मंत्रिमंडल को ही बदल दिया गया था।
पीएम मोदी ने किया था रोड शो
इस साल भी जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे थे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में जाकर रोड शो कर रहे थे। इसके बाद से गृहमंत्री अमित शाह लगातार गुजरात में सक्रिय हैं। पार्टी एक भी बूथ छोड़ने को तैयार नहीं है। उसकी कोशिश है कि 2022 की जीत इतनी बड़ी हो कि पिछले सारे रिकॉर्ड टूट जाएं।
2017 में मिली थी टक्कर
गुजरात की राजनीति में पिछला 2017 का विधानसभा चुनाव भाजपा ने जीत भले ही लिया था, लेकिन जो टक्कर उसे मिली उससे पार्टी का शीर्ष नेतृत्व चिंतित रहा। यही वजह है कि गुजरात में पार्टी ने कई बड़े बदलाव किए और विपक्ष की धार को लगातार कुंद करने की कोशिश होती रही। कांग्रेस के कई विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए और अब उसके सामाजिक समीकरणों को नुकसान पहुंचाने वाले हार्दिक पटेल का इस्तीफा इसी का एक बड़ा हिस्सा है।पार्टी सूत्रों की मानें तो हार्दिक पटेल जल्द ही भाजपा का दामन थाम सकते हैं, इसके संकेत उन्होंने अपने इस्तीफे में ही दिए हैं। इसमें वह उन मुद्दों पर कांग्रेस को घेरते दिखे जो भाजपा के मुद्दे रहे हैं।
गौरतलब है कि पीएम मोदी और शाह का जलवा गुजरात से ही जाना जाता है। इस राज्य में जितनी बड़ी जीत होगी राजनीतिक स्थिति संदेश उतना ज्यादा बड़ा जाएगा। गुजरात में आम आदमी पार्टी की दस्तक को देखते हुए भाजपा सतर्क है। आम आदमी पार्टी भी राज्य के पाटीदार समुदाय को लुभाने की कोशिश में जुटी हुई है। पिछली बार भाजपा ने सूरत को साध कर अपनी सरकार बरकरार रखी थी। लेकिन इस बार वह सौराष्ट्र और खासकर राजकोट के पाटीदार समाज को पूरी तरह अपने साथ लाना चाहती है।
इससे पहले वर्ष 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर देते हुए 77 सीटें हासिल की थी, जबकि भाजपा लंबे समय बाद 100 सीटों से कम पर ही ठहर गई थी। भले ही कांग्रेस सत्ता तक नहीं पहुंच पाई थी, लेकिन राहुल गांधी की लीडरशिप में उसने एक छाप जरूर छोड़ी थी। ऐसे में माना जा रहा था कि 2022 में वह कड़ी टक्कर दे सकती है, लेकिन चुनाव के नजदीक आते 2017 से अब तक दर्जनों पूर्व और मौजूदा विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं। इन हालातों ने एक बार फिर से कांग्रेस को 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले की स्थिति में ला दिया है, जब भाजपा को घेरने के बाद भी वह फिसल गई थी।
पाटीदार आंदोलन का चेहरा रहे
28 वर्षीय हार्दिक पटेल तब चर्चा में आए जब वे वर्ष 2015 में गुजरात में पाटीदार आरक्षण आंदोलन का चेहरा बने। राज्य के मजबूत पाटीदार समुदाय को ओबीसी में शामिल किए जाने को लेकर उनके नेतृत्व में राज्य में आंदोलन चला। चार वर्ष बाद वे वर्ष 2019 में कांग्रेस में शामिल हुए। उन्हें गुजरात कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था ।
पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान क्या हुआ था?
25 अगस्त 2015 को पाटीदारों ने रैली निकाली थी। इसके बाद कई हिंसक हमले हुए थे और पाटीदारों पर केस दर्ज होने लगे थे। पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान बापूनगर पुलिस कस्टडी में श्वेतांग की मौत हो गई थी। प्रवीण पटेल का बेटा निशित महेसाणा पुलिस की गोलीबारी में मारा गया था। बनासकांठा के महेश की थी पुलिस फायरिंग में जान चली गई थी। अन्य 12-13 से लोगों की भी मौत हो गई थी।
पाटीदार आंदोलन के कई युवा चेहरे अब राजनीति में सक्रिय पाटीदार आरक्षण आंदोलन की बात करें तो कई युवा चेहरे आज राजनीति में सक्रिय हैं। अलग-अलग राजनीतिक दलों में महत्वपूर्ण पद पर हैं। हार्दिक पटेल, गोपाल इटालिया, रेशमा पटेल, निखिल सवाणी, अतुल पटेल, दिलीप साबवा, धार्मिक मालविया राजनीतिक दलों से जुड़े हुए हैं।
क्यों जरूरी हैं पाटीदार?
गुजरात की राजनीति में पाटीदार हमेशा से निर्णायक भूमिका में रहे हैं। लेउवा पटेल, सौराष्ट्र और कच्छ के इलाके में ज्यादा, राजकोट, जामनगर, अमरेली, भावनगर, जूनागढ़, पोरबंदर, सुरेंद्रनगर जिलों में बहुतायत, पाटीदार की एक उपजाति है। सौराष्ट्र के 11 जिलों के अलावा सूरत में भी ज्यादा प्रभाव है। ये समुदाय खुद को भगवान राम का वंशज बताता है। अलग-अलग रिपोर्ट के अनुसार गुजरात में पाटीदारों की संख्या लगभग 15 फीसदी है। वैसे तो इनकी संख्या लगभग हर जिलों में है। लेकिन उत्तर गुजरात के सौराष्ट्र में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है।
कहा जाता है कि सूबे की कुल 182 सीटों में से लगभग 70 सीटों पर इनका प्रभाव है। या कहा जाए कि इतनी सीटों पर इनके वोट जीत और हार तय कर सकते हैं। 2012 में विधानसभा चुनाव में भाजपा को 48 फीसदी वोट मिला था, उसमें पाटीदारों की हिस्सेदारी 11 फीसदी थी। लेकिल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में गिरावट देखी गई। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में पाटीदारों के 60 फीसदी वोट बीजेपी को मिले जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में मात्र 49.1 फीसदी मिला।
वर्ष 2017 के गुजरात चुनाव में बीजेपी को सिर्फ 99 और कांग्रेस को 82 सीटें मिली थीं। बीजेपी 2012 में गुजरात में 50 पाटीदारों को टिकट दिया गया था, जिनमें से 36 ने जीत दर्ज की थी। वहीं, 2017 के चुनाव में बीजेपी के 28 और कांग्रेस के 20 पाटीदार विधायक जीते थे। गुजरात में फिलहाल बीजेपी के 44 विधायक, 6 सांसद और राज्यसभा में तीन सांसद पाटीदार समुदाय से हैं।
बीजेपी के लिए खतरे की घंटी?
एक समय था जब कहा जाता था कि पाटीदार वोट बैंक कभी कांग्रेस के साथ हुआ करता था। लेकिन 1980 के बाद जब कांग्रेस ने दूसरे समुदायों पर ज्यादा ध्यान शुरू किया तो पाटीदार समुदाय छिटकने लगा। यहां से उन्होंने बीजेपी की ओर रुख किया। इसी को देखते हुए भाजपा ने पाटीदार नेता केशुभाई पटेल को दो बार राज्य का सीएम बनाया। गुजरात भूकंप के बाद पार्टी में हुए विवाद के बाद ये कुर्सी नरेंद्र मोदी को दी गई। बाद में केशुभाई पटेल से भाजपा से अलग हो गए।
2014 में बीजेपी ने पाटीदार समुदाय की आनंदी बेन पटेल को ही सीएम बनाया। उन्हीं के कार्यकाल में पटेल आरक्षण आंदोलन हुआ था और जिसकी वजह से उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। इसके बाद जब विजय रुपाणी को सीएम बनाया गया तो पटेल वोटों को ध्यान में रखकर नितिन पटेल को उप मुख्यमंत्री की कुर्सी दी गई। इन सबके बावजूद 2017 के चुनाव में बीजेपी को नुकसान हुआ। 2022 के चुनाव में बीजेपी रिस्क नहीं लेना चाहती। ऐसे में भूपेंद्र पटेल पार्टी को लीड कर रहे हैं।