आज Google के डूडल पर देश की पहली क्रांतिकारी महिला लेखक की बड़ी मनमोहक तस्वीर बनायी गयी है,डूडल में हाथ में कलम लिए साड़ी पहने बैठीं सुभद्रा कुमारी चौहान बड़ी ही सादगी से भारत की क्रांतिकारी कलम का नेतृत्व कर रही हैं।
सन 1857 की आज़ादी की लड़ाई के बाद से अब तक बच्चों से लेकर बढ़े-बूढ़ों की जुबान पर थिरकने वाली कविता,’खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी…….’की लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान का आज जन्मदिन ( Subhadra kumari chauhan Birthday) है। 16 अगस्त को उनका 117वां जन्मदिवस है, सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan) के जन्मदिन पर गूगल (Google) ने अपना डूडल (Doodle) समर्पित किया है। इस डूडल को न्यूज़ीलैंड की कलाकार प्रभा माल्या (prabha malya) ने तैयार किया है। गूगल डूडल में सुभद्रा कुमारी चौहान की तस्वीर के पृष्ठभूमि में बायीं ओर घोड़े पर सवार लक्ष्मीबाई और दायीं तरफ जुलूस निकालते लोगों की तस्वीर उकेरी गई हैं।
भारतीय तटरक्षक सेना ने 28 अप्रैल, 2006 को सुभद्राकुमारी चौहान की राष्ट्रप्रेम की भावना को सम्मानित करने के लिए नए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज़ को सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम दिया है। भारतीय डाकतार विभाग ने 6 अगस्त, 1976 को उनके सम्मान में 25 पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया था।
सुभद्रा कुमारी चौहान (subhadra kumari chauhan) का of जन्म 16 अगस्त, 1904 को नागपंचमी के दिन इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में हुआ था। उन्होंने बचपन से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। स्कूल आते-जाते समय रास्ते में वे जो भी दृश्य या नई चीज देखती थीं, उस पर वे कविताएं लिखती थीं।कह सकते हैं कि लेखन की विलक्षण प्रतिभा सुभद्रा कुमारी चौहान के रक्त में ही थी। महज 9 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी पहली कविता ‘नीम’ की रचना की। उन्होंने ज्यादा शिक्षा नहीं ग्रहण नहीं की।वह केवल 9वीं कक्षा तक की ही पढ़ाई पूरी कर पाईं।
डूडल की पृष्ठभूमि में एक तरफ कवयित्री की प्रसिद्ध कविता ‘झांसी की रानी’ का चित्रण है जो हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। वहीं दूसरी तरफ स्वतंत्रता सेनानियों की झलक है। गूगल(Google) ने एक बयान में चौहान को ‘मार्गदर्शक लेखिका और स्वतंत्रता सेनानी’ की संज्ञा दी है जो ‘साहित्य में पुरुषों के प्रभुत्व वाले दौर में राष्ट्रीय स्तर तक उभरीं’।
गूगल (google) ने लिखा है, ‘‘उन्हें निरंतर लिखते रहने के लिए और यहां तक कि स्कूल जाते समय तांगे पर बैठे-बैठे भी लिखते रहने के लिए जाना जाता है। उनकी पहली कविता केवल नौ साल की उम्र में प्रकाशित हो गई थी।’’
उनकी कविताओं में मुख्य रूप से भारतीय महिलाओं की ‘लैंगिक और जातीय भेदभाव’ जैसी कठिनाइयों पर ध्यान केंद्रित रहता था। चौहान ने स्वतंत्रता संघर्ष में अपने योगदान के तहत क्रांतिकारी भाषण दिए और उनकी कुल 88 कविताएं तथा 46 लघु कथाएं प्रकाशित हुईं।