टीवी और एफएम पर अक्सर गुजरात टूरिज्म का एक ऐड आता है जिसमें अमिताभ बच्चन कहते हैं ‘कुछ दिन तो गुजारिए गुजरात में’। ये स्लोगन उस समय का है जब पीएम मोदी गुजरात के सीएम हुआ करते थे। अब वह देश की कमान संभाले हुए हैं। फ़िलहाल ये जुमला पुराना हो चुका है। लेकिन ऐसा लगता है पर्यटकों से ज्यादा गुजरात राजनीतिक दलों को पसंद आ रहा है।
हाल ही में महाराष्ट्र की उद्धव सरकार को झटका देने वाले सियासत के भूकंप का केंद्र गुजरात में शिफ्ट हो गया है। शिवसेना से बागी हुए एकनाथ शिंदे लगभग 30 विधायकों को लेकर गुजरात के सूरत पहुँच चुके हैं। तो वहीं महाराष्ट्र में सरकार बनाने का सपना देख रही बीजेपी अपने विधायकों को भी गुजरात लाने की योजना तैयार कर रही है। इस समय शिंदे के साथ 40 विधायक असम के गुवाहाटी में मौजूद हैं।
गौरतलब है कि देश में सियासी उठापठक जब-जब हुई गुजरात को पनाहगाह के तौर पर इस्तेमाल किया गया। अब सवाल ये है कि गुजरात ही सियासी उठापठक का शेल्टर होम क्यों बना गया है? इसकी क्या वजह हो सकती हैं। हाल फ़िलहाल में महाराष्ट्र की राजनीति में आए सियासी बवंडर के तार भी गुजरात से जुड़ते हैं।
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गुजरात भाजपा के अध्यक्ष सीआर पाटिल मराठी का मराठा कनेक्शन
21 जून को होने वाले विश्व योग दिवस से सम्बंधित होने कार्यक्रमों को गुजरात भाजपा के अध्यक्ष सीआर पाटिल ने 20 जून की रात को रद्द कर दिया था। सियासी अटकलें शुरू हो गई थी कि इस दौरान वे शिवसेना के असंतुष्ट विधायकों के साथ बैठक कर सकते हैं। दरअसल, सीआर पाटिल खुद मराठी हैं। उनके शिवसेना विधायकों के साथ बहुत अच्छे संपर्क भी हैं।
भाजपा का मजबूत कैडर
पिछले 24 साल से गुजरात में भाजपा की सरकार है। गुजरात में पार्टी का कैडर बेहद मजबूत स्थिति में है, वहीं देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री भी इसी राज्य से आते हैं। जाहिर तो प्रधानमंत्री और गृहमंत्री भी इसी राज्य से आते हैं। लिहाजा, शिवसेना से नाराज विधायकों को किसी भी दबाव से बचाने के लिए यह सबसे सुरक्षित जगह हो सकती थी। दूसरी बात, महाराष्ट्र और गुजरात के बीच कनेक्टिविटी बेहद अच्छी है, लिहाजा विधायकों को जल्दी से यहां लाया जा सकता था।
अगस्त 2020 में राजस्थान में राजनीतिक उथल-पुथल मच गई थी, उस दौरान भाजपा ने अपने विधायकों को टूटने से बचाने के लिए अपने 18 विधायकों को विशेष विमान से गुजरात शिफ्ट किया था। इन विधायकों को पोरबंदर लाकर सासन के अलग-अलग रिसॉर्ट्स में ले जाया गया था।
इसके अलावा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत करने वाले सचिन पायलट भी यहां पहुंचे थे। उनका समर्थन करने वाले 12 विधायकों को अहमदाबाद के पास बावला के एक रिसॉर्ट में रखा गया था।
महाराष्ट्र में सियासी बवाल
शिवसेना के कद्दावर नेता और एक जमाने में बाला साहेब ठाकरे और उद्धव ठाकरे के करीबी रह चुके एकनाथ शिंदे की बगावत ने महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। लेकिन शिवसेना के नेता इस बगावत के लिए जिस भाजपा को जिम्मेदार बता रही है वह भाजपा अभी तक इस पूरे मामले में वेट एंड वॉच की रणनीति पर काम कर रही है।
भाजपा के नेता महाराष्ट्र के घटनाक्रम पर गहराई से नजर बनाए हुए हैं। एकनाथ शिंदे के साथ विधायकों की संख्या और उनकी भविष्य की रणनीति, उद्धव ठाकरे की रणनीति, कांग्रेस और खासकर शरद पवार की रणनीति के साथ ही भाजपा की नजर राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी के स्टैंड पर भी बनी हुई है, हालांकि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी कोरोना पॉजिटिव होने के कारण अस्पताल में एडमिट हो गए हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अजित पवार प्रकरण में धोखा खा चुकी भाजपा इस बार कोई जल्दबाजी करने के मूड में नहीं है, इसलिए इस पूरे घमासान की कमान अब तक शिवसेना के बागी मंत्री एकनाथ शिंदे के हाथ में ही है।
एकनाथ शिंदे शिवसेना के अन्य बागी विधायकों के साथ गुजरात के सूरत से निकल कर गुवाहाटी पहुंच चुके हैं। शिंदे यह दावा कर रहे हैं कि पार्टी के 55 में से 40 विधायक उनके साथ हैं। वह 7 निर्दलीय विधायकों के भी अपने साथ होने का दावा कर रहे हैं। शिंदे ने उद्धव ठाकरे के साथ फोन पर बातचीत के दौरान वापस आने के लिए अपनी तरफ से कई शर्तें रखी हैं और वो उद्धव ठाकरे के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद ही एकनाथ शिंदे अपने अगले कदम का ऐलान कर सकते हैं ।