कांग्रेस सही में बुढ़ा गई है। एक तरफ हो हल्ला है कि पार्टी का नेतृत्व युवा हाथों में होना चाहिए तो दूसरी तरफ पार्टी के सभी महत्वपूर्ण पदों पर साठ पार वालों का कब्जा है। पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी 72 वर्ष की हैं, कोषाध्यक्ष अहमद पटेल 70 बरस के। शीर्ष निर्णायक समिति कांग्रेस वर्मिंग कमेटी के महासचिवों में हरीश रावत, अंबिका सोनी, गुलाम नबी आजाद, मल्लिकार्जुन खड़गे, मोती लाल बोरा, मुकुल वासनिक, ओमन चांडी, लुडिजिनों फलेरियो सत्तर के करीब, यहां तक कुछ अस्सी पार भी हैं।
युवाओं के नाम पर केवल प्रियंका गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अविनाश पाण्डे जैसे कुछ ही नाम है जिन्हें युवा की श्रेणी में रखा जा सकता है। कांग्रेस नेतृत्व के सामने दूसरी बड़ी समस्या इन युवा कहे जाने वाले नेताओं की पुअर परफारमेंस का होना है। जहां कहीं भी युवा को पार्टी आगे बढ़ाया, नतीजे निराशाजनक रहे हैं। आरपीएन सिंह, राजेश सातव, दीपक बाबरिया, गौरव गौगई आदि युवाओं को जिस भी प्रदेश का प्रभारी नियुक्त किया गया, वहां पार्टी का भट्ठा बैठ गया है। स्वयं पार्टी के युवा अध्यक्ष राहुल गांधी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को अपेक्षित सफलता न दिल पाने के चलते पद छोड़ चुके हैं। जाहिर है ऐसे में ऊर्जा से भरपूर भाजपा नेतृत्व के आगे कांग्रेस लगातार पस्त होते रहने का अभिशप्त हो चली है।