[gtranslate]
Country

चुने हुए नुमाइंदे नहीं राज्यपाल : सुप्रीम कोर्ट

राज्यपाल

पिछले कुछ समय से कई राज्यों में राज्यसरकार और राज्यपाल के बीच होने वाले विवाद लगातार बढ़ते जा रहे हैं। जिसपर सुप्रीम कोर्ट आये दिन कोई नयी टिप्पणी कर रहा है। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट पजाब ,तमिलनाडु और केरल की राज्यसरकार द्वारा दायर की गयी याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है। पंजाब सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार यानि 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के विस्तृत फैसले ने पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को बड़ा झटका दिया है।

 

फैसले के तहत कोर्ट ने बनवारीलाल द्वारा असंवैधानिक बताये गए 19-20 जून को हुए विधनसभा सत्र को संवैधानिक घोषित कर दिया है। जिससे इसमें पारित हुए विधेयक भी अपने आप संवैधानिक हो गए हैं। आदेश के अनुसार राज्यपाल चुने हुए नुमाइंदे नहीं हैं। उन्हें अनिर्वाचित प्रमुख के तौर पर संविधान ने राज्य के प्रमुख के तौर पर शक्तियां दी हैं लेकिन इन शक्तियों का उपयोग विधानसभा की ओर से पारित बिलों को विफल बनाने के लिए नहीं किया जा सकता।

अदालत ने कहा कि संविधान की धारा 200 के तहत अगर राज्यपाल विधेयक पर सहमत न हों तो वह उन्हें अपनी दलील देकर फिर से विचार करने के लिए लौटा सकते हैं या फिर राष्ट्रपति के पास भी भेज सकते हैं। पीठ यह बात स्पष्ट कर दी है कि ”सदन के सत्र की वैधता पर संदेह करना राज्यपाल के लिए खुला संवैधानिक विकल्प नहीं है। इसलिए हमारा विचार है कि पंजाब के राज्यपाल को अब उन विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए आगे बढ़ना चाहिए जो इस आधार पर सहमति के लिए प्रस्तुत किए गए हैं कि 19 – 20 जून 2023 और 20 अक्टूबर 2023 को आयोजित सदन की बैठक संवैधानिक रूप से वैध थी।”

 

पंजाब सरकार और राज्यपाल के बीच क्या है विवाद ?

 

पंजाब में साल 2022 के फ़रवरी महीने में हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने 117 में से 92 सीटें जीतकर 79 प्रतिशत का मजबूत बहुमत हासिल कर अपनी सरकार बनाई और भगवंत मान ने पंजाब के मुख्यमंत्री का पद संभाला। लेकिन पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित और राज्य सरकार के बीच शुरुआत से ही मतभेद रहा। भगवंत मान और बनवारी लाल के बीच टकराहट की शुरुआत 21 सितंबर 2022 को हुई , जब सत्तारूढ़ दल द्वारा भाजपा पर राज्य सरकार को गिराने की कोशिश करने का आरोप लगाने के बाद राज्य सरकार ने विश्वास प्रस्ताव लाने के लिए विधान सभा का सत्र बुलाया, जिस पर विपक्ष ने विरोध किया कि सरकार तो विश्वास प्रस्ताव ला ही नहीं सकती। विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है। भाजपा ने पहले ही विधानसभा सत्र का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी थी क्योंकि उसने आप सरकार पर विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव लाकर संविधान का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था।

विपक्ष द्वारा किये गए इन विरोधों के चलते राज्यपाल ने इस विशेष सत्र को मंजूरी देने से इंकार करते हुए कहा की संविधान में ऐसा कहीं उल्लेख नहीं किया गया है कि विश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए विशेष सत्र बुलाया जा सकता है। इसके बाद से ही मान और बनवारी लाल के बीच विवाद शुरू हो गया। राज्यपाल ने पंजाब की सरकार द्वारा की गई कुछ नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए नियुक्ति की पूरी जानकारी मांगी थी। जिसके लिए सरकार ने इंकार दिया। दरअसल बनवारीलाल पुरोहित ने पंजाब के 36 स्कूल प्रिंसिपलों का पहला बैच सिंगापुर में प्रशिक्षण के बाद लौटने के कुछ दिनों बाद, फरवरी, 2023 को मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखकर कहा था कि उन्हें प्रशिक्षण के लिए प्रिंसिपलों के चयन के संबंध में शिकायतें मिली हैं। बनवारीलाल ने कह“शिकायतकर्ता इन प्रिंसिपलों के चयन में कुछ अवैधताओं की ओर इशारा करते हैं।

 

राज्यपाल

 

आरोप यह है कि कोई पारदर्शिता नहीं है,” उन्होंने मुख्यमंत्री से पूरी चयन प्रक्रिया के मानदंड और विवरण भेजने के लिए कहा।उनके अन्य प्रश्नों का उत्तर न देने के बीएल पुरोहित ने मान पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री को यह ध्यान रखना चाहिए कि राज्य के लोगों ने उन्हें “संविधान के अनुसार प्रशासन चलाने के लिए चुना है।” लेकिन सरकार द्वारा इन पत्रों का कोई जवाब नहीं दिया गया । जिस पर नाराजगी जताते हुए राज्यपाल ने कहा था कि “भारत के संविधान के अनुच्छेद 167 के अनुसार आप मुझे मेरे द्वारा मांगी गई पूरी जानकारी और जानकारी देने के लिए बाध्य हैं, लेकिन आपने वह जानकारी नहीं दी और कभी भी जवाब देने की परवाह नहीं की और मेरे सभी प्रश्नों का तिरस्कार किया।” हालांकि इसके बाद भी सरकार के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया बल्कि राज्यपाल के इस पत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान एक पत्र में कहा कि वह केवल राज्य के लोगों के प्रति जवाबदेह हैं, केंद्र द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के प्रति नहीं। उन्होंने कहा कि राज्यपाल द्वारा उठाए गए सभी मुद्दे राज्य के अधिकार क्षेत्र से संबंधित मुद्दे हैं और इन मुद्दों के लिए वह तीन करोड़ पंजाबियों के प्रति जवाबदेह हैं।

अपने पत्रों के प्रति सरकार की उदासीनता और नियुक्तियों का विवरण न दिए जाने के कारण राज्यपाल ने बजट सत्र में विस्तार देने की मंजूरी देने से इंकार कर दिया। हालांकि राज्यपाल ने 28 फरवरी को बजट सत्र बुलाने को मंजूरी दी थी। जिसके बाद राज्य सरकार ने 3 से 24 मार्च तक विधानसभा का बजट सत्र बुलाया था, जिसे 24 मार्च को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किए जाने के बाद विस्तारित सत्र के रूप में 19 व 20 जून को बुलाया गया, जिसका विवरण न देने पर राज्यपाल ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया।

इसके कारण सरकार और राज्यपाल के बीच विवाद बढ़ गया। इस फैसले पर नाराजगी जाहिर करते हुए सरकार ने इस बजट सत्र का सत्रावसान नहीं किया। काफी लंबे समय तक चले विवाद के बाद सरकार ने 20 और 21 अक्टूबर को बजट सत्र को विस्तार देने के लिए एक बार फिर बैठक बुलाई गई। जिस पर राज्यपाल ने अपना एतराज जताते हुए कहा कि पंजाब सरकार को भेजे गए पत्र में वह पहले ही कह चुके हैं, कि इस प्रकार का बुलाया गया कोई भी सत्र गैरकानूनी होगा ऐसे सूत्रों के दौरान किया गया कोई भी कार्य अवैध होगा।

 

उनका कहना था कि सरकार की ओर से स्पष्ट रूप से अवैध सत्र जारी रखने की स्थिति में, मैं उचित कार्रवाई पर विचार करने के लिए मजबूर हो जाऊंगा। इसमें भारत के राष्ट्रपति को मामले की रिपोर्ट करना भी शामिल है।” लेकिन सरकार का कहना है की अगर सत्र का सत्रावसान नहीं किया गया है तो इसमें अब राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं है स्पीकर जब चाहे विधानसभा की बैठक बुला सकता है। लेकिन राज्यपाल द्वारा इस दो दिवसीय सत्र और इसमें पेश होने वाले विधेयकों के विरोध करने की वजह से राज्य सरकार ने कहा कि वह राज्यपाल की इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी।

साथ ही मान ने स्पीकर कुलतार सिंह से आग्रह किया कि जब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता तब तक वह सदन में कोई विधेयक पेश नहीं करेगी साथ ही स्पीकर से या अनुरोध भी किया कि विधानसभा को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दें बहुमत के आधार पर स्पीकर ने ऐसा ही किया। मुख्यमंत्री ने कहा है कि “मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि जब तक हम पंजाबियों को यह सुनिश्चित नहीं कर देते कि यह सत्र वैध है, तब तक हम कोई भी विधेयक पेश नहीं करेंगे और राज्यपाल को (विधेयकों को) सभी मंजूरी देनी होगी और उन पर हस्ताक्षर भी करने होंगे।” सरकार और राज्यपाल के बीच इन विवादों को देखते हुए 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार राज्यपाल व राज्य सरकार को आपस में मिलकर इन मुद्दों को सुलझाना चाहिए।

 

यह भी पढ़ें : राज्यपाल 3 साल तक क्या कर रहे थे? ; तमिलनाडु विधेयक पर SC की नाराजगी

 

You may also like

MERA DDDD DDD DD