देश में अब भी बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। 21वीं सदी के भारत में अब भी लड़कियों की स्थिति जस की तस है। इसकी गवाही देते हैं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े। बीते वर्ष ‘यौन उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण अधिनियम’ (पॉक्सो) के तहत दर्ज किए गए मामलों में 99 फीसदी बच्चियां शिकार बनी थीं।
एनसीआरबी के मुताबिक देश में 2020 में पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज 99 फीसदी अपराध लड़कियों के खिलाफ थे। इसका मतलब है कि सामाजिक अपराधों में लड़कियों को तेजी से निशाना बनाया जा रहा है।
राष्ट्रीय अपराध रजिस्टर (एनसीआरबी), एक गैर-सरकारी संगठन, चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के विश्लेषण में पाया गया कि बाल यौन अपराधों की रोकथाम अधिनियम (पीओसीओ) ने 28,058 लड़कियों सहित लड़कों के खिलाफ 28,327 अपराध दर्ज किए। बाल यौन अपराध रोकथाम अधिनियम के तहत दर्ज मामलों का विश्लेषण करें तो 16 से 18 वर्ष की आयु वर्ग में लड़कियों के खिलाफ अपराधों की संख्या 14092 से अधिक है, जबकि 12 से 16 वर्ष की आयु वर्ग में लड़कियों के खिलाफ अपराधों की संख्या 10949 है।
इससे पता चलता है कि लड़कों की तुलना में लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार की संभावना अधिक होती है। क्राय ने सोमवार को कहा कि लड़कों की तुलना में लड़कियों के यौन अपराधों का शिकार होने की संभावना अधिक होती है। एनसीआरबी के अनुसार, लड़कियों के अधिकारों की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है, लेकिन वंचित समूहों की लड़कियां विशेष रूप से प्रभावित हैं।
पिछले महीने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, 2020 में पॉक्सो के तहत लड़कियों के खिलाफ अपराधों की संख्या अधिक थी। इनमें लड़कियों की शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, गरीबी, लड़कियों का सशक्तिकरण शामिल हैं। क्राय में नीति अनुसंधान निदेशक प्रीति महारा ने कहा कि कोविड की संलिप्तता पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।