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गोधरा कांड के आरोपी को मिली जमानत

साल 2002 में हुए गोधरा कांड ने गुजरात ही नहीं पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इसमें हुई हिंसा के कारण कई निर्दोष लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। गोधरा काण्ड में शामिल एक आरोपी फारूक, जिसे घटना के दौरान साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन पर पत्थरबाजी करने के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी उसकी जमानत याचिका पर गुजरात सरकार के कड़े विरोध के बाद अब उसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत दे दी गई है।

जमानत याचिका मंजूर करते हुए मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वह पिछले 17 सालों से जेल में है। लम्बी अवधि से जेल में रहने के चलते अब उसे जमानत दी जा सकती है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट गोधरा कांड में शामिल एक आरोपी अब्दुल रहमान 13 मई 2022 को 6 महीने जमानत दे चुका है। पारिवारिक स्थिति के ख़राब होने के कारण उसकी जमानत को अब 31 मार्च 2023 तक बढ़ा दिया गया है।

 

आरोपियों की जमानत याचिका का गुजरात सरकार क्यों कर रही है विरोध

 

गोधरा कांड में शामिल कई आरोपियों की याचिका साल 2018 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित पड़ी है। उन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार लगातार विरोध कर रही है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पछले 17 सालों से जेल में बंद इस हमले में शामिल पत्थरबाजी के आरोपियों की जमानत पर विचार किया जा सकता है। इस मामले पर पिछली सुनवाई 2 दिसम्बर को हुई थी जिसमें सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि यह मामला केवल पत्थरबाजी का नहीं है। इन पत्थरबाजों ने पत्थर फेंकने के साथ ट्रेन में आग भी लगाई है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए दलील दी कि सामान्य परिस्थितियों में पत्थरबाजी कम गंभीर अपराध हो सकता है, लेकिन यह अलग है। जिसमें केवल एक विशेष समुदाय के यात्रियों को ही टारगेट किया गया था। इस हिंसा के दौरान ट्रेन में फंसे 59 हिन्दू यात्रियों की मौत हुई है। इसका विरोध कर रही गुजरात सरकार का कहना है कि इस वारदात में जानबूझ कर ट्रेन में आग लगाई गई थी और इन्ही पत्थरबाजों की वजह से ट्रेन में फंसे निर्दोष यात्री ट्रेन से बाहर नहीं निकल पाए और जल कर मारे गए। सरकार की दलील है कि पत्थरबाजों की यही मंशा थी कि साबरमती एक्सप्रेस की जलती बोगी से कोई भी यात्री बाहर न निकल सके और बाहर से कोई शख्स उन्हें बचाने के लिए अंदर न जा सके। सॉलिसिटर जनरल ने आगे कहा की पत्थरबाजों द्वारा ट्रेन के अलावा दमकल कर्मियों पर भी पत्थर बरसाए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए केंद्र सरकार ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि आरोपियों को, मामले के तथ्यों और हिंसा में उसकी भूमिका के आधार पर जमानत दी जाये , न कि 17 साल के आधार पर। क्योंकि 17 साल की जमानत को आधार बना कर अन्य आरोपी भी जमानत की मांग कर सकते हैं। सॉलिसिटर जनरल के इस अनुरोध पर सीजेआई ने यह स्पष्ट किया है कि अदालत ने आरोपी को 17 साल जेल में रहने के आधार पर नहीं बल्कि तथ्यों, परिस्थितियों और जिम्मेदार की भूमिका के आधार पर ही जमानत दी गई है।

क्या है गोधरा कांड

 

साल 2002 की 27 फरवरी को हुए गोधरा कांड के बारे में सोच कर आज भी रूह काँप जाती है। दरसल साल 2002 में अयोध्या में एक महायज्ञ का आयोजन किया गया था जिसमे शामिल होने के लिए कई श्रद्धालु अयोध्या गए थे। जब वे यज्ञ को पूर्ण करके साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन से वापस आ रहे थे तो गुजरात के गोधरा स्टेशन पर कथित तौर पर मुसलमानों द्वार ट्रेन पर हमला कर दिया गया और कारसेवकों से भरे बोगी नंबर S-6 में आग लगा दी गई जिसके कारण बड़े स्तर जान माल की हानि हुई। इस हमले में 59 कारसेवकों की जान चली गई। हमले में जिन कारसेवकों की मौत हुई उनमें से अधिकतर हिंदू थे। इस हमले के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क उठे। जिसमें सैकड़ों लोगों की जाने चली गई। हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे की जान के दुश्मन बन गए। इन दंगों में अधिकतर मामले ऐसे थे जिनमे बचपन से दोस्त की तरह साथ रह रहे लोगों ने अपने ही मित्र को मौत के घाट उतार दिया।

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