गीता प्रेस ने बीते वर्ष 2022 में अपने 100 वर्ष पूरे किये हैं। जिसे साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार, गोरखपुर को प्रदान किया जा रहा है। गीता प्रेस को यह पुरस्कार गोरखपुर को अहिंसक और अन्य गांधीवादी आदर्शों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में परिवर्तन लाने में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रदान किया जा रहा है।
पुरस्कार की घोषणा के बाद पीएम नरेंद्र मोदी, सीएम योगी आदित्यनाथ ने सोशल मीडिया पर गीता प्रेस गोरखपुर को बधाई भी दी है। निर्णायक मंडल ने 18 जून, 2023 को नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में अध्यक्षों की सर्वसम्मति से वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर को देने का निर्णय किया है। हालांकि गीता प्रेस ने आज तक किसी पुरस्कार को स्वीकार नहीं किया है। इस बार भी वह इनाम में मिलने वाली धनराशि को स्वीकार नहीं करेगा। गांधी शांति पुरस्कार के रूप में वह प्रशस्ति पत्र, पट्टिका और हस्तकला, हथकरघा की कलाकृति स्वीकार की जाएगी। बोर्ड का मानना है कि इससे भारत सरकार का सम्मान भी रह जाएगा और गीता प्रेस का भी सम्मान रह जाएगा।
क्या है गाँधी शांति पुरस्कार
भारत सरकार द्वारा हर वर्ष, गांधी शांति पुरस्कार, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिया जाता है। गांधी जी के शांति सिद्धांतों को समर्पित इस पुरस्कार की शुरुआत भारत सरकार ने 1995 में उनके 125 वे जन्मदिन पर की थी। यह पुरस्कार उन व्यक्तियों या संस्थाओं को दिया जाता है, जिन्होंने सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक बदलावों को अहिंसा एवं अन्य गांधीवादी तरीकों द्वारा प्राप्त किया है। पुरस्कार के रूप में 1 करोड़ रुपये की धनराशि, प्रशस्ति पत्र और एक उत्तरीय दी जाती है। प्रथम गांधी शांति पुरस्कार वर्ष 1995 में तंजानिया के प्रथम राष्ट्रपति के जूलियस न्यरेरे को प्रदान किया गया था।
गीता प्रेस की शुरुआत कब हुई
गीता प्रेस विश्व की सबसे अधिक हिन्दू धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली संस्था है। यह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर के गीता प्रेस रोड पर स्थापित है । यह एक विशुद्ध आध्यात्मिक संस्था है। यह संस्था हिंदी, संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में भी किताबें व पत्र- पत्रिकाएं प्रकाशित करती है। गीता प्रेस को भारत के हर घर में रामचरितमानस और भगवद्गीता को पहुंचाने का श्रेय जाता है। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा कल्याण (हिन्दी मासिक) और कल्याण-कल्पतरु (इंग्लिश मासिक) का प्रकाशन भी होता है। गीता प्रेस की स्थापना वर्ष 1923 में हुई थी। इसके संस्थापक श्री जयदयाल गोयन्दका थे। करीब 100 साल पहले यानी 1923 में स्थापित गीता प्रेस द्वारा अब तक 45.45 करोड़ से भी अधिक प्रतियों का प्रकाशन किया जा चुका है। इनमें 8.10 करोड़ भगवद्गीता और 7.5 करोड़ से अधिक रामचरित मानस की प्रतियाँ हैं। गीता प्रेस में प्रकाशित महिला और बालोपयोगी साहित्य पुस्तकों की बिक्री भी की है। गीता प्रेस की पुस्तकों की माँग इतनी ज्यादा है कि यह प्रकाशन हाउस मांग पूरी नहीं कर पा रहा है। औद्योगिक रूप से पिछडे¸ पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस प्रकाशन गृह से हर साल 1.75 करोड़ से ज्यादा पुस्तकें देश-विदेश में बिकती हैं। गीता प्रेस की पुस्तकों की लोकप्रियता की वजह यह है कि इनकी पुस्तकें काफी सस्ती हैं। साथ ही इनकी प्रिंटिंग काफी अच्छी होती है और फोंट का आकार भी बड़ा होता है। गीता प्रेस का उद्देश्य मुनाफा कमाना नहीं है। यहाँ सद्प्रचार के लिए पुस्तकें छपती हैं।