आज के दौर में सत्ता को चुनौती देने का लगातार काम कर रही एक जानदार और शानदार आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई। स्व. धर्मवीर भारती ने आज के युग को ‘अंधा युग’ कह पुकारा है। भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु के साथ ही समाप्त हुए द्वापर युग के बाद कलयुग आया। इस कलयुग में अहंकारी सत्ता को चुनौती देने वाले मशहूर शायर, गीतकार, गजलकार राहत इन्दौरी का निधन उन सबके लिए एक बड़ी क्षति है जो उनके शब्दों से प्रेरणा लेते हैं। धर्म के नाम पर आदमी की पहचान को स्थापित करने वाले षड्यंत्र के इस युग में वे राहत ही थे जो राहत पहुंचाते थे। क्या खूब उन्होंने कहा है-
अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है,
ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है।
लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में,
यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।
मैं जानता हूं कि दुश्मन भी कम नहीं लेकिन,
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है।
हमारे मुंह से जो निकले वही सदाकत है,
हमारे मुंह में तुम्हारी जुबान थोड़ी है।
जो आज साहिबे मसनद हैं, कल नहीं होंगे,
किराएदार हैं, जाती मकान थोड़ी है।
सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।
राहत सिर्फ शायर नहीं, बल्कि अजीम गीतकार भी थे। ‘खुद्दार’, ‘मिशन कश्मीर’, ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’, ‘घातक’ जैसी सुपरहित फिल्मों के लिए उन्होंने गीत लिखे। उर्दू भाषा और अदब के विद्वान राहत इन्दौरी की पहचान भले ही शायर की हो, उनकी चित्रकारी के दिवानों की तादात भी खासी बड़ी है। इन्दौरी हालांकि प्रेम पर, दोस्ती पर और जिंदगी के हर फलसफे पर लिखा करते थे लेकिन राजनीति पर उनकी नजर, उनके शब्द और तेवर, हर उस शख्स के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं और रहेंगे जो संवेदनशील हैं, जिनको जुल्म से, किसी भी प्रकार की बंदिशों से सख्त न इत्तेफाकी रहती है। ऐसों के लिए ही राहत ने कहा ‘अगर मेरा शहर जल रहा है और मैं कोई रोमांटिक गीत गा रहा है हूं तो मैं अपने फन, देश और वक्त सभी से दगा कर रहा हूं।’
राहत इन्दौरी नहीं रहे, उनकी शायरी लेकिन हमेशा हमारी यादों में, हमारे जज्बातों में बनी, बसी रहेगी।