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एमपी में गुजरात फॉर्मूला

बीजेपी क्या मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले गुजरात और उत्तराखण्ड का फॉर्मूला दोहरा सकती है? इसकी चर्चाएं तेज हो गई हैं। वैसे तो काफी वक्त से बीच-बीच में यह चर्चा उठती रही है कि बीजेपी मध्य प्रदेश में सीएम बदल सकती है लेकिन त्रिपुरा के नतीजों के बाद यह कयासबाजी और तेज हुई है। मध्य प्रदेश बीजेपी के कई नेताओं से अनौपचारिक बातचीत में इस बात के संकेत मिले कि पार्टी अप्रैल-मई तक बीजेपी मध्य प्रदेश को नया सीएम दे सकती है।

जानकारों की मानें तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की मध्य प्रदेश इकाई ने भी अपना फीडबैक दिया है। मध्य प्रदेश में नवंबर तक नई विधानसभा का गठन होना है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इसकी संभावना ज्यादा लग रही है कि पार्टी अगर बदलाव करेगी तो अप्रैल-मई के महीने में कर सकती है। इससे अगर किसी ऐसे व्यक्ति को सीएम बनाया जाता है जो अभी विधानसभा का सदस्य नहीं है तो चुनाव से पहले किसी सीट पर उपचुनाव की नौबत नहीं आएगी।

नियमों के मुताबिक अगर किसी ऐसे व्यक्ति को सीएम बनाया जाता है जो विधानसभा का सदस्य नहीं है तो उसका छह महीने के भीतर सदस्य बनना जरूरी है। पार्टी के भीतर बदलाव की कयासबाजी के बीच नए सीएम के लिए कई नामों पर कयास लगाए जा रहे हैं। लेकिन ज्यादातर लोग मान रहे हैं कि पार्टी आदिवासी पर दांव लगा सकती है। इसके पीछे उनके तर्क भी हैं। मध्य प्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं इनमें से 80 विधानसभा क्षेत्रों में आदिवासियों का प्रभाव है। आदिवासी वोटर यहां जीत-हार तय करते हैं। वैसे राज्य में एसटी रिजर्व सीट 47 हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को आदिवासियों ने झटका दिया था। तब एसटी रिजर्व सीट में से 30 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। अब बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही पार्टियां आदिवासी वोट बैंक के लिए जुगत लगा रही हैं। बीजेपी जहां आदिवासियों को अपने पाले में वापस लाना चाहती है वहीं कांग्रेस अपना दबदबा बरकरार रखने की कोशिश में है। आदिवासियों के एक बड़े संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) ने 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया है। पिछले चुनाव में ये कांग्रेस के साथ थे। कांग्रेस इन्हें इस बार भी साथ रखने की कोशिश कर रही है। जयस के संरक्षक कांग्रेस के विधायक हैं लेकिन अभी वह बागी रुख अख्तियार किए हुए हैं।

बीजेपी को मध्य प्रदेश में जीत के लिए आदिवासी वोटर्स को साथ लाना जरूरी है। बीजेपी ने राज्य में विकास यात्रा निकाली तो कई जगह यात्रा को आदिवासी संगठनों के विरोध का सामना करना पड़ा। बीजेपी के भीतर इस पर भी मंथन हुआ है। बीजेपी का चुनाव से ठीक पहले सीएम बदलने का फॉर्मूला गुजरात, उत्तराखण्ड और त्रिपुरा में कारगर साबित हुआ है। इन राज्यों में पार्टी ने चुनाव से पहले सीएम बदला और सत्ता में वापसी की। राजनीतिक पंडितों की मानें तो यह फॉर्मूला मध्य प्रदेश में भी लागू करने जा रही है।

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