- कृष्ण कुमार
अ गर किसी प्रदेश का समूचा सरकारी सिस्टम हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करवाने में नाकाम हो जाता है, तो उसके बारे में निश्चित ही यह कहा जाएगा कि राज्य की सरकार बेहद लचर और गैर जिम्मेदार है। कुछ इसी तरह के हालात से उत्तराखण्ड भी राज्य गुजरता दिख रहा है। राज्य में तकरीबन दो माह तक सरकार और शासन गहरी नींद में सोया रहा, लेकिन जब अवमानना का मामला हाईकोर्ट के दरवाजे तक जा पहुंचा तब जाकर मुख्यमंत्री को अपने सरकारी सिस्टम को यह आदेश जारी करना पड़ा कि वह हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करवाये।
आयुष छात्रों की फीस में नियम विरुद्ध बेतहाशा बढ़ोतरी कर दी गई। ऊपर से ऐसा दमघोंटू माहौल भी बना दिया गया कि वे आह! तक न निकाल सकें। माननीय हाईकोर्ट ने फीस बढ़ोतरी के शासनादेश को वापस लेने का आदेश दिया, मगर इसका पालन करवाने के लिए कोई हरकत में नहीं आया। राज्य सरकार का समूचा तंत्र आदेश का पालन करवाने के बजाए छात्रों की आवाज दबाने वालों के पक्ष में खड़ा दिखाई दिया। पचास दिनों तक छात्र रसूखदारों द्वारा संचालित निजी आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलेजों की मनमानी और उत्पीड़न का शिकार होते रहे, लेकिन सरकार तो दूर राजभवन ने भी सबकुछ जानते हुए चुप्पी साध ली। विपक्षी कांग्रेस की भूमिका भी बयानबाजी तक सीमित रही। ऐसे में सवाल उठने स्वाभाविक हैं कि क्या छात्रों की जायज मांगों और हाईकोर्ट के आदेश की इसलिए अवेहलना हुई कि निजी आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलेजों का संचालन राज्य के आयुष एवं वन मंत्री हरक सिंह रावत, केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ और योग गुरु बाबा रामदेव जैसी हस्तियों की छात्र छाया में हो रहा है। क्या सरकार इन हस्तियों के हित में अपनी साख पर बट्टा लगाती रहेगी
वर्ष 2015 में राज्य के 13 आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलेजांे ने शासन से अपने काॅलेजों में फीस बढ़ाये जाने की मांग की। इसमें गौरतलब यह है कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा स्पष्ट निर्देश हैं कि प्राइवेट और सरकार द्वारा अनुदानित शिक्षण संस्थानों में फीस निर्धारण के लिए कमेटी गठित करें। कोर्ट ने बाकायदा गाइडलाइन तय की हुई हैं। लेकिन इस मामले मंे ऐसा नहीं किया गया। राज्य के तत्कलीन प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा ओम प्रकाश ने उत्तराखण्ड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय से सम्बद्ध संचालित होने वाले राज्य के निजी आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलेजों में फीस बढ़ाये जाने के लिए शासनादेश संख्या 2287ग्ग्ग्ग्/ 2015-88/2006 दिनंाक 14 अक्टूबर 2015 जारी कर दिया। जिसमें बीएएमएस के लिए 80 हजार रुपए शिक्षण शुल्क और 18 हजार रुपए छात्रावास शुल्क को बढ़ाकर सीधे 2 लाख 15 हजार कर दिया गया।
इस शासनादेश में यह फीस, शुल्क नियामक कमेटी के आदेशों के अधीन होने, नियामक कमेटी के द्वारा तय किये गये शुल्क का निर्धारण करने और अगर शुल्क ज्यादा लिया गया है, तो उस अंतर की धनराशि को छात्रोें को लौटाये जाने का भी उल्लेख किया गया है। साथ ही यह भी उल्लेख किया गया है कि सभी निजी मेडिकल काॅलेज शुल्क नियामक कमेटी के द्वारा तय किये गये शुल्क का शपथ पत्र देने के बाद ही शासनादेश में वर्णित शुल्क प्राप्त करने के अधिकारी होंगे। प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा के द्वारा जारी किये गये इस शासनादेश से यह तो साफ हो गया कि सभी निजी मेडिकल काॅलेज बढ़ी हुई फीस तब तक नहीं ले सकते थे जब तक कि फीस नियामक कमेटी इस बढ़ी हुई फीस को निर्धारित न कर दे। अगर इससे पहले ही बढ़ी हुई फीस ली जाती है, तो वह गैरकानूनी ही मानी जायेगी और शासन इस पर कार्यवाही कर सकता है। इसी शासनादेश के बाद निजी मेडिकल काॅलेजों के संचालकांे का पूरा खेल शुरू हुआ। सभी अपने-अपने काॅलेजांे के छात्रों से बढ़ी हुई फीस लेने का दबाब बनाने लगे। यहां तक कि इस शासनादेश की आड़ में छात्रों से प्रथम ओैर द्वितीय वर्ष कीे भी बढ़ी हुई फीस ली जाने लगी जो ऐतराज करते उनके खिलाफ कार्यवाही की जाने लगी। यहां तक कि साढ़े चार वर्ष का कोर्स होने के बावजूद पूरे पांच वर्ष की फीस इन निजी मेडिकल काॅलेजों के द्वारा ली जाने लगी। इससे प्रदेश के मेडिकल काॅलेजों में विवाद होने लगे और छात्र आंदोलन पर उतर आये। पिछले वर्ष भी मेडिकल काॅलेजों के छात्रों ने बड़ा आंदोलन किया तो सरकार ने फीस निर्धारण करने के लिए कमेटी बनाये जाने का निर्णय लिया, जबकि यह मामला पांच वर्ष से चला आ रहा था। विगत पांच वर्ष से राज्य के मेडिकल काॅलेजों में फीस बढ़ाये जाने के खिलाफ आंदोलनरत छात्रों और कालेज संचालकों में भारी विवाद सामने आ रहा था। छात्रों ने हर उस जगह पर अपनी दस्तक दी जहां से उन्हें उम्मीद लगती कि उनके साथ न्याय होगा, लेकिन प्रदेश का सरकारी सिस्टम, शासन तथा सरकार एक तरह से छात्रों के बारे मंे सोचने से ही गुरेज करने लगे।
इस मामले में एक बात यह भी छनकर आई है कि सरकार पर कई दबाब बन चुके थे। आम लोगों के बीच इस बात को लेकर खासी चर्चा रही है कि राज्य में एक मेडिकल काॅलेज स्वयं आयुष मंत्री हरक सिंह रावत का है, तो एक काॅलेज भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पाखरियाल निश्ंाक के परिवारजनांे का है। योग गुरु के नाम से विख्यात बाबा रामदेव का भी एक महाविद्यालय है। कई ऐसे मेडिकल काॅलेज हैं जिनमें राजनीतिक दखल बना हुआ है। बड़ी हस्तियों के इन्हीं मेडिकल काॅलेजों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने की नीयत से सरकार और शासन-प्रशासन इस कदर सोये रहे कि हाईकोर्ट के आदेशों का पालन तक नहीं करवा रहे थे
जब छात्रांे को कहीं से राहत मिलती नजर नहीं आई तो उन्होंने नैनीताल हाईकोर्ट में फीस वृद्धि के खिलाफ रिट याचिका संख्या 3433/ 2017 दाखिल की। जिस पर हाईकोर्ट की एकल बेंच ने 9 जुलाई 2018 को उक्त शासनादेश को रद्द करते हुये आदेश दिया कि छात्रों से ली गई बढ़ी हुई फीस वापस की जाये। लेकिन इस आदेश पर मेडिकल काॅलेज यूनियन ने डबल बेंच में विशेष अपील संख्या 596 / 2018 दायर की। जिस पर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने 9 अक्टूबर 2018 को एकल बेंच के आदेश को सही मानते हुये विशेष अपील खारिज कर दी।
अब होना तो यह चाहिये था कि राज्य सरकार और सरकारी मशीनरी हाईकोर्ट के आदेशों का सख्ती से पालन करवाती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सरकार से एक तरह से अघोषित छूट निजी आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलेजांे को मिलती दिखाई दे रही थी जिसके चलते छात्रों पर बढ़ी हुई फीस जमा करने का भारी दबाब बनाया जाने लगा। जो छात्र मेडिकल काॅलेजांे की बात नहीं मान रहे थे उनकी दैनिक उपस्थिति दर्ज नहीं करने तथा उनके पुनर्मूल्यांकन फार्म विश्वविद्यालय में न भेजने जैसे दबाब बनाकर उनको परेशान किया जाने लगा। देहरादून के शंकरपुर सहसपुर स्थित दून इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंस मेडिकल काॅलेज जो कि मौजूदा सरकार में वन और आयुष मंत्री हरक सिंह रावत का है, ने तो छात्रों पर कई तरह के दबाब बनाये जिसमें 27 छात्रों को निलंबित तक कर दिया गया। हैरानी की बात यह है कि इस मामले मेें हाईकोर्ट के आदेश आने के बाद विधानसभा में हरक सिंह रावत जो कि आयुष मंत्री हैं, ने सदन में माना था कि हाईकोर्ट के आदेशों का पालन किया जायेगा। लेकिन सदन में दिये गये जबाब के बावजूद हाईकोर्ट के आदेशों का पालन 50 दिनों तक भी नहीं किया जा सका। उल्टे छात्रों के शांतिपूर्वक आंदोलन को कुचलने के कई बार प्रयास किये गये। उन पर बर्बर तरीके से लाठीचार्ज किया गया। लेकिन छात्र टस से मस नहीं हुये। सरकारी मशीनरी का लारपवाहीपूर्ण रवैया यह है कि समूचा सरकारी तंत्र छात्रों के आदोलन को किसी भी सूरत में कुचलने में लगा दिखाई दिया, वहीं दूसरी तरफ निजी मेडिकल काॅलेजों के संचालकों द्वारा छात्रांे पर मुकदमे दर्ज करवाये जा रहे थे। रुड़की में तो एक काॅलेज के प्राचार्य ने छात्रों को बातचीत करने के लिए अपने कक्ष में बुलाया और उनके खिलाफ हमला करने ओैर मारपीट करने का आरोप लगाते हुये मुकदमा दर्ज करवा दिया। जबकि इस पूरे मामले का एक वीडयो तेजी से सोशल मीडिया में सामने आया जिसमें उक्त कालेज के प्राचार्य स्वयं अपने कक्ष में तोड़फोड़ कर रहे थे। वीडियो सामने आने के बावजूद छात्रों पर ही मुकदमे दर्ज किये गये।
इसके अलावा इस मामले में शासन और प्रशासन की ताकत भी लुलपुंज ही दिखाई दी। 2 नवम्बर 2018, 22 मार्च 2018 तथा 23 अप्रैल 2018 को राज्य सरकार की ओर से हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करने के लिए सभी आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलेजों को आदेश जारी किये गये थे, लेकिन एक भी आदेश का पालन नहीं हुआ और न ही बढ़ी हुई फीस छात्रों को वापस करने में संचालकों ने कोई रुचि दिखाई। यही नहीं मडिकल काॅलेजों के संचालकों की यूनियन ने हाईकोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की जिस पर हाईकोर्ट ने 23 सितम्बर 2019 को ही स्पष्ट कर दिया कि इस याचिका होने के बावजूद हाईकोर्ट के पूर्व में दिये गये आदेशों की अवहेलना नहीं की जा सकती। लेकिन हाईकोर्ट के आदेशों का पालन न तो संचालकों ने किया ओैर न ही शासन ने इस संबंध में कड़ी कार्यवाही की, जबकि निजी मेडिकल काॅलेजों के कारनामों से शासन पूरी तरह से वाकिफ था। जानकारी यह भी मिली हेै कि कई वर्षों से इन मेडिकल काॅलेजों ने आयुर्वेद विश्वविद्यालय को सम्बद्धता शुल्क तक जमा नहीं किया है। एक अनुमान के मुताबिक यह शुल्क तकरीबन 2 करोड़ से भी आधिक का है। साथ ही शुल्क नियामक कमेटी के बुलावे पर अधिकांश काॅलेजांे ने वहां पहुंचना तक उचित नहीं समझा। बावजूद इसके सरकार और शासन इन मेडिकल काॅलेजों के हितों के लिए ही काम करता दिखाई देता रहा।
सरकार और शासन के अलावा उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय का भी जरा सा भय इन मेडिकल काॅलेजांे को नहीं रहा। विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुल सचिव रामजी शरण ने हाईकोर्ट के आदेशों का पालन सुनिश्चित करवाने के लिए सभी आयुर्वेदिक मेडिकल कालेजों को 6 जुलाई 2019 को कड़ा पत्र जारी किया। जिसमें स्पष्ट लिखा था कि हाईकोर्ट के आदेशों का पालन सुनिश्चत किया जाए। साथ ही यह भी उल्लेख किया गया था कि हाईकोर्ट में दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका के संबंध में हाईकोर्ट ने पूर्व के आदेशों पर कोई स्थगन आदेश जारी नहीं किया है। इससे यह स्पष्ट हो गया कि सरकार और शासन सभी इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि हईकोर्ट ने निजी आयुर्वेद मेडिकल काॅलेजों की पुनर्विचार याचिका पर कोई स्टे नहीं दिया है। यानी हाईकोर्ट के आदेश पूरी तरह से लागू थे। बावजूद इसके हाईकोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया गया और यह सरासर हाईकोर्ट की अवमानना का मामला बनता है।
छात्र नेता ललित तिवारी ने हाई कोर्ट में अवमानना याचिका भी दाखिल की जिस पर हाईकोर्ट ने गंभीरता से संज्ञान लिया तो तुरंत ही मुख्यमंत्री और आयुष मंत्री ने एक बैठक करके हाइकोर्ट के आदेशों का पालन करवाने के लिए आदेश जारी कर दिया। साथ ही सचिव आयुष ने सभी 13 निजी आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलेजों को इस आशय के आदेश जारी करके छात्रों को कुछ राहत दी। अब इस पूरे प्रकरण में यह बात समझने वाली है कि सरकार क्यों 50 दिनों तक हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। जबकि इस मामले में सरकार के खिलाफ बड़ा माहौल पैदा हो रहा था। प्रदेश की उच्च शिक्षा नीति पर भी गम्भीर सवाल खड़े हो रहे थे। यह मामला अंतरराष्ट्रीय मीडिया में बीबीसी के द्वारा उठाया गया। जिस तरह से जेएनयू का मामला तेजी से देश भर में सामने आया तो मजबूर होकर सरकार को अपना इकबाल याद आया और उसे हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करवाने के लिए कार्यवाही करने पर मजबूर होना पड़ा। छात्रों ने राजभवन को भी पत्र लिखकर हाइकोर्ट के आदेशों को पालन करवाने के लिए कदम उठाने की मांग की। लेकिन राजभवन ने भी कोई ठोस कदम नहीं उठाये। जिससे निजी मेडिकल काॅलेजों के संचालकों के हौसले बढ़ते गये।
इस मामले में एक बात यह भी छनकर आई है कि सरकार पर कई दबाब बन चुके थे। आम लोगों के बीच इस बात को लेकर खासी चर्चा रही है कि राज्य में एक मेडिकल काॅलेज स्वयं आयुष मंत्री हरक सिंह रावत का है, तो एक काॅलेज भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पाखरियाल निश्ंाक के परिवारजनांे का है। योगगुरु के नाम से विख्यात बाबा रामदेव का भी एक महाविद्यालय है। कई ऐसे मेडिकल काॅलेज हैं जिनमें राजनीतिक दखल बना हुआ है। बड़ी हस्तियों के इन्हीं मेडिकल काॅलेजों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने की नीयत से सरकार और शासन-प्रशासन इस कदर सोये रहे कि हाईकोर्ट के आदेशों का पालन तक नहीं करवा रहे थे।
हांलाकि सरकार ने अब हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करवाने के लिए कार्यवाही आरम्भ कर दी है इसके लिए एक माह की समय सीमा तय कर दी है, फिर भी इसमें कई संशय जताये जा रहे हैं। छात्र लिखित आश्वासन की मांग पर अड़े हुये हैं क्योंकि पूर्व में भी छात्रों को कई बार मौखिक आश्वासन मिलते रहे हैं, लेकिन आंदोलन खत्म करने के बाद फिर से उनको प्रताड़ित किया जाता रहा है। इसके चलते छात्र अभी भी आंदोलन में डटे हुये हैं। अब देखना होगा कि क्या राज्य सरकार और खासतौर पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत इन मेडिकल काॅलेजों पर लगाम कस पाते हैं या नहीं। यह भी देखना होगा कि आयुष मंत्री हरक सिंह रावत जो कि सदन में इस मामले में बयान दे चुके हैं, वे अपने विभाग की ताकत मेडिकल काॅलेजों पर दिखा पाते हैं या नहीं। अगर यह हो भी गया तो उन सवालों का क्या जिन्हें लेकर सरकार और राज्य की उच्च शिक्षा नीति पर ही गंभीर सवाल खड़े हो चुके हंै।
मौका चूकी कांग्रेस
प्रदेश में लगभग 50 दिनों तक छात्र आंदोलन के चलते जहां सरकार की साख खराब हो रही थी, वहीं विपक्ष की भूमिका भी सवालों के घेरे में रही। सदन में एक मात्र विपक्षी पार्टी कांग्रेस इन प्राइवेट आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलेजों के छात्रांे के पक्ष में बयानबाजी तो कर रही थी लेकिन जिस तरह से विपक्ष की भूमिका होनी चाहिये वह कांग्रेस के नेताओं में देखने को नहीं मिली। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस के नेता इस मामले में असमंजस की स्थिति में ही रहे। वे इस अवसर को न तो भांप सके और न ही सरकार के खिलाफ प्रदेश भर में पनप रहे माहौल से कोई राजनीतिक लाभ ले पाये। इतना जरूर है कि कांग्रेस में राहुल गांधी के सबसे नजदीकी नेताओं मनीष खण्डूड़ी और पार्टी के पूर्व मंत्री प्रकाश जोशी पूरी तरह से इन छात्रों के समर्थन में डटे रहे, जबकि अपने हर बयान में सरकार को घेरने का मौका नहीं छोड़ने वाले पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय प्रीतम सिंह भी छात्रों के आंदोलन पर सरकारी तंत्र की ही भाषा बोलते नजर आये। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी महज रस्म अदायगी के तौर पर छात्रों के बीच गये। वे मीडिया में बयान देने से ज्यादा कुछ नहीं कह पाये।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो छात्रों का आंदोलन कांग्रेस के पास प्रदेश सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए बहुत बड़ा अवसर था जिसे कांग्रेस अपने पक्ष में भुना सकती थी। हाईकोर्ट के दो-दो आदेशों के बावजूद समूचा सरकारी तंत्र मेडिकल काॅलेजों के पक्ष में ही खड़ा रहा। सरकारी तंत्र की हालत इस मामले में कैसी रही यह बात स्वंय सरकार द्वारा जारी किये गये तीन-तीन आदेशों से समझी जा सकती है। छात्रों की मांगों को मानने से इंकार करने वाले संस्थानों पर कार्यवाही करने के बजाए छात्रों पर ही कठोर कार्यवाहियां की जा रही थी। कांग्रेस आसानी से इस मामले को सरकार के खिलाफ मोड़ सकती थी। कांग्रेस नेता प्रकाश जोशी ने अवश्य एक व्यवस्थित तरीके से छात्रों का समर्थन किया और वे पूरी रात छात्रों के साथ धरना स्थल पर डटे रहे। उन्होंने मीडिया के द्वारा छात्रों की मांगों पर कांग्रेस के रुख पर अपनी बात रखने के साथ ही प्रदेश के सभी महाविद्याालयों और विश्वविद्यालयों में इसके लिए पर्चे तक वितरित किये। प्रकाश जोशी के आंदोलन में शरीक होने से उत्साहित कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई भी पूरी तरह से छात्रों के समर्थन में उतर आई। कई कांग्रेसी छात्र नेताओं के खिलाफ पुलिस कार्यवाही भी हुई, लेकिन कांग्रेस का कोई बड़ा नेता अपनी ही छात्र विंग के पक्ष में सामने नहीं आया।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो छात्रों का आंदोलन कांग्रेस के पास प्रदेश सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए बहुत बड़ा अवसर था जिसे कांग्रेस अपने पक्ष में भुना सकती थी। हाईकोर्ट के दो-दो आदेशों के बावजूद समूचा सरकारी तंत्र मेडिकल काॅलेजों के पक्ष में ही खड़ा रहा। कांग्रेस नेता प्रकाश जोशी ने अवश्य एक व्यवस्थित तरीके से छात्रों का समर्थन किया और वे पूरी रात छात्रों के साथ धरना स्थल पर डटे रहे। लेकिन कांग्रेस का कोई बड़ा नेता अपनी ही छात्र विंग के पक्ष में सामने नहीं आया
सूत्रों की मानें तो कई कांग्रेसी नेता छात्रों के आंदेालन में सीधे जुड़ने से परहेज करने की नीति पर चल रहे थे। यही वजह है कि 3 नवम्बर को जब प्रकाश जोशी ने इस मामले में कांग्रेस भवन में प्रेस वार्ता करने की सूचना दी तो उनको उस दिन प्रेस वर्ता करने से भी रेाक दिया गया। इसके लिए बहाना बनाया गया कि उस दिन कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा की कंाग्रेस भवन में प्रेस वार्ता तय है। यदि प्रकाश जोशी छात्र आंदोलन के मसले पर प्रेस वार्ता करते हैं, तो पवन खेड़ा की प्रेस वार्ता को मीडिया उतना तव्वजो नहीं दे पायेगा। इतने अहम मसले पर कांग्रेस का यह रुख साफ करता है कि वह विपक्ष की कैसी भूमिका निभा रही थी, जबकि इस मसले को कांग्रेस पवन खेड़ा के द्वारा प्रेसवार्ता में उठा सकती थी। इससे कांग्रेस की स्थिति और बेहतर हो सकती थी। लेकिन अपने ही अंतद्र्वंदों के चलते कांग्रेस इस अवसर को नहीं पकड़ पाई। हालंाकि प्रकाश जोशी ने 4 नवम्बर को कांग्रेस भवन में प्रेस वार्ता करके सरकार के साथ शासन की भूमिका पर गम्भीर आरोप लगाये। छात्रों के आंदोलन को पूरी तरह से समर्थन देने की बात कही और इसके लिए हर प्रकार की कानूनी सहायता देने की भी घोषणा की। हैरानी इस बात की है कि प्रकाश जोशी की इस बड़े मुद्दे पर प्रेस वार्ता के दौरान कांग्रेस कार्यकारिणी का कोई बड़ा नेता शामिल नहीं हुआ। जबकि कांग्रेस के नेता मीडिया में बयानबाजी करते रहे। राहुल गांधी के नजदीकी नेता और लेाकसभा चुनाव लड़ चुके मनीष खण्डूड़ी का साथ भी प्रकाश जोशी को मिला। दोनों ही नेताओं ने इस मामले को नयी धार दी। इससे कांग्रेस में खासी हलचल मची और प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी अचानक छात्र आंदोलन को समर्थन देने की बात करने लगे।
कांग्रेस के भीतरी सूत्रों की मानें तो जल्द ही कांग्रेस मंे फेरबदल होना तय है। प्रकाश जोशी और मनीष खण्डूड़ी राहुल गांधी के सबसे करीबी
नेताओं में हैं। राहुल गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद कांग्रेस के भीतर अब नई हलचल देखने में आ रही है। हांलाकि प्रीतम सिंह भी राहुल गांधी की कृपा से ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने हैं, लेकिन प्रकाश जोशी और मनीष खण्डूड़ी के इस तरह से छात्र आंदोलन में सीधे-सीधे भागीदरी से प्रीतम सिंह खासे परेशान बताये जा रहे हैं। कांग्रेस इस मसले को नया रंग देने की कवायद में जुटी तो सरकार और खासतौर पर मुख्यमंत्री ने हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करने के लिए आदेश जारी कर दिये। जिससे कांग्रेस भी अब सकते में है।
बात अपनी-अपनी
मुख्यमंत्री ने उच्च स्तरीय बैठक कर हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करने के लिए जो आदेश जारी किया है, उसका हम सब स्वागत करते हैं। लेकिन अब भी हमारे संस्थान छात्रों का उत्पीड़न कर रहे हैं। हम मुख्यमंत्री जी के आश्वासन पर अपने अपने संस्थानांे में गये, लेकिन हमें वहां घुसने भी नहीं दिया जा रहा है। संस्थानों की ओर से कहा जा रहा है कि पहले हम यह लिखकर दें कि हम इतने दिनों तक काॅलेजों से कहां गायब रहे। इसके अलावा संस्थानांे का कहना है कि उनको सरकार का कोई ऐसा आदेश नहीं मिला है। इससे हमें आंशका है कि हमारी मांगांे को माना जायेगा यहा नहीं। अब हमारी सरकार से तीन मांगें हैं कि हमारी सुरक्षा और हमारा छूट गया पाठयक्रम पूरा करने के लिए एक्स्ट्रा क्लासंे लगवाई जायें। हमारे खिलाफ जो मुकदमे दर्ज किये गये हैं। उनको वापस लिया जाये। हाईकोर्ट के आदेश का अक्षरशः पालन करवाया जाये। हम मेडिकल के छात्र हैं, कोई अपराधी नहीं।
ललित तिवारी, मेडिकल के छात्र
मुख्यमंत्री जी के बयान का हम सभी आयुष छात्र स्वागत करते हैं। लिखित में भी सरकार ने आदेश जारी कर दिया है। लेकिन खेद का विषय है कि अब भी कई संस्थान इस आदेश को मानने से इंकार कर रहे हैं। छात्रांे को संस्थानों में आने ही नहीं दिया जा रहा है। प्रशासन भी हम छात्रांे को ही दोषी ठहरा रहा है कि तुम लोग नेतागीरी कर रहे हो। अब हम यह उम्मीद करते हैं कि मुख्यमंत्री जी के आदेश को सभी मेडिकल संस्थान मानंेगे। हमारे खिलाफ जो झूठे मुकदमे दर्ज किये गये हैं उनको वापस लिया जायेगा। अगर हमारी मांगों पर अब भी कार्यवाही नहीं होती है। तो हम आंदोलन करते रहंेगे।
अजय, मेडिकल के छात्र
आयुष छात्रांे का यह आंदेालन सरकार ने ही पैदा किया है। सरकार और शासन को फीस बढ़ाने का कोई नैतिक व कानूनी अधिकार नहीं था। जब छात्र हाईकोर्ट गये तो कोर्ट ने शासनादेश को ही रद्द कर दिया। डबल बेंच ने भी सिंगल बेंच के आदेश को सही माना। सरकार को चाहिये था कि वह हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करवाये, लेकिन वह ऐसा चाहती ही नहीं थी। इससे इन प्राइवेट संस्थानों को हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना करने का साहस मिला। राजभवन भी इस पर चुप्पी साधे रहा, जबकि महामहिम राज्यपाल प्रदेश के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होते हैं। राजभवन को छात्रों की शिकायतंे मिलने के बावजूद भी कार्यवाही नहीं हो पाई तो अब इसे क्या कहेंगे। सरकार चाहकर भी इस पर कोई कार्यवाही नहीं कर सकती है। जब कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत, केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पाखरियाल निश्ंाक और बाबा रामदेव के मेडिकल काॅलेज का मामला हो तो सरकार केैसे छात्रों की मांगों को पूरा करने का साहस दिखा सकती है। अब देखते हंै मुख्यमंत्री जी अपने आदेशों का पालन करवा पाते हंै या नहीं। पहले भी तो तीन बार आदेश जारी हो चुके हैं, लेकिन उनका पालन नहीं हो पाया। हम देखना चाहते हैं कि क्या अब सरकार अपने ही आदेशों का पालन नहीं करने वाले संस्थानों पर कड़ी कार्यवाही करने का साहस दिखा पाएगी या नहीं। मुझे तो नहीं लगता सरकार कुछ करेगी। प्रदेश की साख पर बट्टा लग चुका है। अब जो कर सकते हो उससे भरपाई तो होने वाली नहीं है। जब तक सरकार के आदेशांे का पालन नहीं करने वाले इन संस्थानांे के संचालक जेल मंे नहीं जायेंगे तब तक ये इसी तरह से सरकार और न्यायालयों की अवमानना करते रहेंगे।
रविन्द्र जुगराण, वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व दायित्वट्टाारी