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भारत और इंडिया की बहस से सरकार को बचना चाहिए

        ओंकार नाथ सिंह
पूर्व महासचिव, उत्तर प्रदेश कांग्रेस

सरकार को यदि इंडिया के स्थान पर भारत लिखना अधिक अच्छा लगता है तो सर्व प्रथम इनको संविधान में संशोधन करना चाहिए था और मैं नहीं समझता कि इससे किसी को भी आपत्ति होगी। परंतु संविधान को दरकिनार करके यदि कोई भी सरकार ऐसे फैसले लेगी तो देश का लोकतंत्र सुरक्षित नहीं रह पाएगा। लोकतंत्र में कोई भी सरकार मनमाने ढंग से फैसले नहीं ले सकती है। जो संविधान में लिखा है उसी के अनुसार कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका अपने कार्यों का संपादन करती हैं। संविधान का उलंघन करने वाली सरकार को तानाशाह कहते हैं। जो उस शासक को पसंद हो वह वही करेगा उसे किसी की भी परवाह नहीं होगी। देश में इतना बड़ा कार्यक्रम हो रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष एवं राज्यसभा में नेता विरोधी दल खड़गे जी सहित सभी विपक्षी दल के नेताओं ने जी-20 में आने वाले विदेशी मेहमानों का स्वागत किया है और आशा व्यक्त की कि इस सम्मेलन से भारत की स्थित अच्छी होगी लेकिन हमारी सरकार ने इस सम्मेलन में देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने के बजाय विपक्ष से ही दो-दो हाथ करने का मन बना लिया है। सरकार को इस बहस से बचना चाहिए

जी -20 समारोह का प्रारंभ भी नही हुआ सरकार ने विदेशी मेहमानों के आने के पहले अपनी फजीहत करा ली। 9 सितंबर को राष्ट्रपति भवन में जो रात्रि भोज का निमंत्रण महामहिम राष्ट्रपति की तरफ से दिया गया है वह निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में लिखा है और उस पर प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के स्थान पर प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा है। इस पर काग्रेस सांसद एवं मीडिया चेयरमैन जयराम रमेश, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित अनेक विपक्ष के नेताओं ने सरकार पर हमले शुरू कर दिए। विपक्ष का कहना है कि चूंकि उन्होंने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखा इसलिए सरकार ने भारत शब्द का प्रयोग किया। वह इंडिया से नफरत करने लगी है। भारत शब्द संविधान में लिखा है कोई वर्तमान सरकार ने इसका इजाद नहीं किया है। इसके साथ ही जय राम रमेश ने एक नारा दे दिया ‘जुड़ेगा भारत और जीतेगा इंडिया’। हमारे देश का नाम हिंदी में भारत और इंग्लिश में इंडिया है। और संविधान सभा में इस शब्द पर बाकायदा विचार विमर्श हुआ और फिर इस पर संशोधन का प्रस्ताव एचए कामथ जी ने प्रस्तुत किया उसका पंडित कमला पति त्रिपाठी ने अनुमोदन करते हुए जो भाषण दिया यदि सरकार के लोग उसे पढ़ेंगे तो शायद भारत भी लिखने से परहेज करने लगे। उनके भाषण के कुछ अंश नीचे लिखे हैंः

श्री कमला पति त्रिपाठी (यूपीः जनरल): अध्यक्ष महोदय, मैं आपका कृतज्ञ हूं कि आपने मुझे एक ऐसे संशोधन पर अपने हृदय के उदगारों को प्रकट करने का अवसर दिया जिसको मैं बहुत पवित्र मानता हूं। आज इस देश के नामकरण करने का संशोधन हमारे सामने उपस्थित है। मुझे प्रसन्नता होती यदि ड्राफ्टिंग कमेटी ने जो संशोधन उपस्थित किया है उसका स्वरूप कुछ दूसरा रखा होता। इंडिया दैट इज भारत के स्थान पर यदि दूसरे प्रकार के शब्द का प्रयोग किया गया होता तो मैं समझता हूं कि अध्यक्ष महोदय वह इस देश की परंपरा और गौरव के अनुकूल ही होता और कदाचित इस विधान परिषद के लिए भी सौभाग्य की बात होती। यदि दैट इज लगाना ही था तो भारत दैट इज इंडिया यदि स्वीकार किया गया होता और इस प्रकार का प्रस्ताव हमारे सामने आता तो वह अधिक उपयुक्त हुआ होता। मेरे मित्र कामथ जी ने आपके सामने अपना संशोधन उपस्थित किया है कि भारत ऐज इट इज नोन इन इंग्लिश लैंग्वेज इंडिया को ड्राफ्टिंग कमेटी ने स्वीकार किया होता अथवा इस समय भी स्वीकार कर लेती तो वह भी हमारे हृदय को और हमारे गौरव को अधिक सम्मानित करता। फिर भी सभापति जी जो प्रस्ताव हमारे सामने उपस्थित किया गया है उस पर हम प्रसन्न हैं और ड्राफ्टिंग कमेटी को बधाई देते हैं।’

हिंदी में भारत और इंग्लिश में इंडिया नाम पर केंद्रीय मंत्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी सहमति व्यक्त की थी। कमला पति जी ने इस पर आगे बोलते हुए भारत शब्द की व्याख्या इस प्रकार की कि इसको पढ़ने मात्र से मन पुलकित और रोमांचित हो जाता है। उनके भाषण के कुछ अंशों को नीचे लिख रहा हूंः ‘सभापति जी, मुझे भारत के इस शब्द से बड़ा प्रेम है। यह एक ऐसा शब्द है जिसका उच्चारण करने मात्र से हमंे अपने देश की सहस्त्राब्दियों की संकृति क्षण मात्र में सामने दिखाई पड़ने लगती है। मैं समझता हूं कि इस धरती पर कोई दूसरा ऐसा राष्ट्र नहीं है जिसके जीवन का इतिहास, जिसका सांस्कृतिक प्रवाह और जिसका नाम सहस्त्रों वर्षों से इसी प्रकार अब तक चला आता है। धरती के अंक में कोई ऐसा देश नहीं है जिसने इतने पद्दलन, इतने अपमान और इतनी लंबी पराधीनता के बाद अपने नाम और अपनी आत्मा को किसी प्रकार रखने में सुरक्षित समर्थ हुआ हो।

आज सहस्त्रों वर्षों के बीत जाने पर भी हमारा देश भारत कहा जाता रहा है। अब तक हमारे साहित्य में यह नाम प्रयुक्त होता रहा है। वेदों के युग से लेकर पुराणों में तो इस नाम की कितनी महिमा है। हमारे पुराण भारत के नाम और इस देश की महिमा का गुणगान करते रहे हैं। देवता स्वर्ग में इस देश के नाम का स्मरण करते रहे हैं ‘गायन्ति देवा खिल गीत कानी’। पुराण कहते हैं कि इस देश का गुणगान देवता भी स्वर्ग में बैठे हुए करते हैं। देवताओं में यह कामना होती है कि वह भारत की पवित्र भूमि में उत्पन्न हों और जीवन उपभोग करके अपने परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। आगे पंडित कमला पति जी ने कहा है वह अद्भुत और परम आनंद देने वाला हैः
‘जब हम इस भारत शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें भगवान कृष्ण के वह शब्द याद आ जाते हैं जिसके द्वारा उन्होंने इस देश के जन्म समाज को उस व्यवहारिक दर्शन का उपदेश किया था जिसके द्वारा आज का मानव भी सतगति को प्राप्त कर सकते हैं। इस शब्द का उच्चारण करने से हमंे भगवान तथागत की याद आ जाती है जिन्होंने ललकार कर संसार से कहा था कि ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय लोकानुकम्पाय’ जीवन का
संचालन करो और देवताओं और मनुष्यों के हित के लिए उठो, जागो और संसार को ज्ञान के मार्ग का प्रदर्शन कराओ। जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमे शंकराचार्य का स्मरण हो आता है जिन्होंने संसार को एक नई दृष्टि प्रदान की। जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमे भगवान राम की उन विशाल भुजाओं का स्मरण हो जाता है जिसमें धनुष की प्रत्यंचा की टंकार से इस देश के आसमुद्र हिमाचल अंतरिक्ष को गुंजारित कर दिया था। जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमंे भगवान कृष्ण के उस चक्र का स्मरण हो जाता है, जिसने भारत के भयावने क्षत्र साम्राज्यवाद को नष्ट करके इस धरती का भार हल्का किया था। सदन में माननीय डॉक्टर बीआर अम्बेडकर जी ने कमला पति जी को टोका भी कि श्रीमान क्या यह सब आवश्यक है?

श्री कमलापति त्रिपाठी: मैं केवल संगत बाते सुनाने के लिए कह रहा हूं।
माननीय डॉक्टर बी आर अम्बेडकर: अभी बहुत काम करना है।

श्री कमला पति त्रिपाठी: जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें बापू का स्मरण हो आता है जिन्होंने मानव जाति को एक नया संदेश दिया। हमें प्रसन्नता है कि हम डॉक्टर साहब को इस बात की बधाई देते हैं कि उन्होंने इस शब्द का प्रयोग किया है। यह कितनी अच्छी बात होती अगर वह श्री कामथ के संशोधन को भी स्वीकार कर लेते जिसमें कहा गया हैं ‘भारत ऐज इज नोन इन इंग्लिश लैंग्वेज इससे देश के गौरव की रक्षा होगी।’ इतना ही नहीं इस प्रस्ताव पर संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने अन्य सदस्यों सेठ गोविंद दास, राम सहाय हर गोविंद पंत सहित अनेक नेताओं को बोलने की अनुमति दी। हिंदी पट्टी के सभी सदस्य भारत नाम के पक्ष में बोले। कुल्लर सुब्बा राव चाहते थे हिंदुस्तान नाम रखा जाए। परंतु फैसला भारत नाम के पक्ष में हुआ। इसलिए सरकार को समझना चाहिए कि भारत शब्द से किसी को नाराजगी नहीं है और सब उनसे कम प्रेम भारत से नहीं करते हैं।

सरकार को यदि इंडिया के स्थान पर भारत लिखना अधिक अच्छा लगता है तो सर्व प्रथम इनको संविधान में संशोधन करना चाहिए था और मैं नहीं समझता कि इससे किसी को भी आपत्ति होगी। परंतु संविधान को दरकिनार करके यदि कोई भी सरकार ऐसे फैसले लेगी तो देश का लोकतंत्र सुरक्षित नहीं रह पाएगा। लोकतंत्र में कोई भी सरकार मनमाने ढंग से फैसले नहीं ले सकती है। जो संविधान में लिखा है उसी के अनुसार कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका अपने कार्यों का संपादन करती हैं। संविधान का उलंघन करने वाली सरकार को तानाशाह कहते हैं। जो उस शासक को पसंद हो वह वही करेगा उसे किसी की भी परवाह नहीं होगी। देश में इतना बड़ा कार्यक्रम हो रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष एवं राज्यसभा में नेता विरोधी दल खड़गे जी सहित सभी विपक्षी दल के नेताओं ने जी-20 में आने वाले विदेशी मेहमानों का स्वागत किया है और आशा व्यक्त की कि इस सम्मेलन से भारत की स्थित अच्छी होगी लेकिन हमारी सरकार ने इस सम्मेलन में देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने के बजाय विपक्ष से ही दो-दो हाथ इस फैसले से करने का मन बना लिया है। इस समारोह में इससे बचना चाहिए था।

वह शायद यह जानते ही नहीं कि भारत शब्द तो कांग्रेस चाहती ही थी जिसका विवरण संविधान सभा की कार्यवाही में दिया गया है। यदि इस पर और बहस हो तो भाजपा और सरकार की एक और किरकिरी होगी जिसमें यह लोग कांग्रेस पर आरोप लगाते हैं की कांग्रेस राम और कृष्ण के अस्तित्व को ही नहीं मानती। इस समारोह में आने वाले मेहमान तो हमारे देश का नाम इंडिया और भारत दोनों ही जानते हैं फिर यदि करना ही था तो पूरा हिंदी में ही छपवाते और भारत के महामहिम राष्ट्रपति लिखवाते। यदि विपक्ष इंडिया के स्थान पर हिंदी में भारत का राष्ट्रीय विकास समावेशी गठबंधन लिखना शुरू कर दे तो शायद यह सरकार भारत नाम से भी परहेज करने लगे जैसे इंडिया से परहेज करने लगी है। इसलिए सरकार को इससे बचना चाहिए और ऐसा वातावरण बनाए कि मेहमानों को लगे कि उनका स्वागत पूरा देश कर रहा है और आपसी वाद विवाद से बचना चाहिए।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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