केंद्र सरकार ने दलितों के ईसाई या इस्लाम में धर्म परिवर्तन करने वाले अनुसूचित जाति के लोगों या दलितों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति की जानकारी एकत्रित करने के लिए सरकार राष्ट्रीय आयोग गठन करने की तैयारी में है। यह आयोग उन दलितों की स्थिति की जांच करेगा जिन्होंने अपना हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म में धर्म परिवर्तन करवाया है। पैनल के पास अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए एक साल तक का समय अवधि प्रदान की गई है।
बताया गया है कि आयोग में लगभग तीन या चार सदस्य हो सकते हैं, जिसके अध्यक्ष केंद्रीय कैबिनेट मंत्री हो सकते है। आयोग को अपनी रिपोर्ट पेश करने के लिए एक साल का समय दिया जा सकता है। यह कमीशन ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों की स्थिति और उसमें बदलाव का अध्ययन करेगा। साथ ही मौजूदा अनुसूचित जाति की सूची में अधिक सदस्यों को जोड़ने के प्रभाव का भी पता लगाया जाएगा।
क्यों होगा आयोग का गठन
कई सालों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाओं को देखते हुए की है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में ऐसी कई याचिकाएं लंबित हैं जहाँ ईसाई या इस्लाम में धर्मांतरण करने वाले दलितों को आरक्षण का लाभ देने की मांग की है। सरकार ने हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म में धर्मांतरण करने वाले दलितों की ही जांच करने की घोषणा इसलिए की है क्योंकि भारतीय संविधान में साल 1950 अनुसूचित जाति के बारे में जारी किये गए आदेश के अनुसार अनुच्छेद 341 के में यह निर्धारित किया गया है कि हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग धर्म को मानने वाले किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त नहीं है। गौरतलब है कि अनुसूचित जाति का दर्जा केवल केवल हिन्दू धर्म के लोगों को प्राप्त था लेकिन साल 1956 और 1990 में इस अनुच्छेद में किए गए संशोधन के बाद इसमें बौद्ध और सिख धर्म के लोगों को भी शामिल कर लिया गया।